सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धांत – Theory of Insight

Antardrishti or Soojh Ka Siddhant

अन्तर्दृष्टि या सूझ का सिद्धांत

सूझ का अधिगम सिद्धांत गैस्टाल्टवादियों की देन है। वे लोग समग्र में विश्वास करते हैं, अंश में नहीं। जैसा कॉलसनिक ने लिखा है, “अधिगम व्यक्ति के वातावरण के प्रति सूझ तथा आविष्कार के सम्बन्ध को स्पष्ट करने वाली प्रक्रिया है।

Learning is to the field theorists a process of discovering and understanding relationship of one’s environment.

इस सिद्धांत के प्रणेता कोहलर और बर्दीमर थे। ये सीखने को सामग्री की सार्थकता और परिणाम पर आधारित मानते हैं। इन्होंने सूझ को बुद्धि का परिणाम मानकर कार्य किया है।

कोहलर ने लिखा है, “सूझ आकस्मिक ज्ञान है, जब एक व्यक्ति स्थिति विशेष को देखकर निश्चित ज्ञान प्राप्त करता है। अन्य शब्दों में जब हम किसी समस्या का समाधान प्रत्यक्ष सम्बन्धों के आधार पर स्थापित करते हैं, तो अति उत्तम होता है।

Insight means a sudden understanding, as when one ‘seen through’ a situation or gets the idea. In other woin means the solving of a problem through perceiving the relationship essential to solution.

कोहलर का प्रयोग

सूझ के द्वारा सीखने में कोहलर के प्रयोग अधिक प्रसिद्ध हैं। उसने सुल्तान नामक चिम्पाजी पर अपना प्रयोग किया। यह प्रयोग चार चरणों में पूरा किया गया। ये चरण इस प्रकार हैं-

प्रथम चरण

सबसे पहले सुल्तान को पिंजड़े में बन्द कर दिया और उसमें एक डण्डा भी रख दिया तथा बाहर केले रख दिये गये। सुल्तान ने केले प्राप्त करने के लिये प्रयत्न किये, लेकिन असफल रहा और थक कर बैठ गया। अचानक उसने पास में पड़ा डण्डा उठाया और उसके द्वारा केला प्राप्त कर लिया।

द्वितीय चरण

इस चरण में पिंजड़े में दो ऐसे डण्डे रखे गये, जिनको जोड़कर एक बनाया जा सकता था और केले इतनी दूरी पर रखे गये कि एक डण्डे से न प्राप्त हो सकें। सुल्तान ने अनेकों प्रयत्नों के पश्चात् दोनों डण्डों को जोड़ लिया और केले प्राप्त कर लिये।

तृतीय चरण

तीसरे चरण में केले पिंजड़े की छत से लटका दिये और पिजड़े में एक सन्दूक भी रख दिया। अनेक प्रयत्न करने के पश्चात् सुल्तान ने सन्दूक पर चढ़कर केले प्राप्त कर लिये।

चतुर्थ चरण

इस चरण में पिंजड़े में दो सन्दूक रखे गये और केले को इतनी ऊँचाई पर लटकाया गया कि वह एक सन्दूक की सहायता से उसे प्राप्त न कर पाये। सुल्तान ने अथक् प्रयत्न किये, लेकिन केले प्राप्त न कर पाया। बाद में उसने एक सन्दूक को दूसरे के ऊपर रखा और चढ़कर केले प्राप्त कर लिये।

Kohlar Ka Prayog

अतः सिद्ध हुआ कि सुल्तान का लक्ष्य केले प्राप्त करना प्रयत्न एवं भूल या साहचर्य के द्वारा न होकर सूझ के द्वारा सम्पन्न हुआ।

सूझ की विशेषताएँ (Characteristics of Insight)

सूझ पर किये गये विभिन्न प्रयोगों से सूझ की विशेषताएँ या गुण निम्न प्रकार से स्पष्ट होते हैं-

1. स्थिति की व्यवस्था (Arrangement of situation)

सूझ उत्पन्न होने में सरलता तभी होती है, जब हम समस्या से सम्बन्धित सभी अंगों को इस प्रकार से व्यवस्थित कर लेते हैं कि उनमें सम्बन्ध देखा जा सके। जैसे– डण्डा और केला एक ही सीध में रखे जायें।

2. पुनरावृत्ति (Repetition)

सूझ में कार्य की पुनरावृत्ति सही तरीके से होती है, उसमें गलती की सम्भावना नहीं रहती है। अतः सीखने का स्थायित्व होता है।

3. स्थानान्तरण (Transfer)

सूझ के द्वारा सीखा गया ज्ञान स्थानान्तरण में उपयोगी होता है। इसमें साधन और साध्य के बीच संज्ञानात्मक सम्बन्ध होता है।

4. अनुभव (Experience)

सूझ व्यक्ति के अनुभव पर निर्भर होती है। जितना अधिक अनुभव सीखने वाले को होगा, उतनी ही सूझ का प्रयोग वह सीखने में कर लेगा।

सूझ का अधिगम में महत्त्व (Importance of insight in learning)

यदि ध्यान से देखा जाय, तो सीखने में सूझ का निम्न प्रकार महत्त्व है-

1. दैनिक जीवन में महत्त्व (Importance in daily life)

छोटे बच्चे टॉर्च में बैटरी, पैन में स्याही भरना आदि को सूझ के द्वारा ही सीखते हैं। कभी-कभी तो अचानक सूझ उत्पन्न होकर आश्चर्यचकित कर देती है।

2. सृजन में उपयोगी (Useful in creativity)

संसार की सभी उपादेयताएँ सूझ के ऊपर निर्भर करती हैं। खोज कार्य सूझ के ही परिणाम हैं।

3. सौन्दर्यानुभूति (Aesthetic)

सूझ के द्वारा ही कला, साहित्य, संगीत आदि विधाओं का विकास हुआ है। सौन्दर्य विकास के लिये को सूझ को आवश्यक मानते हैं।

4. आदत निर्माण (Habit formation)

स्किनर ने सूझ का प्रयोग आदतों के निर्माण के लिये उत्तम माना है। सूझ के द्वारा लिया गया निर्णय लाभदायक होता है।

5. समस्या समाधान (Problem solving)

शिक्षा के क्षेत्र में बालकों के सामने समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, सूझ के द्वारा उनका हल बालक स्वयं ही निकाल सकता है। गेट्स ने स्वयं खोज के लिये सूझ को उत्तम माना है।

6. लक्ष्य प्राप्ति (Object realisation)

ड्रेवर ने लक्ष्य प्राप्ति में सूझ का महत्त्व माना है। सूझ बालक को किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में उचित व्यवहार पर आधारित चेतना प्रदान करती है।

अतः शिक्षा के क्षेत्र में सूझ की उपयोगिता बहुत अधिक है जैसा कि गैरिसन एवं अन्य ने लिखा है, “विद्यालय में बालक के समस्या समाधान पर आधारित अधिकांश सीखने की इस सिद्धान्त के द्वारा व्याख्या की जा सकती है।

Much of the child’s problems solving learning is school can be explained by this theory.