निरीक्षण विधि – निरीक्षण द्वारा सीखना, प्रभावशीलता, गुण, दोष

Nirikshan Vidhi, Nirikshan Dwara Sikhna

निरीक्षण विधि (Observation Method)

निरीक्षण विधि को भी एक प्रभावशाली अधिगम विधि के रूप में स्वीकार किया जाता है। बालक में जितनी अधिक गहन एवं व्यापक निरीक्षण की क्षमता होगी बालक उतनी ही तीव्र गति से सीखने का प्रयास करेगा।

जैसे– जेम्सवाट ने चाय की केतली के ढक्कन के ऊपर-नीचे गिरने की प्रक्रिया का गहन निरीक्षण किया तथा उस पर तार्किक रूप से विचार किया तो यह जान लिया कि भाप में शक्ति होती है। इसी आधार पर उसने भाप के इन्जन का निर्माण करके अपने आपको इतिहास में अमर कर लिया।

ठीक इसी प्रकार बालक विद्यालय, घर एवं समाज में अनेक तथ्यों को निरीक्षण के माध्यम से सीखते हैं। बालक वर्षा काल में पौधों के उगने, फसलों के उत्पादन एवं कुहरे के पड़ने के बारे में सीखता है। वह इस सन्दर्भ में अनेक प्रश्न अपने आप से करता है, अपने सहयोगियों से करता है तथा एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचकर ज्ञान प्राप्त करता है।

बालक के निरीक्षण की प्रक्रिया विद्यालय एवं विद्यालय के बाहर चलती रहती है। इसलिये इसे एक व्यापक विधि के रूप में स्वीकार किया जाता है। निरीक्षण विधि को बालकों के सीखने की प्रभावशाली विधि माना जाता है।

निरीक्षण द्वारा सीखने की विधि के प्रभावशीलता सम्बन्धी तथ्य (Effectiveness Related Factors of Learning by Observation Method)

निरीक्षण विधि को प्रभावशाली एवं प्रासंगिक बनाने में उसके उपयोग एवं लाभों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस आधार पर ही उसको वर्तमान समय में बालकों के सीखने की प्रभावशाली एवं सर्वोत्तम विधि माना जाता है। इस विधि के प्रमुख लाभों का वर्णन निम्न रूप में किया जा सकता है-

1. छात्र की रुचि के अनुसार ज्ञान (Knowledge according to interest of students)

सामान्य रूप से छात्र अपनी रुचि एवं उपयोगिता के आधार पर ही क्रियाओं का गहन निरीक्षण करता है। इस गहन निरीक्षण के आधार पर ही वह ज्ञान प्राप्त करता है।

जैसे– बालक विद्यालय में जाता है तो वहाँ वह विद्यालय की उस वस्तु का निरीक्षण करता है जो कि उसके लिये रुचिकर है; जैसे-एक छात्र प्रयोगशाला के उपकरणों का निरीक्षण करता है वहीं दूसरा छात्र उद्यान का गहनता से निरीक्षण करता है।

इस प्रकार प्रत्येक छात्र को उसकी आवश्यकता एवं रुचि के अनुसार ज्ञान की प्राप्ति निरीक्षण विधि द्वारा होती है।

2. छात्रों को स्वतन्त्रता (Freedom to students)

इस विधि में छात्र पूर्णतः स्वतन्त्र होता है। बालक के समक्ष विद्यालय एवं सामाजिक परिवेश में विविध प्रकार की परिस्थितियाँ होती हैं। इन परिस्थितियों में से बालक को कितनी परिस्थितियों का गहन निरीक्षण करता है तथा कितनी परिस्थितियों का सामान्य निरीक्षण करना है, इसके लिये स्वतन्त्र है।

स्वतन्त्र स्थिति में बालक अधिक अधिगम कर सकता है। इसलिये इस विधि को एक प्रभावशाली विधि के रूप में स्वीकार किया जाता है।

3. मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुरूप (According to psychological principles)

निरीक्षण विधि को मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुकूल माना जाता है। इसमें छात्र पूर्णतः मानसिक एवं शारीरिक रूप से क्रियाशील रहता है क्योंकि जब छात्र किसी घटना का निरीक्षण करता है तो अपने चिन्तन के अनुसार वह उसमें विविध परिवर्तन करते हुए प्रयोग करता है तथा एक नवीन तथ्य पर पहुँच जाता है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार किसी कार्य को सीखने में पूर्ण मनोयोग की आवश्यकता होती है जो कि इस विधि में देखा जाता है।

4. बाल केन्द्रित विधि (Child centred method)

इस विधि में बालक के निरीक्षण पर शिक्षक का कोई नियन्त्रण नहीं होता। शिक्षक का कार्य बालक के निरीक्षण सम्बन्धी तथ्यों के बारे में ज्ञान प्रदान करना, प्रश्नों के उत्तर देना तथा समस्याओं का समाधान करना होता है।

इस प्रकार यह विधि पूर्णत: बालकों के अनुरूप अर्थात् बाल केन्द्रित होती है। बाल केंद्रित शिक्षा वर्तमान समय में उपयोगी एवं आवश्यक विधियों के रूप में स्वीकार की जाती हैं।

5. व्यापक ज्ञान (Broad knowledge)

निरीक्षण विधि द्वारा सीखने की प्रक्रिया में व्यापक ज्ञान की उपलब्धि होती है। जब छात्र किसी भी तथ्य के बारे में व्यापक निरीक्षण करता है तो उसको जब तक उचित एवं स्पष्ट निष्कर्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती है उसका चिन्तन एवं नियन्त्रण चलता रहता है।

इस प्रकार की प्रक्रिया प्रत्येक क्षेत्र में होती है, जिससे छात्र को प्रत्येक घटना एवं तथ्य से सम्बन्धित व्यापक ज्ञान की प्राप्ति सम्भव होती है

6. तर्क शक्ति का विकास (Development of logic power)

निरीक्षण विधि के माध्यम से छात्रों में तर्क शक्ति का विकास होता है। छात्र किसी भी घटना के व्यापक एवं गहन निरीक्षण के बाद उस घटना के सन्दर्भ में विविध प्रकार के तर्क करने लगता है।

इससे एक ओर उसकी तर्क शक्ति का विकास होता है वहीं दूसरी ओर जब उसे अपने तर्कों का उचित उत्तर प्राप्त होता है तो उसके ज्ञान में वृद्धि होती है। इसलिये निरीक्षण विधि को प्रभावशाली विधि के रूप में स्वीकार किया जाता है।

7. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (Development of scientific attitude)

निरीक्षण विधि के द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास सम्भव होता है क्योंकि निरीक्षण की प्रक्रिया प्रयोग एवं सत्यता पर आधारित होती है। निरीक्षण के बाद एक सत्य निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है।

निरीक्षण विधि में छात्र विविध प्रकार के प्रयोग करता है तथा घटना की गहराई तक जाने का प्रयास करता है। इसलिये इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।

8. मानसिक चिन्तन को प्रोत्साहन (Motivation to mental thinking)

छात्रों में निरीक्षण विधि द्वारा मानसिक चिन्तन को प्रोत्साहित किया जाता है; जैसे- न्यूटन के ऊपर सेब गिरा तो उसने यह सोचा कि यह सेब ऊपर क्यों नहीं गया? उसने सोचा कि पृथ्वी में कोई न कोई शक्ति अवश्य है जो वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस प्रकार उसने गुरुत्वाकर्षण शक्ति की खोज की।

इस प्रकार निरीक्षण के द्वारा व्यक्ति विविध घटनाओं के सन्दर्भ में नवीन तो को खोजने का प्रयास करते हैं।

निरीक्षण विधि के दोष (Demerits of Observation Method)

निरीक्षण विधि की प्रमुख विशेषताओं एवं गुणों के साथ-साथ इसमें कुछ दोष भी पाये जाते हैं। इन दोषों का वर्णन निम्न रूप में किया जा सकता है-

  1. इस विधि में बालक को अधिक महत्त्व दिया गया हैं बालक सदैव ही निरीक्षण के आधार पर किसी निश्चित तथ्य पर नहीं पहुँच सकता क्योंकि कक्षा में सभी प्रकार के मानसिक स्तर के छात्र होते हैं।
  2. विद्यालय में निरीक्षण विधि के माध्यम से अधिगम व्यवस्था उपलब्ध कराना भारतीय विद्यालयों में सम्भव नहीं है क्योंकि पाठ्यक्रम के अनुरूप निरीक्षण गतिविधियों की व्यवस्था में अधिक धन एवं संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  3. निरीक्षण के माध्यम से अधिगम दिशाहीन होता है, जबकि पाठ्यक्रम में सभी विषयों के ऊपर ध्यान दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, निरीक्षण में किसी एक घटना के माध्यम से ही इसकी सत्यता को जानने का प्रयास किया जाता है।
  4. निरीक्षण विधि से छात्र के पाठ्यक्रम को पूर्ण नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रत्येक विषय में इसका प्रयोग व्यापक रूप से नहीं किया जा सकता।

निरीक्षण विधि द्वारा अधिगम को प्रभावशाली बनाने में शिक्षक, विद्यालय एवं परिवार की भूमिका

Role of Teacher, Schools and Family to Make Effective Learning by Observation Method

निरीक्षण विधि के माध्यम से छात्रों को उचित अधिगम कराने में तथा इस विधि को प्रभावशाली, सर्वोत्तम एवं प्रासंगिक बनाने में शिक्षक एवं विद्यालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस भूमिका को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-

1. विद्यालय का शैक्षिक वातावरण (Educational environment of school)

विद्यालय का शैक्षिक वातावरण ही निरीक्षण विधि को प्रभावशाली बनाता है। शैक्षिक वातावरण का आशय उन स्थितियों का सृजन करने से है जो कि पाठ्यक्रम से सम्बन्धित होती हैं। बालक के समक्ष उन स्थितियों को रखकर बालक को उन स्थितियों पर ही सोचने को विवश किया जाता है। इस प्रकार बालक निरीक्षण के द्वारा अधिगम करता है।

2. शिक्षक द्वारा समस्याओं का समाधान (Solution of the problems by the teacher)

निरीक्षण विधि में अधिगम करते समय छात्र के मन में अनेक प्रकार के समस्यात्मक प्रश्न उत्पन्न होते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर के अभाव में उसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ता है। इस स्थिति में शिक्षक को छात्रों की समस्याओं का समाधान करना चाहिये तथा मूल तथ्य तक उसकी पहुँचने में सहायता करनी चाहिये।

3. विद्यालय में सार्थक गतिविधियों की व्यवस्था (Arrangement of meaningful activities in school)

विद्यालय में सार्थक गतिविधियों की व्यवस्था करनी चाहिये, जिससे प्रत्येक गतिविधि का सम्बन्ध छात्र के पाठ्यक्रम एवं विषयों से हो। इससे छात्र जिस किसी भी गतिविधि का निरीक्षण करेगा तो एक ओर उसका पाठ्यक्रम पूर्ण होगा वहीं दूसरी ओर छात्र की तर्क एवं चिन्तन शक्ति का विकास होगा।

4. उचित निरीक्षण की प्रेरणा (Motivation to proper observation)

अनेक अवसरों पर यह देखा जाता है कि छात्र उन स्थितियों पर अधिक ध्यान देता है जो कि खेल या अन्य मनोरंजक गतिविधियों से सम्बन्धित हैं तो शिक्षक का यह दायित्व बनता है कि धीरे-धीरे उसको उन गतिविधियों के लिये प्रोत्साहित करे जो कि पाठ्यक्रम से सम्बन्धित हैं या उन निरर्थक गतिविधियों को ही सार्थक गतिविधियों के रूप में परिवर्तित करके छात्रों को सार्थक निरीक्षण की प्रेरणा प्रदान करे।

5. स्तरानुकूल निरीक्षण व्यवस्था (Observation system according to level)

विद्यालय में निरीक्षण सम्बन्धी गतिविधियों का सृजन करते समय छात्रों के स्तर का ध्यान अवश्य रखना चाहिये; जैसे– प्राथमिक स्तर के छात्रों को सजीव एवं निर्जीव वस्तुओं का ज्ञान कराने के लिये उनके कक्षा-कक्ष में जानवर पेड़-पौधे एवं मेज-कुर्सी आदि के चित्र रखे जा सकते हैं।

इनको देखकर बालक सजीव एवं निर्जीव वस्तुओं के बारे में विविध प्रकार के तथ्यों के बारे में जान सकते हैं।

6. शिक्षक का सकारात्मक व्यवहार (Positive behaviour of teacher)

निरीक्षण विधि से अधिगम को प्रभावशाली बनाने में शिक्षक का सकारात्मक व्यवहार महत्त्वपूर्ण माना जाता है। निरीक्षण पद्धति में छात्र द्वारा अनेक प्रश्न एवं शंकाएँ शिक्षक के समक्ष रखी जाती हैं। शिक्षक को धैर्य से इन सभी प्रश्नों का उत्तर देना चाहिये।

छात्र पर क्रोधित होकर बोलने से छात्र पुन: कोई प्रश्न नहीं करेगा। इसलिये यह आवश्यक है कि छात्र के प्रति शिक्षक का व्यवहार सकारात्मक हो।

7. अभिभावक का सकारात्मक व्यवहार (Positive behavior of parents)

अनेक अवसरों पर अभिभावक यह चाहते हैं उनका बालक मात्र किताबी ज्ञान में उलझा रहे। इस प्रकार की व्यवस्था निरीक्षण विधि के विपरीत होती है। अभिभावकों को छात्र के निरीक्षणात्मक कार्यों एवं गतिविधियों में पूर्ण सहयोग देना चाहिये।

जैसे– एक छात्र घर पर अंकुरण सम्बन्धी विविध निरीक्षण गतिविधियों को सम्पन्न करना चाहता है तो अभिभावकों को उसका सहयोग करना चाहिये।

8. उचित निर्देशन व्यवस्था (Proper guidance system)

विद्यालय में छात्रों के लिये उचित निर्देशन व्यवस्था होनी चाहिये, जिससे छात्र निरीक्षण सम्बन्धी गतिविधियों को सफलता के साथ सम्पन्न कर सकें।

निर्देशन व्यवस्था के माध्यम से छात्र सार्थक रूप से घटनाओं का निरीक्षण करेगा तथा उनका संश्लेषण एवं विश्लेषण करते हुए सार्थक तथ्यों तक पहुँचने का प्रयास करेगा। निर्देशन व्यवस्था का कार्य शिक्षक द्वारा भी सरलता से किया जा सकता है।

9. रुचिपूर्ण निरीक्षण व्यवस्था (Interested observation system)

निरीक्षण विधि को प्रभावशाली बनाने के लिये आवश्यक छात्रों की रुचि का विशेष ध्यान दिया जाये। छात्र जिस घटना के सन्दर्भ में निरीक्षण करने में रुचि प्रदर्शित कर रहा है तो शिक्षक को उसे रोकना नहीं चाहिये वरन् उसकी रुचि का ध्यान रखते हुए उस घटना से सम्बन्धित तथ्यों के बारे में उसको ज्ञान प्रदान करना चाहिये अर्थात् उसका सहयोग करना चाहिये। इस प्रकार रुचिपूर्ण  निरीक्षण द्वारा अधिगम की प्रक्रिया तीव्र होती है।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि विविध प्रकार की विद्यालयी सुविधाओं एवं व्यवस्थाओं के आधार पर ही निरीक्षण विधि को सर्वोत्तम, प्रासंगिक एवं उपयोगी बनाया जा सकता है तथा इसका लाभ छात्रों को पहुँचाया जा सकता है।