अभिवृद्धि आवश्यकताएँ (Growth needs, B-needs)

Abhivriddhi Avashyakta

अभिवृद्धि की आवश्यकताएँ अथवा आत्म विकास एवं आत्म-वास्तवीकरण की आवश्यकताएँ

Growth needs, meta needs, being needs and B-needs

अभिवृद्धि आवश्यकताएँ निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं-

  • पंचम आवश्यकता – आत्म-वास्तवीकरण (Fifth Need – Self-Actualization)
  • छठी आवश्यकता – ज्ञान और समझ (Sixth Need – Knowledge and Understanding)
  • सातवीं आवश्यकता – सौन्दर्य आवश्यकताएँ (Seventh Need – Aesthetic Needs)

पंचम आवश्यकता – आत्म-वास्तवीकरण (Fifth-Need – Self-Actualization)

मास्लो के वर्गीकरण में सर्वप्रमुख आवश्यकता आत्म-वास्तवीकरण है। प्रथम चार प्रकार की अभावजनीन आवश्यकताओं (Deficit needs) की पूर्ति हो जाने पर आत्म-वास्तवीकरण (Self-Actualization) की आवश्यकता व्यक्ति को अनुप्रेरित करती है। आत्म-वास्तवीकरण मास्लो के वर्गीकरण की सर्वोच्च आवश्यकता है।

इसका तात्पर्य है अपनी व्यक्तिगत प्रकृति के सभी पहलुओं की पूर्ण सन्तुष्टि जिसका अर्थ आत्म प्रकाशन, आत्मानुभूति, आत्मज्ञान तथा आत्माभिव्यक्ति से है। जो व्यक्ति चित्रकारी में रुचि रखता है वह उसमें पूर्णता प्राप्त करने के लिये तनाव अनुभव करता है एवं अधिक सक्रियता से पूर्णता प्राप्त करने की ओर अग्रसर होता है।

प्रत्येक व्यक्ति जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् स्वज्ञान, स्वप्रकाशन एवं स्वअभिव्यक्ति के प्रति प्रेरित होता है। वह अपनी वैयक्तिकता, विशिष्टता एवं अद्वितीयता की अनुभूति करना चाहता है तथा उसकी अभिव्यक्ति चाहता है।

मास्लो का कहना है कि व्यक्ति जो कुछ हो सकता है उसे अवश्य होना चाहिये अर्थात् प्रकृति ने प्रत्येक व्यक्ति को जो क्षमताएँ, विशिष्टताएँ दी हैं, वह उनकी अभिव्यक्ति करना चाहता है, आन्तरिक अभिक्षमताओं को प्रकाशित करना चाहता है तथा आत्मप्रकाशन करना चाहता है, इसी में उसकी मौलिकता परिलक्षित होती है।

इसके अन्तर्गत व्यक्ति अपनी आन्तरिक जन्मजात क्षमताओं एवं प्रतिभा की अभिव्यक्ति करना चाहता है, जिसके द्वारा वह एकता एवं एकीकरण की अनुभूति करता है।

मास्लो के अनुसार आत्म-वास्तवीकरण एक सतत् प्रक्रिया है इसका कोई अन्त नहीं है। जो व्यक्ति विकास की प्रक्रिया से अभिप्रेरित है, उसे आत्म-वास्तवीकृत (Self-actualized) व्यक्ति कहा गया है।

कभी-कभी आत्म-वास्तवीकरण की प्रक्रिया दुःखदायी भी हो सकती है, व्यक्ति में चिन्ता की भावना उत्पन्न कर सकती है किन्तु वह व्यक्ति को पूर्ण क्षमताओं की अभिव्यक्ति तक अग्रसित करती है। यह सांस्कृतिक एवं आत्म-नियन्त्रण की सीमाओं से स्वतन्त्र है।

प्रथम चार प्रकार की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् भी व्यक्ति सन्तुष्टि की अनुभूति नहीं करता, जब तक वह अपनी मौलिकता या अपनी विशिष्टता का प्रकाशन नहीं करता। यही कारण है कि व्यक्ति आत्म-वास्तवीकरण की ओर अभिप्रेरित होता है।

मास्लो ने प्रथम वर्गीकरण में उपरोक्त पाँच प्रकार की आवश्यकताओं का प्रतिपादन किया था किन्तु आगे चलकर दो और आवश्यकताओं को भी इनमें जोड़कर सात प्रकार की आवश्यकताओं का प्रतिपादन किया है।

छठी आवश्यकता – ज्ञान और समझ (Sixth-Need – Knowledge and Understanding)

आत्मवास्तवीकरण की आवश्यकता के उपरान्त ज्ञान एवं समझ की आवश्यकता बलवती होती है। मास्लो के अनुसार अभावजनीन आवश्यकताओं (Deficiency needs) से अभिप्रेरित व्यक्तियों की तुलना में अभिवृद्धि की आवश्यकताओं (Growth needs) से अभिप्रेरित व्यक्तियों को सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्ति की आवश्यकता अधिक होती है।

ऐसे व्यक्ति सत्य एवं अभिज्ञान के स्वरूप को जानना चाहता है। वह जीवन एवं ब्रह्माण्ड के रहस्य को जानने को उत्सुक रहता है। उसमें इस विश्व की अव्यवस्था, अस्पष्टता एवं रहस्य को खोजने की चाह होती है।

उसी से प्रेरित हो वह सदृश्य, अपूर्व एवं अमूर्त सत्ता की खोज करता है। वह विभिन्नता में एकता एवं अव्यवस्था में व्यवस्था खोजना चाहता है। इस ज्ञानात्मक आवश्यकता की अतृप्ति पर मनोव्याधि उत्पन्न होती है तथा विरक्ति या उदासीनता की भावना पैदा होती है।

यह ज्ञान प्राप्ति की आवश्यकता चिन्ता एवं डर जैसी नकारात्मक भावना का विरोध करती है। कुछ व्यक्तियों में यह ज्ञान लिप्सा एवं उत्सुकता इतनी बलवती होती है कि वे जीवन को खतरे में भी डालकर इनकी पूर्ति करते हैं।

मास्लो यह निश्चय नहीं कर सके कि यह ज्ञान एवं समझ की आवश्यकता सभी व्यक्तियों में समान रूप से होती है या इसमें भिन्नता है। यद्यपि यह स्पष्ट है कि उत्सुकता, खोज एवं अधिक ज्ञान प्राप्ति की इच्छा तीव्र बुद्धि के व्यक्ति में अधिक होती है, जो तथ्यों को अधिक गहराई से समझना चाहते हैं, व्यवस्थित करना चाहते हैं, विश्लेषण करना चाहते हैं एवं उनमें सम्बन्ध स्पष्ट करना चाहते हैं।

सातवीं आवश्यकता – सौन्दर्य आवश्यकताएँ (Seventh Need – Aesthetic Needs)

सातवें स्तर पर सौन्दर्य आवश्यकताएँ हैं। कुछ व्यक्ति सौन्दर्योपासक होते हैं एवं इसी से अभिप्रेरित होकर वे अपने जीवन में कलात्मक रंग घोल लेते हैं। प्रत्येक संस्कृति एवं प्रत्येक में ऐसे व्यक्ति पाये जाते हैं जो व्यवस्था, परिपूर्णता, क्रमबद्धता, संगत एवं संरचना के युग अनुसार कार्य करते हैं।

कुछ व्यक्तियों में सौन्दर्य के प्रति उत्कृष्ट इच्छा होती है। ऐसे व्यक्तियों में व्यवस्था (Order), संगति (Symmetry), समापन (Closer), कार्य की परिपूर्णता (Completion), रीति (System) एवं संरचना (Structure) की आवश्यकताएँ बलवती होती हैं। इन सभी को मास्लो ने सौन्दर्योपासना की आवश्यकताओं के वर्ग में रखा है।

अभाव आवश्यकताएँ (Deficiency Needs, D-needs)

  1. प्रथम आवश्यकता – शारीरिक आवश्यकता (First Need – Physical Need)
  2. द्वितीय आवश्यकता – सुरक्षा आवश्यकता (Second Need – Safety Need)
  3. तृतीय आवश्यकता – अपनत्व एवं प्यार की आवश्यकता (Third Need – Love and Belongingness)
  4. चतुर्थ आवश्यकता – सम्मान की आवश्यकता (Fourth Need – Esteem Need)