मानसिक स्वास्थ्य – अर्थ, परिभाषा, स्वरूप, कारण और निवारण, Mental Health in Hindi

Mansik Swasthya

मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ
Meaning of Mental Health

बालकों में मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित व्यवहार की अनेक समस्याएँ देखी जाती हैं। इससे परिवार तथा विद्यालय का वातावरण अव्यवस्थित हो जाता है। जिस बालक का व्यवहार असामान्य है, वह अवश्य ही मानसिक रूप से रुग्ण होगा।

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। उदाहरण के लिये, कोई बालक प्रतिभाशाली या बुद्धि का तेज है, किन्तु वह थोड़ी-थोड़ी बात पर झुंझला जाता है तो वह बालक अवश्य ही मानसिक रूप से अस्वस्थ होगा अथवा ऐसा बालक शारीरिक रूप से विक्रत होगा।

मानसिक अस्वस्थता की दशा में कोई बालक सामान्य व्यवहार नहीं करता। न ही वह विभिन्न जटिल परिस्थितियों से समायोजन कर पाता है, जबकि मानसिक रूप से स्वस्थ बालक कठिनतम परिस्थितियों में सामंजस्य स्थापित कर लेता है, कठिन स्थिति में निदान का पथ खोज लेता है तथा उसका मन अध्ययन में लगता है।

मानसिक रूप से अस्वस्थ बालक अपने विद्यालय, साथी तथा शिक्षकों के लिये सिर दर्द बन जाता है। बालक के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के अनेक कारण होते हैं। अत: बालक के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारणों का पता लगाकर उनका निदान करना अध्यापक का प्रमुख कार्य होता है।

बाल विकास तथा शिक्षा के विकास के लिये शिक्षक तथा बालक का मानसिक रूप से स्वस्थ रहना शिक्षण प्रक्रिया का प्रथम कार्य है।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संगठन, न्यूयार्क के अनुसार, “मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है कि बालक अपने कार्य में, शाला में, परिवार में, सहयोगियों तथा समुदाय के साथ ठीक प्रकार से रहे। इसका अभिप्राय प्रत्येक व्यक्ति के उस तरीके से हैं, जिसके द्वारा वह अपनी इच्छाओं, महत्त्वाकांक्षाओं, विचारों, भावनाओं और अन्तरात्मा का समन्वय करता है जिससे वह जीवन की उन माँगों को पूरा कर सके, जिनका उसे सामना करना है।

मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषाएँ
Definitions of Mental Health

डॉ. सरयूप्रसाद चौबे के शब्दों में मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा- “मानसिक रूप से स्वस्थ न रहने पर बालक का विकास कुण्ठित हो जाता है। मानसिक अस्वस्थता के कारण अनेक बालक समाज पर बोझ बने दिखायी देते हैं। इसीलिये हमारे जीवन में मानसिक स्वास्थ्य का महत्त्व शारीरिक स्वास्थ्य से कहीं कम नहीं है।

अन्य विद्वानों के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा-

  1. हेड फील्ड ने कहा है, “सम्पूर्ण व्यक्ति की सम्पूर्ण एवं समन्वित कार्यशीलता को मानसिक स्वास्थ्य कहा जाता है।”
  2. क्रो एवं क्रो का कथन है, “मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान वह विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध मानव कल्याण से है और जो मानव सम्बन्धों के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है।”
  3. ड्रेवर के शब्दों में, “मानसिक स्वास्थ्य के नियमों की खोज करना और उसके संरक्षण के उपाय करना।”
  4. लेडेन के अनुसार, “मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है-वास्तविकता के धरातल पर वातावरण से सामंजस्य स्थापित करना।”

मानसिक स्वास्थ्य का स्वरूप
Nature of Mental Health

हमारा मुख्य ध्येय बालकों के मानसिक स्वास्थ्य को ठीक बनाये रखना है। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के बिना बालकों की योग्यताओं का उचित विकास सम्भव नहीं है। जिन बालकों में भय, चिन्ता, निराशा तथा अन्य समायोजन दोषों का विकास हो जाता है। उनका मन पढ़ने में नहीं लगता और सीखने में उन्नति नहीं हो पाती।

इसके अतिरिक्त समायोजन दोष वाले बालक अनेक प्रकार की समस्याएँ रखते हैं जिनको समझने और समाधान के लिये प्रत्येक अध्यापक एवं अभिभावक को मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का ज्ञान अति आवश्यक है।

एक समय था जबकि बच्चे की बुद्धि, रुचि एवं मानसिक स्थिति की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। उस समय शिक्षा पूर्णतया अध्यापक केन्द्रित थी और शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों को ‘थ्री आर‘ का ज्ञान देना था।

किन्तु अब शिक्षा का केन्द्र बालक बन गया है, उसकी मानसिक स्थति, रुचि एवं अन्य योग्यताओं को आधार मानकर ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।

Obstructory Factors in Mental Health

मानसिक स्वास्थ्य में बाधक तत्त्व

बालक के मानसिक स्वास्थ्य को जो तत्त्व क्षीण कर देते हैं अथवा प्रभाव डालते हैं, वे निम्न हैं-

1. वंशानुक्रम तत्त्व का प्रभाव

वंशानुक्रम दोषपूर्ण होने के कारण बालक मानसिक दुर्बलता, अस्वस्थता तथा एक विशेष प्रकार की मानसिक अस्वस्थता प्राप्त करता है। अत: वंशानुक्रम प्रभाव का प्रमुख घटक है। इस प्रकार बालक समायोजन करने में कठिनाई का अनुभव करता है।

2. शारीरिक अस्वस्थता का प्रभाव

जो बालक शारीरिक रूप से अस्वस्थ रहते हैं, वे सामान्य जीवन में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। अत: शारीरिक अस्वस्थता का घटक मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। शारीरिक स्वास्थ्य अनुकूल होने की दशा में ही मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहता है।

3. शारीरिक दोषों का प्रभाव

बालक के शारीरिक दोष विकलांगता अथवा किसी प्रकार शारीरिक विकृतियाँ बालक के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। ऐसे बालक हीनता तथा कुण्ठाओं से ग्रसित होते हैं। इस प्रकार वे समाज से समायोजन नहीं कर पाते।

4. पारिवारिक परिस्थितियों का प्रभाव

इसमें पारिवारिक विघटन, परिवार की अनुशासनहीनता, निर्धनता, संघर्ष, माता-पिता का परस्पर दुर्व्यवहार इत्यादि अनेक घटक आते हैं। इन बाधक तत्त्वों के कारण बालकों का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता।

कुछ माता-पिता अपने बालकों को बहुत लाड़-दुलार देते हैं। उन्हें अधिक विलासी साधन उपलब्ध कराते हैं। इससे उनकी मनोवृत्ति असामान्य हो जाती है।

कुछ नौकरी तथा व्यवसाय से अधिक व्यस्त रहने के कारण भली प्रकार ध्यान नहीं दे पाते अथवा बालकों को छात्रावासों में भर्ती कर देते हैं। प्यार के अभाव में भी बालकों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है

इन सभी बाधक तत्त्वों के कारण बालक असामान्य हो जाते हैं। इस कारण वे परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते।

5. विद्यालयी वातावरण का प्रभाव

विद्यालयी वातावरण; जैसे-भेद-भाव, छुआछूत, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अभाव, इच्छा, दमन, पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं का अभाव, भय,आतंक आदि तत्त्व बालक के मानसिक स्वास्थ्य को खराब करते हैं।

अनुशासन की कठोरता, दोषपूर्ण पाठ्यक्रम, नीरस शिक्षण विधियाँ, अमनोवैज्ञानिक प्रणालियाँ, परीक्षा प्रणाली का दोषपूर्ण होना, पुरस्कार वितरण में भेद-भाव, कक्षा का दूषित वातावरण, जलवायु एवं प्रकाश व्यवस्था का अभाव, छोटी-छोटी त्रुटियों पर भारी दण्ड की व्यवस्था, शिक्षक का नीरस एवं कठोर व्यवहार एवं पक्षपातपूर्ण रवैया आदि बाधक तत्त्व बालक के मानसिक स्वास्थ्य को खराब कर देते हैं एवं उनकी उन्नति में बाधक होते हैं।

बालक की रुचियाँ चूंकि प्रमुख होती हैं अत: रुचि के अनुसार कार्य न देना भी मानसिक स्वास्थ्य की विकृति का प्रतीक है।

6. मनोरंजन तथा सांस्कृतिक क्रिया कलापों के अभाव का प्रभाव

बालक मनोरंजन, जिज्ञासा तथा खेलप्रिय होते हैं। यदि उनको यह साधन उपलब्ध नहीं कराये जाते तो मानसिक रूप से अस्वस्थता का अनुभव करते हैं। वे निराश तथा नीरस हो जाते हैं। उनका मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। अत: यह बिन्दु भी विचारणीय हैं।

Measures of Mental Health Improvement

मानसिक स्वास्थ्य सुधार के उपाय (निराकरण)

बालक के मानसिक रूप से स्वस्थ न रहने के कारण उसके अन्दर असमायोजन उत्पन्न हो जाता है। इससे बालक पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वह समायोजन उचित रूप से नहीं कर पाता। उसकी क्षमता में कमी आ जाती है।

छात्र के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा हेतु निम्न उपाय करने चाहिये-

1. शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान: अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिये अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य का होना भी आवश्यक है। इसलिये बालक को सदैव अपने शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिये।

2. मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की शिक्षा: प्रत्येक बालक को मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिये। ऐसा करने से वह अपनी कठिनाइयों को समझकर उनका उचित उपचार कर सकेगा, जिससे उसका समायोजन भी ठीक बना रहेगा।

3. आर्थिक कठिनाइयों को दूर करना: बालक में समायोजन का मुख्य कारण उसकी आर्थिक स्थिति होती है। घर की आर्थिक दशा ठीक होने पर ही वह आर्थिक चिन्ता से मुक्त होगा और उसका समायोजन भी अच्छा होगा।

4. उचित मात्रा में गृह तथा कक्षा कार्य प्रदान करना: बालक के मानसिक स्वास्थ्य को ठीक बनाये रखने के लिये उसे विद्यालय में उचित मात्रा में गृह तथा कक्षा कार्य दिया जाय। कार्य की अधिकता एवं कार्य की कमी दोनों ही बालक में असमायोजन उत्पन्न कर देती हैं।

5. भविष्य में व्यवसाय की प्राप्ति: अधिक आयु के बालकों को यह चिन्ता रहती है कि पढ़-लिखकर जब तैयार हो जायेंगे तो हमें नौकरी कहाँ मिलेगी? हम क्या करेंगे? आज के बेरोजगारी के समय यह चिन्ता रहती है। उनको नौकरी या व्यवसाय चयन की चिन्ता न होगी तो वे मन लगाकर विद्याध्ययन करेंगे तथा उनका मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।

6. मनोरंजन की व्यवस्था: बालकों के मनोरंजन की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिये। कठिन परिश्रम के कारण बालकों को मानसिक थकान हो जाती है। अत: समायोजन प्रभावित होता है।

7. सदाचरण वाले मित्र बनाना: बालकों को चरित्रवान एवं विश्वास पात्र मित्र बनाने चाहिये, ताकि संकट के समय वे काम आ सकें। अच्छे मित्रों के अभाव में आपत्ति के समय मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है।

8. शिक्षण सामग्री की सुविधा: बालकों को अध्ययन हेतु पर्याप्त मात्रा में शिक्षण सामग्री उपलब्ध होनी चाहिये।

9. विद्यालय का वातावरण: विद्यालय में सहयोग एवं सहानुभूति का वातावरण होना चाहिये। छात्रों, अध्यापकों तथा प्रधानाध्यापक आदि के बीच तनाव नहीं होना चाहिये।

10. छात्र संघ की स्थापना: बालकों का मानसिक स्वास्थ्य प्राय: दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली, बेरोजगारी एवं तानाशाही रवैया के कारण खराब हो जाता है। अत: इन समस्त कारणों के निवारण हेतु छात्र संघों की प्रान्तीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर स्थापना होनी चाहिये। इससे छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

घर, विद्यालय और समाज का मानसिक स्वास्थ्य सुधार में योगदान

बालक के सुधार तथा परिवर्तन में घर, विद्यालय तथा समाज की प्रमुख भूमिका रहती है। समाज तथा विद्यालय उसके विकास को प्रभावित करते हैं। बालक इन संस्थाओं से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित रहता है। अत: ये उसके विकास को किसी न किसी रूप में प्रभावित करती रहती हैं।

  1. घर का मानसिक स्वास्थ्य सुधार में योगदान
  2. विद्यालय का मानसिक स्वास्थ्य सुधार में योगदान
  3. समाज या समूह का मानसिक स्वास्थ्य सुधार में योगदान

तीनों स्थानों में जो मानसिक स्वास्थ्य में योगदान होता है उसका वर्णन नीचे है-

घर का मानसिक स्वास्थ्य सुधार में योगदान

घर में मानसिक स्वास्थ्य सबसे अधिक प्रभावित होता है। यदि घर का वातावरण अच्छा है तो घर में मानसिक स्वास्थ्य शीघ्र ही अच्छा हो जाता है। घर बालक के मानसिक स्वास्थ्य सुधार में निम्नलिखित योगदान करते हैं-

1. घर का प्रभाव

बालक घर में जन्म लेता है और उसका विकास भी घर में ही होता है। अत: घर का वातावरण बालक को सबसे अधिक प्रभावित करता है।

2. शान्तिमय वातावरण

जिन घरों का वातावरण शान्तिमय तथा कलह से मुक्त होता है वहाँ बालकों का संवेगात्मक विकास भी स्वाभाविक रूप में होता है। कलहयुक्त वातावरण में पले बालक झगड़ालू तथा संवेगात्मक दृष्टि से अस्थिर होते हैं।

3. भाषा का विकास

बालक बोलचाल का प्रशिक्षण घर से ही सीखता है। माता -पिता की भाषा बालको को सबसे अधिक प्रभावित करती है।

4. माता-पिता का व्यवहार

माता-पिता का बालकों के प्रति व्यवहार भी उनके विकास को प्रभावित करता है। यदि माता-पिता अपने सभी बालकों को समान दृष्टि से प्यार करते हैं, तो बालकों का मानसिक विकास भी ठीक प्रकार से होगा।

इसके विपरीत पक्षपातपूर्ण व्यवहार बालकों में द्वन्द्व उत्पन्न करता है। जो माता-पिता किसी विशेष बालक पर लाड़-प्यार अधिक करते हैं, उसके बिगड़ने की अधिक सम्भावना रहती है।

5. सदस्यों का व्यवहार

परिवार के सदस्यों का परस्पर व्यवहार भी बालक के व्यवहार को प्रभावित करता है। जिन परिवारों के सदस्य शिष्ट तथा नियम से जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं, वहाँ बालक भी शिष्ट व्यवहार करने वाले तथा नियमबद्ध जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं।

6. आर्थिक दशा

परिवार की आर्थिक दशा भी बालकों के विकास को प्रभावित करती है। जिन परिवारों की आर्थिक दशा अच्छी होती है, वहाँ बालकों को पर्याप्त पौष्टिक भोजन मिलता है। अत: इनका शारीरिक विकास भी उचित दशा में होता है।

परन्तु आवश्यकता से अधिक गरिष्ठ भोजन बालकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। प्रायः अमीरों के बालक इसी कारण पेट के रोगी होते हैं। दूसरी ओर निर्धन परिवारों के बालक धनाभाव के कारण पौष्टिक भोजन प्राप्त नहीं कर पाते।

अत: उनका शारीरिक विकास भी ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। धनाभाव के कारण निर्धन परिवार के बालकों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती। अत: वे कक्षा में भी पढ़ने से पिछड़ जाते हैं।

7. सामान्य बुद्धि का विकास

जिन परिवारों में अच्छी पुस्तकें होती हैं तथा अच्छी पत्रिकाएँ आती हैं, वहाँ के बालकों की सामान्य बुद्धि का विकास तीव्रता से होता है।

8. अनुशासन का प्रशिक्षण

जिन परिवारों में अनुशासन की भावना आवश्यकता से अधिक कठोर होती है तथा माता-पिता बात-बात पर बालकों को कठोर दण्ड देते हैं, वहाँ के बालक विद्रोही होते हैं या चोरी छिपे अपराध करने लगते हैं। उनके मस्तिष्क में एक प्रकार की विकृति उत्पन्न हो जाती है।

घर के वातावरण में सुधार के सुझाव

घर के वातावरण में मानसिक स्वास्थ्य सुधार के सुझाव निम्न हैं-

  • घर का वातावरण पूर्णतया, शान्तिमय होना चाहिये। बात-बात पर माता-पिता को लड़ना-झगड़ना नहीं चाहिये।
  • अभिभावकों को लालन पालन करने का प्रशिक्षण लेना चाहिये।
  • बालकों की विभिन्न शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जाय।
  • बालकों के साथ मनोवैज्ञानिक व्यवहार किया जाय तथा उन्हें बात-बात में डाँटना-डपटना नहीं चाहिये।
  • निर्धन परिवार के बालकों को सरकार द्वारा पर्याप्त आर्थिक सहायता प्रदानकी जाय।
  • अभिभावकों का कर्तव्य है कि वे अपने बालकों को खेलने-कूदने की स्वतन्त्रता दें।
  • परिवार के समस्त सदस्यों का आचरण नैतिकतापूर्ण होना चाहिये।

विद्यालय का मानसिक स्वास्थ्य सुधार में योगदान

विद्यालय बालक के मानसिक स्वास्थ्य सुधार में निम्नलिखित योगदान करते हैं-

  • विद्यालय बालक के लिये स्वास्थ्यप्रद और शिक्षाप्रद वातावरण प्रदान करते हैं। इस प्रकार के वातावरण में उनका शारीरिक विकास और मानसिक विकास उचित प्रकार से होता है।
  • विद्यालय बालकों को विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने का अवसर प्रदान करते हैं, इस प्रकार उनमें सामाजिकता का विकास करते हैं।
  • जिन बालकों के घर का वातावरण शैक्षिक नहीं होता, वे बालक विद्यालय में इस अभाव की पूर्ति कर लेते हैं।
  • वाद-विवाद, कविता प्रतियोगिता तथा अन्य साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेकर बालक अपना साहित्यिक विकास करते हैं।
  • विद्यालय सामूहिक खेल-कूद तथा व्यायाम-शालाओं का आयोजन करके छात्रों के शारीरिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण योग प्रदान करते हैं।
  • विद्यालयों में बालकों की रचनात्मक शक्ति तथा प्रतिभा का विकास होता है।
  • स्वशासन जैसी योजनाओं में भाग लेकर बालक प्रजातन्त्र का पाठ सीखते हैं।
  • बुनियादी विद्यालय बालकों को विभिन्न प्रकार के हस्त-शिल्प का प्रशिक्षण देकर व्यावसायिक क्षमताओं का विकास करते हैं।

समाज या समूह का मानसिक स्वास्थ्य सुधार में योगदान

समूह एक प्रकार से समाज की इकाई होती है। बालक किसी न किसी समूह के सदस्य होते हैं और उसके प्रति निष्ठावान होते हैं। बालकों के खेलने-कूदने की विभिन्न क्रियाएँ समूह में ही होती हैं। ऐसी दशा में बालक का समूह द्वारा प्रभावित होना स्वाभाविक हो जाता है। अत: समूह बालक के विकास को अवश्य प्रभावित करता है। समाज बालक में सामाजिकता की भावना का विकास करता है।

बालक के मानसिक स्वास्थ्य सुधार में समाज या समूह के योगदान निम्न प्रकार से होता है-

  • समाज में रहकर बालक परस्पर सहयोग और सहकारिता की भावना सीखते हैं तथा नेतृत्व की भावना का जन्म होता है।
  • समाज बालकों को संगठन और नेतृत्व का प्रशिक्षण देता है।
  • यदि समाज के सदस्य दुराचारी और भ्रष्ट हैं तो अच्छे बालक भी भ्रष्ट और दुसचारी हो जाते हैं।
  • समाज बालकों में प्रतियोगिता की भावना उत्पन्न करता है। वह प्रतियोगिता अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी।
  • बुद्धिमान मित्रों के समूह में बालक का मानसिक विकास होता है।
  • समाज में न रहने पर बालक एकान्तप्रिय तथा असामाजिक हो जाता है।
  • समाज में रहकर बालक अपनी रुचियों, क्षमताओं तथा योग्यताओं का विकास कर लेता है।

FAQs

मानसिक स्वास्थ्य क्या है?
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है कि व्यक्ति अपने कार्य में, शाला में, परिवार में, सहयोगियों तथा समुदाय के साथ ठीक प्रकार से रहना। मानसिक रूप से स्वस्थ न रहने पर व्यक्ति का विकास कुण्ठित हो जाता है। मानसिक अस्वस्थता के कारण अनेक व्यक्ति समाज पर बोझ बने दिखायी देते हैं। इसीलिये हमारे जीवन में मानसिक स्वास्थ्य का महत्त्व शारीरिक स्वास्थ्य से कहीं कम नहीं है।

कुछ सामान्य मानसिक स्वास्थ्य विकार क्या हैं?
कुछ सामान्य मानसिक स्वास्थ्य विकारों में चिंता विकार, अवसाद, द्विध्रुवी विकार, सिज़ोफ्रेनिया, खाने के विकार और व्यक्तित्व विकार आदि शामिल हैं।

खराब मानसिक स्वास्थ्य के कुछ लक्षण क्या हैं?
विकार के आधार पर खराब मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन इसमें उदासी या निराशा की भावना, भूख या नींद न आना , ऊर्जा या प्रेरणा की कमी, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, या खुद को नुकसान पहुंचाने या आत्महत्या करने के विचार शामिल हो सकते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के कुछ तरीके क्या हैं?
मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के कुछ तरीकों में पर्याप्त नींद लेना, संतुलित आहार खाना, नियमित शारीरिक गतिविधि में शामिल होना, तनाव प्रबंधन तकनीकों जैसे ध्यान या ध्यान का अभ्यास करना और जरूरत पड़ने पर मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार से सहायता लेना शामिल है।

मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में लांछन क्या है?
लांछन मानसिक बीमारी के आसपास के नकारात्मक दृष्टिकोणों और विश्वासों को संदर्भित करता है जो भेदभाव, पूर्वाग्रह और सामाजिक बहिष्कार का कारण बन सकता है। लांछन व्यक्तियों के लिए सहायता प्राप्त करना कठिन बना सकता है और शर्म और शर्मिंदगी की भावनाओं में योगदान कर सकता है।

मैं मानसिक स्वास्थ्य विकार वाले किसी व्यक्ति की सहायता कैसे कर सकता हूँ?
आप समझदार और गैर-न्यायिक बनकर मानसिक स्वास्थ्य विकार वाले किसी व्यक्ति का समर्थन कर सकते हैं, सुनने की पेशकश कर सकते हैं और भावनात्मक समर्थन प्रदान कर सकते हैं, उन्हें पेशेवर मदद लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, और उन्हें अपने समुदाय में संसाधनों और सहायता समूहों को खोजने में मदद कर सकते हैं।

मुझे अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए सलाहकार से मदद कब लेनी चाहिए?
यदि आप मानसिक स्वास्थ्य विकार के लगातार या गंभीर लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं, यदि आपके लक्षण आपके दैनिक जीवन या रिश्तों में हस्तक्षेप कर रहे हैं, या यदि आपके मन में खुद को नुकसान पहुंचाने या आत्महत्या करने के विचार आ रहे हैं, तो आपको अपने मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार से मदद लेनी चाहिए।