अधिगम का स्थानान्तरण – Transfer of Learning

Adhigam Sthanantaran

अधिगम का स्थानान्तरण (Transfer of Learning)

मानव विकास में अधिगम का प्रमुख स्थान है। हम प्रत्येक नवीन कार्य को सीखने में अपने संचित ज्ञान की सहायता लेते हैं। यह संचित ज्ञान हमारे सीखने को सरल बनाता है। बी. एड. शिक्षारत छात्र-छात्राएँ पूर्व संचित गणित के ज्ञान को मस्तिष्क में जाग्रत करके सांख्यिकी को सीखने में सहायता लेते हैं। इस प्रकार से सीखने में समय एवं शक्ति दोनों की बचत हो जाती है और संचित ज्ञान कर पुनरावृत्ति भी। अतः जब पूर्व सीखे गये ज्ञान का नवीन सीखे जाने वाले ज्ञान पर प्रभाव पड़ता है तो उसे सीखने का स्थानान्तरण या अधिगम का स्थानांतरण कहते हैं।

अधिगम स्थानान्तरण का अर्थ

  1. डीज (Deese) ने लिखा है, “सीखने का स्थानान्तरण तब होता है, जब एक कार्य का सीखना अथवा निष्पादन दूसरे कार्य के सीखने अथवा निष्पादन में लाभ अथवा हानि पहुंचाता है।
    Transfer of training means gain or loss on the performance of some task as the result of learning or performance upon some other task.
  2. शिक्षा शब्दकोश (Dictionary of Education) के अनुसार, “जब कोई व्यक्ति किसी उद्दीपक के प्रति प्रतिक्रिया करता है तो अधिगम या सीखना प्रारम्भ हो जाता है। जब अधिगम के विशेष अनुभव व्यक्ति की योग्यता को प्रभावित करते हैं और उनका रूप भिन्न होता है, तो वह क्रिया अधिगम-स्थानान्तरण के रूप में स्वीकारी जाती है।
    When one practice a response to a specific stimulus situation, learning takes place. When a perticular learning experience also influences an individual’s ability to respond effectively to stimuli different in some ways from those he reacted to during learning transfer of training is said to have taken place.
  3. क्रो एवं को (Crow and Crow) के अनुसार, “सीखने के एक क्षेत्र में प्राप्त होने वाले ज्ञान या कुशलताओं का चिन्तन करके, अनुभव करने और कार्य करने की आदतों का सीखने के दूसरे क्षेत्र में प्रयोग करना साधारणतः प्रशिक्षण या अधिगम का स्थानान्तरण कहा जाता है।
    The carry-over of habits of thinking feeling or working of knowledge or skills, from one learning area to another usually is referred to as the transfer of

यदि हम उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करें तो अधिगम स्थानान्तरण के अर्थ को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

1. स्थायी सीखना (Permanent learning)

अधिगम का स्थानान्तरण सीखने के स्थायित्व पर निर्भर करता है। किसी कार्य को सीखने से मस्तिष्क में चिह्न अंकित हो जाते हैं, जो समयानुसार जाग्रत होकर हमारे व्यवहार या क्रिया को सरल बनाते हैं। अतः सीखना स्थायी होना स्थानान्तरण के लिये आवश्यक है।

2. स्थिति का चयन (Selection of position)

अधिगम में स्थानान्तरण स्थिति चयन पर निर्भर करती है। थॉर्नडाइक ने अपने प्रयोगों से स्पष्ट कर दिया है कि जो व्यक्ति सही प्रतिचारों का चयन करके अभ्यास करते हैं, वे सीखने में शीघ्र उन्नति करते हैं।

यही स्थिति सीखने के स्थानान्तरण में भी होती है। जब व्यक्ति अपने पूर्व अनुभवों में से सही को छाँट कर प्रयोग करता है, तो सीखने में स्थानान्तरण होता है। इसी को स्थिति का चयन कहते हैं।

3. प्रभाव (Effect)

सीखने में स्थानान्तरण उसी समय स्पष्ट होता है, जब सीखने में उन्नति होती है। इस प्रभाव के अन्तर्गत अर्जित ज्ञान, प्रशिक्षण और आदतों आदि के प्रभाव सम्मिलित हैं, जिससे सीखने में स्थानान्तरण सकारात्मक या नकारात्मक प्रकार से प्रतिपादित होता है।

अधिगम के स्थानान्तरण की परिभाषाएँ (Definitions of Transfer of Learning)

अधिगम या शिक्षा के स्थानान्तरण की कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

  1. कॉलसनिक (Colsnic) के अनुसार, “शिक्षा के स्थानान्तरण से आशय एक परिस्थिति में प्राप्त ज्ञान, आदत, निपुणता, अभियोग्यता का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना है।
    Transfer of learning means to apply the acquiring knowledge, habit, skill, ability from one situation to another situation.”
  2. सोरेन्सन (Sorenson) के अनुसार, “शिक्षा के स्थानान्तरण के द्वारा व्यक्ति उस सीमा तक सीखता है, जब तक एक परिस्थिति से प्राप्त योग्यताएँ दूसरी में सहायता करती हैं।
    By transfer of learning one man learn up to extent till aquiring ability in once circumstances helps in other.
  3. क्रो तथा को (Crow and Crow) के अनुसार, “जब सीखने के एक क्षेत्र में प्राप्त विचार, अनुभव या कार्य की आदत या निपुणता का प्रयोग दूसरी परिस्थिति में किया जाता है, तो वह अधिगम का अन्तरण या स्थानान्तरण कहलाता है।
    The carry-over of habits of thinking, feeling or working of knowledge or skills from one learning area to another is usually referred to as the transfer of leaning.
  4. शिक्षा शब्दकोश (Dictionary of education) के अनुसार, “प्रत्यक्ष प्रशिक्षण के बिना निश्चित अधिगम में विकास, वृद्धि, किसी संशोधन क्रिया के अभ्यास के द्वारा सम्बन्धित क्रिया में आदान-प्रदानात्मक संशोधन ही शिक्षा या अधिगम का स्थानान्तरण है।
    Transfer of learning is the gained correction in related action by exercise of action, any correction, growth and development in define learning without direct Training.

अधिगम के स्थानान्तरण का महत्त्व (Importance of Transfer of Learning)

शिक्षा में अधिगम के अन्तरण का विशेष महत्त्व है। अधिगम के अन्तरण के कारण वैज्ञानिक विज्ञान के अनुभवों के आधार पर नवीन समस्याओं का समाधान करते हैं।

शक्ति-मनोविज्ञान के समर्थक अधिगम के अन्तरण का विशेष महत्त्व मानते हैं। शक्ति-मनोविज्ञान के समर्थक कहते हैं कि, “मस्तिष्क की कोई भी शक्ति प्रत्येक परिस्थिति में एक जैसा व्यवहार करती है। यदि बालक की स्मरण-शक्ति अच्छी है तो वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल होगा।

शक्ति-मनोविज्ञान के समर्थकों का विश्वास है कि जिस प्रकार व्यायाम के द्वारा शरीर को स्वस्थ बनाया जा सकता है, उसी प्रकार अध्ययन के द्वारा मानसिक शक्तियों का विकास किया जा सकता है।

अधिगम के अन्तरण के पीछे अनुशासन कार्य करता है। अनुशासन का अर्थ मानसिक शक्तियों का उचित उपयोग है, जो किसी विशेष विधि से कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिये होना चाहिये।

मनोविज्ञान के जन्म से ही अधिगम उसका केन्द्र बिन्दु रहा है। अधिगम का अन्तरण शिक्षण के कार्य को सरल बना देता है। शिक्षक अधिगम के अन्तरण के द्वारा बालक के भविष्य का निर्माण करता है।

अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार (Types of Learning Transfer)

सीखने के स्थानान्तरण में यह पाया गया है कि पूर्व ज्ञान कभी-कभी सीखने में सहायता देता है और कभी-कभी बाधाएँ उत्पन्न करता है। अत: अधिगम स्थानान्तरण को निम्न रूपों में प्रस्तुत किया जा सकता है-

1. धनात्मक स्थानान्तरण (Positive transfer)

जब एक परिस्थिति में सीखा गया ज्ञान या क्रिया दूसरी परिस्थिति में ज्ञान या क्रिया को अर्जित करने में सहायक सिद्ध होता है तो यह सकारात्मक या धनात्मक अधिगम स्थानान्तरण होता है; जैसे – साइकिल का ज्ञान, मोटर साइकिल सीखने में सहायक होता है।

2. ऋणात्मक स्थानान्तरण (Negative transfer)

ऋणात्मक या नकारात्मक अधिगम स्थानान्तरण तब होता है, जब पूर्व संचित ज्ञान नवीन ज्ञान के सीखने में रुकावट उत्पन्न करता है; जैसे – हिन्दी भाषा में गिनती सीखने पर हम अंग्रेजी भाषा की गिनती सीखते हैं तो हिन्दी भाषा की गिनती की बनावट हमें अंग्रेजी भाषा की गिनती सीखने में रुकावट उत्पन्न करती है।

3. शून्य स्थानान्तरण (Zero transfer)

जब पूर्व संचित ज्ञान नवीन सीखने में न सहायता करते हैं और न रुकावट पैदा करते हैं तब शून्य स्थानान्तरण होता है। मानव मस्तिष्क में ऐसा बहुत-सा ज्ञान होता है, जो किसी समय मानव के सीखने को प्रभावित नहीं करता। इसलिये विद्वानों ने इसे स्थानान्तरण नहीं माना है।

अधिगम स्थानान्तरण के सिद्धांत (Principles of Transfer of Learning)

सीखने में स्थानान्तरण के स्वरूप को स्थापित करने वाले सिद्धांतों को हम दो भागों में विभक्त करके प्रस्तुत करते हैं-

  1. स्थानान्तरण के प्राचीन सिद्धान्त (Ancient principles of transfer)
  2. स्थानान्तरण के आधुनिक सिद्धान्त (Modern principles of transfer)

1. स्थानान्तरण के प्राचीन सिद्धांत (Ancient principles of transfer)

सीखने के स्थानान्तरण के प्राचीन सिद्धान्तों में ‘मानसिक शक्तियों का सिद्धान्त‘ और ‘औपचारिक मानसिक प्रशिक्षण‘ के सिद्धान्त सम्मिलित हैं।

मानसिक शक्तियों के सिद्धान्त के बारे में गेट्स एवं अन्य (Gates and others) ने लिखा है, “अवधान, स्मृति, कल्पना, तर्क, इच्छा, स्वभाव, कभी-कभी चरित्र और अन्य गुण मानसिक शक्तियों के रूप में होते हैं। यह सभी शक्तियाँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र होती हैं, अतः इनको स्वतन्त्र रूप में सक्षम बनाया जा सकता है।

Attention, memory, imagination, arguments will temperament and sometimes character and other traits are powers or faculties of the mind, usually the several faculties are held to be mainly, if not wholly, independent to each other. Each faculty is a general power, capacity or character which possesses a definite unity.

उपर्युक्त विचार से यह निष्कर्ष निकलता है कि मानसिक प्रक्रियाएँ अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखती हैं और वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में समर्थ हैं। अत: इनका प्रशिक्षण ही सीखने में स्थानान्तरण को बढ़ावा देता है।

इसी प्रकार से औपचारिक मानसिक प्रशिक्षण के सिद्धान्त के बारे में गेट्स एवं अन्य (Gates and Other) ने लिखा है, “मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षण के द्वारा समान और समग्र रूप में किसी भी परिस्थिति में कुशलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है।

The mental faculties can be developed uniformly as a whole by training in one subject or one kind of data has been known in education as the theory of formal discipline.

उपर्युक्त विचार से स्पष्ट होता है कि अवधान, स्मृति आदि मानसिक शक्तियों को किसी भी क्षेत्र में प्रशिक्षण दिया जाय तो सीखने में स्थानान्तरण होता है।

आज इन प्राचीन सिद्धान्तों का कोई महत्त्व नहीं है क्योंकि ये वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। शिक्षा के क्षेत्र में आज निरीक्षण एवं परीक्षण का इतना प्रयोग बढ़ गया है कि प्रत्येक सिद्धांत का वैज्ञानिक मापदण्ड बन चुका है।

2. स्थानान्तरण के आधुनिक सिद्धांत (Modern principles of transfer)

सीखने के आधुनिक सिद्धान्त विभिन्न प्रयोगों के आधारों पर गठित हैं। इनमें थॉर्नडाइक, जड एवं बागले आदि के सिद्धांत आते हैं। इन सिद्धान्तों के महत्त्व का वर्णन हम निम्न प्रकार से करते हैं-

(i) थॉर्नडाइक का सिद्धांत (Principle of Thorndike)

थॉर्नडाइक ने सीखने या अधिगम के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं। आपने स्थानान्तरण के सिद्धान्त को ‘समरूप तत्त्वों का सिद्धान्त‘ नाम दिया है। इस समरूप सिद्धान्त का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

समरूप तत्त्वों के सिद्धान्त का अर्थ (Meaning of identical elements)

थॉर्नडाइक ने सीखने के प्रयोगों में पाया कि बिल्ली अपने पूर्व अनुभवों का प्रयोग सीखने में करती है। अतः जब व्यक्ति संचित अनुभवों में से नवीन सीखने के लिये समरूप तत्त्वों को छाँट लेता है और उनका प्रयोग करके नवीन कार्य को शीघ्र सीख लेता है तो इसे समरूप तत्त्वों का सिद्धान्त कहा जाता है।

सरलीकरण के रूप में कहा जा सकता है कि नवीन कार्य और संचित अनुभवों में से समान तत्त्वों को छांट लेना ही सीखने में उन्नति करता है; जैसे – दर्शनशास्त्र का ज्ञान मनोविज्ञान के सीखने में सहायता देता है।

स्थानान्तरण कैसे हो? (How to transfer?)

थॉर्नडाइक ने स्थानान्तरण को सीखने और बुद्धि पर निर्भर माना है। जब सीखना स्थायी होगा और बुद्धि के प्रयोग से हम समरूप तत्त्वों का चयन कर लेंगे तो स्थानान्तरण आसानी से होगा।

यदि हम सीखने के ज्ञान को चयन करने में सफल नहीं होते तो उसका स्थानान्तरण सम्भव नहीं हो सकता। अत: शिक्षक को शिक्षा देते समय छात्रों के संचित ज्ञान को जाग्रत कर देना चाहिये ताकि वे स्थानान्तरण के द्वारा शीघ्र सीख सकें।

(ii) सी. एच. जड का सिद्धान्त (Principle of C. H. Judd)

आपने सीखने में स्थानान्तरण पर प्रयोग किये और एक नवीन सिद्धान्त को प्रतिपादित किया। इसको ‘सामान्यीकरण का सिद्धान्त‘ कहा जाता है।

सामान्यीकरण का अर्थ (Meaning of generalisation)

बालक अपने विकास के साथ-साथ विभिन्न अनुभव अर्जित करता है। यह अनुभव मिलकर एक निष्कर्ष निकालते हैं, जिसे नियम या सिद्धान्त का नाम दिया जाता है। भविष्य में बालक इनका प्रयोग सामान्य जीवन की समस्याओं को सुलझाने में करता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को सामान्यीकरण कहते हैं।

जैसा कि गेट्स एवं अन्य (Gates and Others) ने लिखा है, “विशिष्ट परिस्थितियों में समान विशेषताएँ या सिद्धान्त या सम्बन्ध स्थापना की प्रक्रिया सामान्यीकरण होती है।

The process of attending to the common future or principle or relationship in a variety of specific situation is called generalization.

स्थानान्तरण कैसे हो? (How to transfer)

व्यक्ति सीखते समय ज्ञान की क्रमबद्धता, आदतों एवं मनोवृत्तियों को धारण करता है। जब वह अन्य परिस्थितियों में सीखता है तो वह इनका प्रयोग करके सीखने को सरल बना लेता है। यानी वह संचित ज्ञान, आदतों, मनोवृत्तियों आदि के आधार पर बनाये गये नियमों का व्यवहार में पालन करके नवीन कार्य को सीखता है।

अत: जिस व्यक्ति के पास जितने अधिक सामान्य सिद्धान्त होंगे, वह उतना ही उनका स्थानान्तरण नवीन सीखने में कर सकेगा।

जड‘ ने सन् 1908 में एक प्रयोग द्वारा इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। आपने दो दलों (लड़कों) को निशाना लगाने के लिये तैयार किया। जब वे एक विशेष गहरायी पर निशाना लगाने में सफल हो गये तब निशाने की गहरायी को बदल दिया गया।

जो लड़के ‘किरण की वक्र रेखा‘ के नियमों को समझ गये थे, उन्होंने निशाने की गहरायी को बदलने पर भी सही निशाना लगाया, किन्तु जो इस नियम से परिचित नहीं थे, वे निशाना लगाने में असफल हुए।

इससे ‘जड‘ ने यह निष्कर्ष निकाला कि स्थानान्तरण किसी कार्य के नियमों एवं सिद्धान्तों को समझने से और उनका सामान्यीकरण करने से होता है।

सी. एच. जड (C.H. Judd) ने लिखा है, “एक शिक्षक जिसका दृष्टिकोण ज्ञान के क्षेत्र में व्यापक है, वह केवल सूचना के माध्यम से एक सत्य का उद्घाटन नहीं करता, बल्कि वह उन सभी संकेतों का ताना-बाना तैयार करता है, जो शेष संसार का केन्द्रीभूत सत्य है।

A teacher who had a broad outlook on any field of knowledge will make a single piece of information carry to the student not only a bare kernel of truth, but a whole network of suggestions of which the central truth connects with the rest of the world.”

(iii) बागले का सिद्धान्त (Principle of Baggle)

डब्लू. सी. बाग्ले ने सीखने में स्थानान्तरण को बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना है। सामान्यीकरण एवं समान तत्त्वों के पीछे आदर्श एवं मूल्य माने हैं, जो सीखने में स्थानान्तरण को सफल बनाते हैं। इसीलिये आपने अपने सिद्धान्त का नाम ‘आदर्शों एवं मूल्यों‘ का सिद्धान्त रखा है।

बालकों में विकास के साथ-साथ आदर्शों एवं मूल्यों का गठन होता रहता है। अत: वे जीवन भर उनका प्रयोग करते रहते हैं; उदाहरण के लिये-बालकों में यदि स्वच्छता एवं सौन्दर्यता का भाव विकसित करना है तो उन्हें सैद्धान्तिक और व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित किया जाय। भविष्य में वे स्वयं अपने इस आदर्श का पालन अपने जीवन में करते रहेंगे।

अत: निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि शिक्षा के द्वारा बालकों में आदर्शों एवं मूल्यों का गठन करना चाहिये, ताकि वे जीवन भर उनका स्थानान्तरण करके लाभ उठा सकें।

सकारात्मक अधिगम स्थानान्तरण का शिक्षण (Teaching for Positive Learning Transfer)

दैनिक जीवन के अनुभवों से स्पष्ट होता है कि अधिगम या सीखने की प्रक्रिया में सकारात्मक स्थानान्तरण का बहुत अधिक महत्त्व है। इससे सीखने की प्रक्रिया बहुत सरल हो जाती है।

संसार के प्रमुख व्यक्तियों में स्थानान्तरण की शक्ति अत्यधिक पायी गयी है। इसलिये वे प्रत्येक समस्या का हल स्वतः ही खोज लिया करते हैं। अत: हम शिक्षण के क्षेत्र में अब उन बातों पर प्रकाश डालेंगे, जो बालकों में सकारात्मक स्थानान्तरण को प्रभावपूर्ण बनाती हैं-

1. सीखने वाले की तैयारी (Preparation for learner)

आज के सभी शिक्षाशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि कोई भी ज्ञान या कर्म तभी सीखा जा सकता है, जब सीखने वाला तैयार हो। सीखने वाले की रुचि, मनोवृत्ति, तत्परता, उद्देश्य की स्पष्टता एवं शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य आदि का प्रभाव सीखने पर पड़ता है।

जब सीखने की लगन होगी तो सीखने में स्थानान्तरण स्वतः ही होगा। इसके लिये हमें बाल विकास, गत्यात्मकता और जीवन्तता का अध्ययन करना चाहिये। शिक्षक को भी बालक का व्यक्तित्व समग्र मानना चाहिये।

साथ ही उस पर अचेतन मन के प्रभावों का भी ध्यान रखा जाय, ताकि बालकों के व्यवहार को सामान्य बनाकर सीखने में सही स्थानान्तरण हो सके।

2. उपयुक्त विधियों का प्रयोग (Use of proper method)

सीखने के क्षेत्र में आज विभिन्न विधियों का प्रतिपादन हो चुका है। प्रत्येक विधि अलग-अलग ज्ञान एवं कार्य के लिये प्रयोग नहीं की जा सकती। शिक्षक को चाहिये कि वह छात्रों को विभिन्न विषयों के सीखने के लिये उत्तम विधि बतायें ताकि वे अन्य विधियों की अपेक्षा शीघ्र सीख सकें।

बालकों को व्यावहारिक ज्ञान अधिक से अधिक दिया जाय। विषयों में सह-सम्बन्ध स्थापित करके शिक्षा दी जाय। प्रयत्न और भूल, सूझ और अनुकरण की विधियों का प्रयोग सीखते समय करना चाहिये।

जब किसी ज्ञान का स्मरण करना है तो स्मरण की विभिन्न विधियों में से उपयुक्त विधि का प्रयोग करना चाहिये। इस प्रकार से बालक स्वतः ही सही विधि के द्वारा ज्ञान को सीख कर स्थानान्तरण करने में सफलता पा लेते हैं।

3. सामान्यीकरण का प्रशिक्षण (Training of generalization)

अध्यापकों को चाहिये कि वे छात्रों को बिखरे हुए तथ्यों के स्थान पर नियमों एवं सिद्धान्तों के निर्माण करने का प्रशिक्षण दें। छात्रों को अनुभवों और निष्कर्षों के आधार पर सामान्य नियमों का गठन करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।

उनको अनुभवों का सामान्यीकरण करना चाहिये, शिक्षण देना चाहिये। साथ ही छात्रों को अपनी बुद्धि का सही प्रयोग करना चाहिये। इस प्रकार से शिक्षक के सहयोग से बालक सामान्यीकरण के द्वारा स्थानान्तरण करना सीख जायेंगे।

4. विषय का पूर्ण ज्ञान (Whole knowledge of subject)

थॉर्नडाइक, जड एवं बाग्ले ने अपने-अपने प्रयोगों से स्पष्ट कर दिया है कि स्थानान्तरण तभी सही रूप से होता है, जब बालकों को विषय का सही और पूर्ण ज्ञान होता है।

विषय वस्तु के पूर्ण ज्ञान से तात्पर्य बालकों को सैद्धान्तिक और व्यावहारिक पक्षों से परिचित कराना है ताकि वे उसका स्थानान्तरण के द्वारा दैनिक जीवन में प्रयोग कर सकें।

5. समान तत्त्वों का चयन (Selection of equal elements)

थॉर्नडाइक के स्थानान्तरण के सिद्धांत का प्रयोग बालक अधिक से अधिक करते हैं। यह सरल भी है। शिक्षक को चाहिये कि वे छात्रों को ऐसा प्रशिक्षण दें ताकि वे संचित ज्ञान और अर्जित ज्ञान दोनों के समान तत्त्वों को छाँट लें, जिससे उसका स्थानान्तरण करके क्रिया को शीघ्र सीख लें। इसके लिये अनुभवों की अधिकता और बुद्धि का सही प्रयोग आवश्यक है।

जैसा कि सोरेन्सन (Sorenson) ने लिखा है, “समान तत्त्वों के सिद्धान्त के अनुसार, एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में उस सीमा तक स्थानान्तरण हो जाता है, जबकि दोनों ही समान होते हैं।

According to the theory or identical elements there is transfer form one situation to another to the extent that then are elements and components common to the two situations.

6. स्थानान्तरण का अभ्यास (Practice of transfer)

सीखने वाले स्थानान्तरण का प्रशिक्षण देने से या अभ्यास कराने से स्थानान्तरण में उन्नति होती है। उदाहरण के लिये, यदि हम सीधे हाथ (दायें) से कार्य को न करके बायें हाथ से करना सीखते हैं तो पूर्वज्ञान का स्थानान्तरण अभ्यास के द्वारा शीघ्र हो जाता है। इसमें हमें समान तत्त्वों का भी चुनाव करना पड़ता है और नियमों का सामान्यीकरण भी करना पड़ता है। अत: अभ्यास के द्वारा ही स्थानान्तरण में कुशलता आती है।

उपर्युक्त सकारात्मक स्थानान्तरण के उपायों से स्पष्ट होता है कि छात्र को अध्यापक के द्वारा तैयारी करवानी चाहिये ताकि वह विकास के साथ-साथ स्थानान्तरण करने में कुशलता प्राप्त कर ले।

अध्यापक की भूमिका के बारे में औरेटा (Orata) ने लिखा है-

  1. प्रथम स्थानान्तरण सामग्री का ज्ञान अध्यापक को होना चाहिये।
  2. द्वितीय स्थानान्तरण हेतु शिक्षण पद्धति निश्चित करना।
  3. तृतीय – बालकों में स्थानान्तरण को व्यावसायिक रूप से लागू करना चाहिये।

अधिकतम अधिगम अन्तरण हेतु शिक्षा व्यवस्था (Arrangement of Education for Maximum Transfer of Learning)

अधिगम का अन्तरण हो, इसके लिये शिक्षा व्यवस्था निम्न प्रकार से की जा सकती है-

  1. बालक को अधिक से अधिक सामान्यीकरण करने को कहा जाय। यदि बालक अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर सामान्य सिद्धांत निकाल लेता है तो अपने अधिगम का अन्तरण कर लेता है।
  2. अधिकतम अधिगम अन्तरण के लिये बालक को अर्थपूर्ण तथ्य अधिक से अधिक सीखने चाहिये। स्थानान्तरण समझने की योग्यता पर निर्भर करता है। थॉर्नडाइक (Thorndike) का कथन है- “समझने में समान वंश का ज्ञान होता है। समानता अन्तरण का मुख्य लक्षण है।
  3. बालक में उस ज्ञान को प्राप्त करने के प्रति मनोवृत्ति होनी चाहिये, जिसका अन्तरण होना है। किसी विषय-वस्तु के प्रति स्थानान्तरण के लिये उस विषय के प्रति अनुकूल मनोवृत्ति होनी आवश्यक है।
  4. शिक्षक को विषयों में समन्वय करके पढ़ाना चाहिये। इस प्रकार एक विषय के ज्ञान का अन्तरण दूसरे विषय में हो जायेगा।
  5. अधिगम के अन्तरण के लिये बालक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये।
  6. नवीन परिस्थितियों को पूर्व अनुभवों के सन्दर्भ में सीखा हुआ ज्ञान प्रयोग करने से संस्कारों का स्थानान्तरण सम्भव होता है।
  7. अधिकतम अन्तरण के लिये अधिक याद करना अधिगम के स्थानान्तरण में सहायक होता है।
  8. स्थानान्तरण होने वाले विषय के प्रति बालक में आत्म-विश्वास की मनोवृत्ति होनी चाहिये।
  9. क्रियात्मक अनुभव भी अधिगम के अन्तरण को सम्भव बनाता है।

उपर्युक्त शिक्षण पद्धति अधिकतम अधिगम के अन्तरण में सहायता करती है।

अधिगम स्थानान्तरण में शिक्षक की भूमिका (Teacher’s Role in Transfer of Learning)

अधिगम स्थानान्तरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह अधिगम का मूलाधार है, उसका प्राण है। शिक्षा देने का यही लक्ष्य होता है कि प्रत्येक व्यक्ति जीवन के साथ सामना करे और समस्या को हल करने में समर्थ हो सके।

बालकों की अधिगम-कुशलता में वृद्धि करने के लिये उनको स्थानान्तरण से पूर्णतया परिचित कराया जाना आवश्यक है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये शिक्षक को निम्न कार्य करने चाहिये-

1. स्पष्ट ज्ञान (Clear knowledge)

अधिगम स्थानान्तरण के लिये आवश्यक है कि शिक्षक जिस विषय को पढ़ा रहा है, उसका ज्ञान उसे स्पष्ट होना चाहिये। अध्यापन के समय इस बात का उसे पता होना चाहिये कि किन विषयों में उसे स्थानान्तरण का ज्ञान देना है?

अधिगम स्थानान्तरण स्वयं नहीं होता, उसकी योजना बनानी पड़ती है। अध्यापक को किसी प्रकरण को पढ़ाने के पूर्व यह ज्ञात होना चाहिये कि विद्यार्थी पूर्व से ही क्या जानते हैं? ताकि वह उस ज्ञान अथवा कौशल का उपयोग अध्यापन में कर सके और विद्यार्थियों के अधिगम में सहायता मिल सके।

  • यदि अध्यापक छात्रों को विद्यालय तथा कक्षा में जीवन की समस्याओं और वास्तविकता का ज्ञान दे तो व्यावहारिक जीवन में वे अपनी समस्याओं को हल कर सकेंगे।
  • अध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह इस प्रकार से क्रिया का अधिगम प्रस्तुत करे, जो छात्रों के लिये काल्पनिक न हो।
  • समस्याओं के समाधान पर विशेष बल दिया जाये।
  • अध्यापक को कक्षा में अपने छात्रों को सामान्य सिद्धान्तों की अधिक जानकारी देनी चाहिये तथा विशिष्ट सिद्धान्तों की कम।
  • किसी प्रत्यय को स्पष्ट करने के लिये अध्यापक को दैनिक जीवन से सम्बन्धित पर्याप्त उदाहरण देने चाहिये।
  • अध्यापक को पढ़ाते समय मुख्य बिन्दुओं पर अधिक ध्यान देना चाहिये।

2. बुद्धि (Intelligence)

अधिगम स्थानान्तरण में बुद्धि की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः शिक्षक को चाहिये कि कक्षा में कुशाग्र बुद्धि के छात्रों पर स्थानान्तरण की दृष्टि से विशेष ध्यान दें। इसका कारण है – जो छात्र कुशाग्र बुद्धि के होते हैं, वे अनुभव तथा योग्यता का उपयोग सरलतापूर्वक अन्य परिस्थिति में कर लेते हैं।

  • शिक्षक को बालक की मानसिक योग्यता एवं व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुसार पाठ्य-विषयों एवं शिक्षण-विधियों का चयन करना चाहिये तथा स्थानान्तरण के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करनी चाहिये।
  • शिक्षक को स्थानान्तरण की सफलता के लिये चिन्तन शक्ति का विकास तथा अध्ययन के प्रति रुचि जागृत करनी चाहिये। साथ ही, ज्ञानार्जन के लिये बालक को सदैव प्रेरित करते रहना चाहिये।
  • स्थानान्तरण को प्रभावित करने में बालकों की मानसिक योग्यता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अत: शिक्षक को प्रत्येक सम्भव विधि से उनकी मानसिक योग्यता तथा बुद्धि के विकास में सहयोग देना चाहिये।

3. शिक्षण विधि (Method of teaching)

शिक्षक किस विधि से पाठ को पढ़ाता है, अधिगम का स्थानान्तरण इस बात पर भी निर्भर करता है। अध्यापक यदि मनोवैज्ञानिक विधि से बालकों को पढ़ायेगा तो वे उसमें रुचि लेंगे और समस्या भी स्पष्ट हो जायेगी।

  • स्थानान्तरण की सफलता के लिये आवश्यक है कि शिक्षण को रोचक बनाया जाये। शिक्षक बालकों को किताबी कीड़ा न बनायें बल्कि उन्हें कार्यानुभव (work-experience) के माध्यम से शिक्षा प्रदान करे।
  • स्वीकारात्मक और उचित अधिगम स्थानान्तरण को पाने के लिये विशेष शिक्षा देनी चाहिये।
  • यदि कोई बालक हिन्दी भाषा के ज्ञान को किसी दूसरी प्रादेशिक भाषा के द्वारा बढ़ाना चाहता है तो उसे यह बताने की आवश्यकता है कि वह किस प्रकार अन्य भाषा के ज्ञान को हिन्दी भाषा सीखने में स्थानान्तरण करे?
  • यदि कोई बालक अधिक अच्छी स्मृति बनाना चाहता है तो उसे स्मरण करने के ढंगों में सुधार करना चाहिये।

अध्यापक को स्थानान्तरण के लिये संकेत भी देना चाहिये। उसे समान रूप वाले शब्दों के मेल पर बल देना चाहिये। उदाहरण के लिये यदि हिन्दी भाषा का ज्ञान किसी अन्य भाषाओं में स्थानान्तरित करना है तो अध्यापक को उन दोनों भाषाओं के ऐसे शब्दों को पृथक करके बताना चाहिये जो दोनों में आते हैं।

  • प्रत्येक अध्यापक को यह जानना आवश्यक है कि वे कौन-सी आदतें हैं, जो व्यक्ति के लिये उचित हैं और उन आदतों के निर्माण के लिये चेष्टा करनी चाहिये।
  • एक अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि छोटे बालक वह सब याद कर लेते हैं जिन्हें कि अध्यापक कक्षा में आवश्यक बताता है।
  • जिस विद्यालय का पाठ्यक्रम ठीक नहीं है या शिक्षा का उचित ढंग नहीं है, उस विद्यालय के बालक कभी भी अच्छे नहीं निकलेंगे।
  • अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि प्रत्येक समय बालकों को कार्य-भार से दबाये रहना अत्यन्त अनुचित है क्योंकि इससे उन्हें स्थानान्तरण करने का अवसर नहीं मिल पाता।
  • जब शिक्षा प्रदान करने में बालकों को वस्तुओं में सम्बन्ध, उदाहरणों द्वारा स्थानान्तरण का प्रयोग, इत्यादि बताया जाता है तो उनकी योग्यता में शीघ्र ही वृद्धि हो जाती है।

4. सामान्यीकरण (Generalization)

शिक्षक को चाहिये कि वह जो कुछ भी पढ़ाये वह सामान्यीकरण के आधार पर ही पढ़ाये। ऐसा करने से अधिगम स्थानान्तरण की सम्भावना अधिक होती है। शिक्षण विधियाँ ऐसी हों जिनमें सामान्यीकरण का अवसर अधिकतम प्राप्त हो।

  • विद्यार्थियों को जो भी नियम सिद्धान्त पढ़ाये जायें तब उन्हें पृथक-पृथक क्षेत्र में कैसे उपयोग किया जा सकता है? यह भी बताया जा सकता है जिससे वे सामान्यीकरण के द्वारा स्थानान्तरण कर सकें।
  • जितना अधिक सामान्यीकरण होगा उतना ही अधिक स्थानान्तरण होगा।

सामान्यीकरण करने में अध्यापक बालक की सहायता कर सकता है; जैसे यह बताना कि विपरीत ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। यह बात आवेश के लिये विद्युतीय ध्रुवों, चुम्बकीय ध्रुवों तथा यहाँ तक कि जीवितों के लिये भी सत्य सिद्ध होगी।

5. सह-सम्बन्ध (Correlation)

शिक्षा में सह-सम्बन्ध ही स्थानान्तरण का मूल बिन्दु है। मूल बिन्दु से ज्ञान को जोड़ना आवश्यक है। छात्रों को इस बात के लिये प्रोत्साहन दिया जाये कि वे दो समान वस्तुओं के सम्बन्ध तथा अन्तर को जान लें।

  • इस दृष्टि से अध्यापक को पाठ्यक्रम, विधि तथा अन्य विषयों में सह-सम्बन्ध पर ध्यान देना चाहिये।
  • पढ़ाये जाने वाले ज्ञान का सम्बन्ध पूर्व अनुभव से करा देना चाहिये।
  • अध्यापक को चाहिये कि किसी विषय विशेष की समानताओं को छात्रों को बता दें। यह भी स्पष्ट कर दें कि उस विषय का लाभ अन्य किन-किन विषयों में उठाया जा सकता है?
  • विषयों की उपलब्धियों के मध्य सह-सम्बन्ध ज्ञात कर उन्हें पाठ्य-चर्चा में सम्मिलित किया जा सकता है ताकि विद्यार्थी स्थानान्तरण का अधिकतम उपयोग कर सकें।

6. अन्तर्दृष्टि (Insight)

अधिगम स्थानान्तरण को स्थायी बनाने के लिये शिक्षक को चाहिये कि वह बालकों को अन्तर्दृष्टि विकसित करे। पूर्णाकारवादियों के अनुसार बालकों के समक्ष समस्या पूर्ण रूप से रखी जानी चाहिये। समान परिस्थितियों में अन्तर्दृष्टि के अवसर प्रदान करने चाहिये।

7. पाठ्यक्रम (Curriculum)

अधिगम स्थानान्तरण में पाठ्यक्रम का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। आजकल छात्रों को उनकी आवश्यकता एवं रुचि के अनुसार निर्मित पाठ्यक्रम पर बल दिया जाता है।

  • समाज का प्रतिबिम्ब विद्यालय है। विद्यालय में पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम छात्रों की आवश्यकता के अनुकूल होना चाहिये।
  • पाठ्यक्रम के माध्यम से भावी जीवन की आवश्यकताओं का परिचय कराया जाना आवश्यक है।
  • पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय इस तथ्य का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये कि पाठ्यक्रम निरर्थक, अनुपयोगी तथा अरुचिपूर्ण न हो, बल्कि उसमें सार्थकता का समावेश होना चाहिये।
  • पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय बालकों के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिये।
  • बालक के वातावरण तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रखना चाहिये।

विद्यालय के संचालकों को यह देखना चाहिये कि वे विद्यालय के बाहर तथा भीतर किन आदर्शों तथा मूल्यों की प्राप्ति चाहते हैं? इसके पश्चात् यह योजना बनानी चाहिये कि उद्देश्यों की पूर्ति के लिये कौन-कौन से ज्ञान तथा कौशल अपनाये जायें।

  • पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय सह-सम्बन्ध पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिये अर्थात् दो या दो से अधिक विषयों में कुछ विषय-वस्तु समान हों ताकि जो भी विषय बाद में पढ़ाया जाये उसके लिये पूर्व की विषय-वस्तु अभिप्रेरणा का कार्य करे।
  • विषयों की उपलब्धियों के मध्य सम्बन्ध ज्ञात कर उन्हें पाठ्यचर्या में सम्मिलित किया जा सकता है ताकि विद्यार्थी स्थानान्तरण का अधिकतम उपयोग कर सकें।

वर्तमान काल में शिक्षाविद् प्रयोगात्मक तथा उपयोगी शिक्षा पर अधिक बल देते हैं। वे इस बात पर बल डालते हैं कि पाठशाला के पाठ्यक्रम में सदैव यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि दिन-प्रतिदिन की शिक्षा में बालकों की दिन-प्रतिदिन की समस्याएँ उपस्थित सामग्री का निर्णय और चुनाव शब्द विन्यास, पढ़ना तथा गणित आदि में उपयोगिता का अंश होना चाहिये और उसका जीवन की स्थिति से घनिष्ठ सम्बन्ध होना चाहिये।

  • बालक को उन शब्दों का शब्द-विन्यास सीखना चाहिये और वह पढ़ना चाहिये, जिनकी उसे आवश्यकता हो; जैसे – धीमा पढ़ना, चुपचाप पढ़ना, साधारण समाचार-पत्र को ग्रहण करने के दृष्टिकोण से पढ़ना तथा मैगजीन पढ़ना आदि।
  • पाठ्य सामग्री के चुनाव में बालक की उम्र तथा रुचि को नहीं भूलना चाहिये।
  • पाठ्यक्रम का चयन किसी न किसी व्यावसायिक रुचि, शारीरिक रक्षा और स्वास्थ्य, नागरिकता, घर, सामाजिक क्रियाओं आदि के अनुसार होना चाहिये।
  • बालकों को अपने जीवन में जिस व्यवहार की आवश्यकता हो, पाठ्यक्रम को उसकी ओर सम्यक् रूप से संकेत करना चाहिये।

8. चिन्तन (Thinking)

अधिगम स्थानान्तरण की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि अध्यापक, छात्रों में चिन्तन का विकास करे। चिन्तन का विकास इस प्रकार किया जाये कि वह आदत बन जाये।

मर्सेल (Mursell) के अनुसार, “जब योग्यता बहुत समझदारी से दिखलायी जाती है और स्वयं उसी के लिये संगठित और व्यवस्थित की जाती है तब उसके शिक्षण और संगठन से स्थानान्तरण अपने आप ही सरल हो जाता है। विलोमतः जब हम किसी योग्यता के स्थानान्तरण के लिये जानबूझकर कर प्रयत्न करते हैं तब हम प्राप्ति का मार्ग उसके लिये प्रशस्त कर देते हैं।

9. अभिवृत्ति का विकास (Development of aptitude)

यदि अध्यापक यह चाहता है कि उसके छात्रों में अधिगम स्थानान्तरण की योग्यता का विकास हो तो उसके लिये आवश्यक है कि वह छात्रों में ज्ञान के अन्य परिस्थितियों में उपयोग करने पर अधिक बल दे।

ऐसा करने से उनमें अभिवृत्ति का विकास होगा और वे प्रत्येक परिस्थिति में ज्ञान का उपयोग कर सकेंगे। यह ध्यान रखना चाहिये कि ज्ञान का विकास आदर्श विधि से हो अन्यथा अधिगम स्थानान्तरण में सफलता नहीं मिलेगी।

10. ज्ञान का उपयोग (Application of the knowledge)

शिक्षक को चाहिये कि वह छात्रों को इस बात के लिये प्रोत्साहित करे कि उन्हें जो भी ज्ञान दिया जाये या जो भी क्रिया सिखायी जाये, उसका पूरा-पूरा उपयोग वे सामान्य जीवन में करें।

ऐसा करने से छात्रों की अन्तर्निहित योग्यता का विकास होगा और वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करेंगे। प्राप्त ज्ञान का उपयोग ही स्थानान्तरण की अपेक्षाओं को पूरा करता है।