चिन्तन (Thinking) – अर्थ एवं परिभाषा, साधन और चिंतन के प्रकार

Chintan

चिंतन क्या है?

चिन्तन (Thinking): मानवीय जीवन समस्याओं से भरा हुआ है। हम एक समस्या का हल खोज नहीं पाते, दूसरी सामने उपस्थित हो जाती है। ये समस्याएँ प्रयत्न बिना भी हल हो जाती हैं और कभी-कभी प्रयत्न चिन्तन को जन्म देता है।

दैनिक जीवन में बड़े एवं बुजर्ग कहते हैं कि ‘करने से पहले सोचो‘ या ‘अनुभव करने से पहले सोचो‘। इसका मुख्य कारण है कि चिन्तन एवं तर्क समस्या समाधान और उचित निर्णय लेने में सहायता करते हैं।

चिन्तन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

Meaning and Definitions of Thinking

दर्शनशास्त्र ने यह सिद्ध कर दिया है कि विश्व की प्रगति मानव की चिन्तन शक्ति पर निर्भर करती है। चिन्तन के द्वारा वास्तविकता का पता लगाया जाता है और वास्तविकता विज्ञान को जन्म देती है। अत: चिन्तन शब्द का प्रयोग ‘याद‘, ‘कल्पना‘ और ‘ अनुमान‘ आदि के रूपों में किया जाता है; जैसे-परीक्षा में सही उत्तर खोजने के लिये चिन्तन, नये मकान को बनवाने का चिन्तन एवं दूर से आने वाले रिश्तेदार, मित्र या कोई नये व्यक्ति से सम्बन्धित चिन्तन।

हम चिन्तन के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिये कुछ विद्वानों के विचारों को प्रस्तुत करते हैं –

1. गिलफोर्ड (Guillford) के अनुसार चिन्तन की परिभाषा

“चिन्तन प्रतीकात्मक व्यवहार है। यह सभी प्रकार की वस्तुओं और विषयों से सम्बन्धित है।”

“Thinking is a symbolic behaviour for all thinking deals with substitutes for things.”

2. वेलेन्टाइन (Velentine) के शब्दों में चिन्तन की परिभाषा

“मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से ‘चिन्तन’ शब्द का प्रयोग उस क्रिया के लिये किया जाता है जिसमें श्रृंखलाबद्ध विकार किसी लक्ष्य या उद्देश्य की ओर अविराम गति से प्रवाहित होते हैं।”

“In strict psychological discussion it is well to keep the term ‘thinking’ for an activity which consists essentially of a connected flow of ideas which are directed toward some end purpose.”

3. गैरेट (Garret) के अनुसार चिन्तन की परिभाषा

“चिन्तन एक प्रकार का अव्यक्त एवं रहस्यपूर्ण व्यवहार होता है, जिसमें सामान्य रूप से प्रतीकों (बिम्बों, विचारों एवं प्रत्ययों) का प्रयोग होता है।

“Thinking is behaviour which is often implicit and hidden and in which symbols (images, ideas, concepts) are ordinarily employed.”

चिंतन की विशेषता

उपर्युक्त विद्वानों द्वारा परिभाषित दृष्टिकोण का यदि हम विश्लेषण करें, तो चिन्तन के अर्थ के सम्बन्ध में निम्न तथ्य एवं विशेषताएँ पाते हैं-

1. संज्ञानात्मक प्रक्रिया (Cognitive process)

चिन्तन एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया है। यह स्वत: ही नहीं होती, बल्कि प्रयत्न करना पड़ता है। प्रयत्न में चुनाव, सीखना, वाद-विवाद और प्राप्ति आदि प्रक्रियाओं के द्वारा ही चिन्तन सम्भव हो पाता है।

2. उद्देश्यपूर्णता (Objectfulness)

चिन्तन की क्रिया उद्देश्यपूर्णता की ओर अग्रसर रहती है। इसमें दिवास्वप्न या कल्पना आदि उद्देश्यहीन क्रियाओं का कोई भी स्थान नहीं रहता।

3. समस्या समाधान (Problem-solving)

चिन्तन के द्वारा समस्या समाधान होता है। व्यक्ति का व्यवहार जब उसे सन्तोष या सुख नहीं देता है तो समस्या उत्पन्न होती है। ये समस्याएँ ही चिन्तन को जन्म देती हैं।

4. प्रतीकात्मक क्रिया (Symbolic activities)

चिन्तन मुख्य रूप से प्रतीकों पर आधारित मानसिक क्रिया है। ब्रूनर और गैरेट का मत है कि चिन्तन में ठोस वस्तुओं की बजाय प्रतीकों का प्रयोग होता है; जैसे-मकान निर्माण में प्रतीकात्मक चिन्तन प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है, न कि ‘प्रयत्न एवं भूल’ का।

अत: निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि “चिन्तन मानसिक रूप से विचार करने की ज्ञानात्मक प्रक्रिया है,जो विभिन्न प्रतीकों के सहारे चलती है और समस्या समाधान में सक्रिय सहयोग देती है।

चिन्तन के उपकरण या साधन

Sources or Instruments of thinking

विभिन्न विद्वानों ने अपने अध्ययनों के आधार पर चिन्तन प्रक्रिया के आधार स्तम्भ, उपकरण या साधनों को निम्न भागों में प्रस्तुत किया है

1. प्रतिमाएँ (Images)

मानव अनुभव प्रतिमाओं के आधार पर व्यक्त होता है। हम जो कुछ देखते हैं, करते हैं एवं सुनते हैं सभी का आधार मन में विकसित प्रतिमा होती है। इसलिये इनको स्मृति, प्रतिमा, दृश्य प्रतिमा, श्रव्य प्रतिमा या कल्पना प्रतिमा आदि का नाम देते हैं। ये प्रतिमाएँ वस्तु, व्यक्ति एवं विचार से निर्मित होती हैं। चिन्तन में इन्हीं को आधार बनाया जाता है।

2. प्रत्यय (Concept)

‘प्रत्यय’ सामान्य वर्ग के लिये सामान्य विचार होता है, जो सामान्य वर्ग की सभी वस्तुओं या क्रियाओं का प्रतिनिधित्व करता है। चिन्तन का महत्वपूर्ण साधन प्रत्यय भी माना जाता है। इनके द्वारा हमें सम्पूर्ण ज्ञान का बोध होता है। जैसे- हाथी शब्द को सुनकर हमारे मस्तिष्क में हाथी से सम्बन्धित संचित प्रत्यय जाग जाता है और ‘सम्पूर्ण ज्ञान’ का आभास होने लगता है। अत: प्रत्यय के माध्यम से चिन्तन प्रक्रिया सशक्त होती है।

3. प्रतीक एवं चिह्न (Symbols and signs)

प्रतीक एवं चिह्न मूक रहते हुए भी अपना अर्थ स्पष्ट या व्यक्त करने में समर्थ होते हैं। सड़क पर बने हुए प्रतीक या चिह्न सही गति एवं सुरक्षा को स्पष्ट करते हैं। इससे समय एवं शक्ति की बचत होती है। बालक विद्यालय के घण्टे और घण्टा में अन्तर कर लेते हैं क्योंकि उसे सुनकर उनकी चिन्तन शक्ति अर्थ लगाती है। इसी प्रकार से गणित में + या x का चिह्न अर्थ स्पष्ट करता है कि हमें क्या करना है?

बोरिंग,लैगफील्ड एवं वैल्ड ने लिखा है- “प्रतीक एवं चिह्न मोहरें एवं गोटियाँ हैं, जिनके द्वारा चिन्तन का महान खेल खेला जाता है। इनके बिना यह खेल महत्त्वपूर्ण एवं सफल नहीं हो सकता।

Symbols and signs are thus seen to be power and pieces with which the great game of thinking is played. It could not be such a remarkable and successful game without than.

4. भाषा (Language)

भाषा का प्रयोग सामान्यतः होता रहता है। विद्वानों ने भाषा के पीछे चिन्तन शक्ति को बतलाया है। सामाजिक विकास में भाषा संकेतों एवं इशारों से भी प्रकट होती है; जैसे-मुस्कराना, भौहें चढ़ाना, गर्दन हिलाना, अँगूठा दिखा आदि । इन सभी का दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाना और बिना बोले अर्थ को लगाना या समझना प्रचलित है। इन सभी के पीछे चिन्तन शक्ति का चलते रहना है, जो अर्थों को स्पष्ट करती है।

5. सूत्र (Formula)

हमारी प्राचीन परम्परा रही है कि हम ज्ञान को छोटे-छोटे सूत्रों में एकत्रित करके संचित करते हैं। इनमें गणित, विज्ञान के सूत्र आते हैं। भारतीय ज्ञान ‘संस्कृत के श्लाकों‘ में संचित है, जिसकी व्याख्या से अपार ज्ञान प्रकट होता है। सूत्र को देखकर हमारी चिन्तन शक्ति उसमें निहित सम्पूर्ण ज्ञान को प्रकट करती है।

चिन्तन के प्रकार

Types of Thinking

चिन्तन के स्वभाव का अध्ययन करने के पश्चात् चिन्तन के प्रकारों का वर्णन करना आवश्यक होता है। प्रायः चिन्तन को चार रूपों में विभाजित किया जाता है, जो इस प्रकार से हैं-

1. प्रत्यक्षात्मक चिन्तन (Perceptual thinking)

बार-बार के अनुभवों से एकत्रित ज्ञान की स्थायित्वता जाग्रत होकर प्रेरित करती है। जब हम किसी व्यक्ति को बार-बार अपने घर आते देखते हैं, तो उसके व्यवहार का मूल्यांकन हमारे चिन्तन के द्वारा स्वत: हो जाता है, क्योंकि बार-बार के आने से जो अनुभव एकत्रित किये गये, वे सभी उसके व्यवहार को स्पष्ट करते हैं। अत: उस व्यक्ति को देखकर उसके व्यवहार का जाग्रत हो जाना ही प्रत्यक्षात्मक चिन्तन होता है।

2. प्रत्यात्मक (अवधारणात्मक) चिन्तन (Conceptual thinking)

मानव मस्तिष्क ज्ञान या परिचय के फलस्वरूप मस्तिष्क में प्रत्यय स्थापित करता है। यही प्रत्यय पुनः जाग्रत होकर वस्तु को पुनः स्मरण कराने में सहायक होते हैं। इसमें विषय का पूर्ण ज्ञान सन्निहित रहता है। जैसे- छात्र अध्यापक को देखकर कहते हैं, ‘सर’ आ गये यानी अध्यापक शब्द पूर्णता का बोध कराता है और छात्र उसका पूर्ण ज्ञान भी रखते हैं। अत: भाषा एवं नाम का प्रयोग प्रत्यात्मक चिन्तन की विशेषता होती है।

3. विचारात्मक चिन्तन (Reflective thinking)

महान् शिक्षाशास्त्री ड्यूवी ने विचारात्मक चिन्तन को ही चिन्तन माना है। हम चिन्तन के द्वारा किसी लक्ष्य की प्राप्ति या समस्या का समाधान खोज पाते हैं। इसमें विचारों एवं तर्कों को एक क्रम में स्थापित करने निष्कर्ष निकाले जाते हैं, जो व्यावहारिक एवं सामाजिक होते हैं।

4. सृजनात्मक चिन्तन (Creative thinking)

जब किसी विचार क्रिया के माध्यम से नवीन वस्तु या ज्ञान की खोज की जाती है, तो सृजनात्मक चिन्तन होता है। इसमें वस्तुओं, घटनाओं एवं स्थितियों की प्रकृति की व्याख्या करने के लिये कार्य-कारण के बीच नवीन सम्बन्ध स्थापित करने होते हैं। इसमें व्यक्ति स्वयं समस्या खोजता है और उसके हल को ज्ञात करता है। वर्तमान उन्नति इसी का परिणाम है।

मूर्त एवं अमूर्त चिन्तन

Concrete and Abstruct Thinking

सामान्य रूप से चिन्तन की ये दोनों प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से पृथक् पृथक् हैं परन्तु अनेक अर्थों में इनका वर्णन एक साथ किया जाता है क्योंकि जब हम किसी मूर्त वस्तु को देखते हैं तभी उसके बारे में अमूर्त चिन्तन करते हैं।

जैसे– हम एक महिला को बुर्का पहले देखते हैं। यह मानते हैं कि एक महिला हमारे सामने बुर्के से मुंह ढककर जा रही है। इसके बाद आगे के चिन्तन की प्रक्रिया अमूर्त चिन्तन से सम्बन्धित हो जाती है। जब हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि यह महिला बुर्के से अपना मुँह क्यों ढक रही है? इस परम्परा के मूल में कौन-से कारण हैं। यह परम्परा कब से भारतीय समाज में प्रारम्भ है। वर्तमान समय में इसकी क्या प्रासंगिकता है? इन चारों प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करना अमूर्त चिन्तन की प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है।

अमूर्त चिन्तन के द्वारा हम जान लेते हैं कि बुर्के में मुँह ढककर महिला अपने सौन्दर्य को छिपाती है जिससे उनको व्यक्ति बुरी दृष्टि से न देखें तथा उनके अपहरण की सम्भावना न हो। यह प्रथा मुस्लिम राजतन्त्र के समय से चली आ रही है।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि मूर्त चिन्तन ही अमूर्त चिन्तन का आधार बनता है क्योंकि जब तक हम किसी घटना या वस्तु का अवलोकन नहीं करते तब तक उसके बारे में विचार नहीं करते।

मूर्त एवं अमूर्त चिन्तन में अंतर एवं इनके मध्य विशेषता

मूर्त एवं अमूर्त चिन्तन के मध्य विशेषताओं एवं अन्तर को निम्न रूप में स्पष्ट किया जा सकता है जो कि इन दोनों के स्वरूप एवं प्रक्रिया को स्पष्ट करता है-

#मूर्त चिन्तनअमूर्त चिन्तन
1.मूर्त चिन्तन का सम्बन्ध किसी वस्तु के बाहरी आवरण तक, भाग से होता है तथा उसके स्वरूप एवं आकार के ज्ञान को प्रकट करता है।अमूर्त चिन्तन का सम्बन्ध वस्तु के भीतरी ज्ञान तक सीमित होता है जो कि वस्तु के मूल कारण एवं मूल तत्त्वों से सम्बन्धित होता है।
2.मूर्त चिन्तन में किसी वस्तु की ऊपरी सतह के बारे में विचार किया जाता है।अमूर्त चिन्तन में किसी भी वस्तु की भीतरी सतह के बारे में पूर्ण रूप से विचार किया जाता है।
3.मूर्त चिन्तन केवल वस्तु के तथ्यों तक सीमित रह जाता है; जानने का कार्य जैसे – महात्मा गाँधी के चित्र को चित्र समझकर विचार करना।अमूर्त चिन्तन वस्तु के तथ्यों के अन्दर करता है, जैसे- महात्मा गाँधी के चित्र को देखकर उनके गुणों तथा कार्य-व्यवहार के बारे में विचार करना।
4.मूर्त चिन्तन किसी वस्तु के आकार एवं प्रकार के बारे में विचार करता है।अमूर्त चिन्तन आकार, प्रकार के निर्माण की प्रक्रिया के बारे में विचार करता है।
5.मूर्त चिन्तन की प्रक्रिया मूर्त वस्तुओं एवं मूर्त विचारों से सम्बन्धित होती है; जैसे – किसी चित्र का वर्णन करना एवं उसका स्वरूप बताना आदि।अमूर्त चिन्तन का सम्बन्ध चित्र वर्णन से नहीं होता वरन् वह चित्र के मूल उद्देश्य एवं उसके निर्माण के कारणों से होता है।
6.मूर्त चिन्तन का सम्बन्ध भौतिक जगत् से होता है।अमूर्त चिन्तन का सम्बन्ध मानसिक प्रक्रिया एवं मानसिक जगत् से होता है।
7.मूर्त चिन्तन द्वारा वस्तु के आकार एवं प्रकार से अलग विचार नहीं करता।अमूर्त चिन्तन वस्तु के आकार प्रकार के अतिरिक्त विषयों पर विचार करता है।
8.मूर्त चिन्तन का क्षेत्र सीमित होता है।अमूर्त चिन्तन का क्षेत्र असीमित होता है।
9.मूर्त चिन्तन दृश्य जगत एवं दृश्य वस्तुओं से सम्बन्धित होता है।अमूर्त चिन्तन विचारों से सम्बन्धित होता है।

अपसारी एवं अभिसारी चिन्तन

Divergent and Convergent Thinking

चिन्तन की प्रक्रिया में अपसारी एवं अभिसारी चिन्तन की प्रक्रिया भी सम्पन्न होती है। इन दोनों प्रकार के चिन्तनों का अध्ययन एक साथ करना इनके अप्रत्यक्ष सम्बन्ध को प्रकट करता है। दोनों प्रकार के चिन्तनों में पर्याप्त अन्तर भी देखा जाता है। इस प्रकार के चिन्तनों का वर्णन निम्न रूप में किया जा सकता है-

1. अपसारी चिन्तन (Divergent thinking)

अपसारी चिन्तन के अन्तर्गत व्यक्ति एक ही व्यवस्था का भित्र-भिन्न रूपों में चिन्तन करता है। दूसरे शब्दों में, इस चिन्तन के माध्यम से व्यक्ति एक ही समस्या का समाधान भिन्न-भिन्न विधियों से करने पर विचार करता है। इसमें एक प्रकार की मस्तिष्क उद्वेलन की प्रक्रिया सम्पन्न होती जिसके आधार में एक विषय पर अनेक विचार उत्पन्न किये जा सकते हैं।

जैसे-ईश्वर की प्राप्ति के विषय में यदि अपसारी चिन्तन किया जाय तो अनेक विचार हमारे समक्ष उपस्थित हो सकेंगे जैसे ईश्वर को दान से प्राप्त किया जा सकता है, ईश्वर को कर्म के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है तथा ईश्वर को भक्ति के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है आदि।

इसी प्रकार के अनेक विषयों पर विविधता युक्त चिन्तन या चुनौतियों का विभिन्न प्रकार से समाधान अपसारी चिन्तन प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है।

2. अभिसारी चिन्तन (Convergent thinking)

इस प्रकार के चिन्तन को प्रक्रिया में किसी भी विषय पर एकांगी चिन्तन किया जाता है जो कि उसके लिये आवश्यक होता है। इस प्रकार के चिन्तन में व्यक्ति किसी समस्या का समाधान श्रेष्ठ विचार या तरीके से करता है।

जैसे- ईश्वर प्राप्ति के विषय में विचार करने के लिये व्यक्ति के सामने अनेक विकल्प होते हैं परन्तु वह यह मानता है कि भक्ति सर्वश्रेष्ठ विकल्प है जिससे ईश्वर की प्राप्ति होती है। इस प्रकार वह अन्य विकल्पों को इसलिये छोड़ देता है कि सभी विचार ईश्वर की प्राप्ति में सहायक हैं। इसलिये वह सर्वश्रेष्ठ उपाय भक्ति को अपने चिन्तन का आधार बनाता है।

इस प्रकार अभिसारी चिन्तन में किसी समस्या का समाधान किसी एक विचार, एक विधि या एक उपाय द्वारा सम्पन्न किया जाता है।

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