यदि मैं प्रधानमंत्री होता: प्रधानमन्त्री पर निबंध, नरेंद्र मोदी

“यदि मैं प्रधानमन्त्री होता, वर्तमान प्राथमिकताएं, भारत के प्रधानमन्त्री की समस्याएं : दायित्व एवं कर्तव्य, प्रधानमन्त्री की कठिनाइयां, नरेंद्र मोदी” नामक निबंध के निबंध लेखन (Nibandh Lekhan) से अन्य सम्बन्धित शीर्षक, अर्थात यदि मैं प्रधानमन्त्री होता, वर्तमान प्राथमिकताएं, भारत के प्रधानमन्त्री की समस्याएं : दायित्व एवं कर्तव्य, प्रधानमन्त्री की कठिनाइयां से मिलता जुलता हुआ कोई शीर्षक आपकी परीक्षा में पूछा जाता है तो इसी प्रकार से निबंध लिखा जाएगा। ‘यदि मैं प्रधानमन्त्री होता, वर्तमान प्राथमिकताएं, भारत के प्रधानमन्त्री की समस्याएं : दायित्व एवं कर्तव्य, प्रधानमन्त्री की कठिनाइयां’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-

  • प्रधानमन्त्री की वर्तमान प्राथमिकताएं
  • भारत के प्रधानमन्त्री की समस्याएं
  • प्रधानमन्त्री : दायित्व एवं कर्तव्य
  • प्रधानमन्त्री की कठिनाइयां
YADI MAIN PRADHANMANTRI HOTA: BHARAT KA PRADHANMANTRI - NARENDRA MODI

निबंध की रूपरेखा

  1. प्रस्तावना
  2. प्रधानमन्त्री की शक्ति एवं सीमाएँ
  3. मेरी प्राथमिकताएँ
  4. देश को आतंकवाद से मुक्ति
  5. आर्थिक सुधारों को जारी रखना
  6. बेरोजगारी
  7. जनसंख्या व्रद्धि को रोकना
  8. ग्रामीण जनता का उत्थान
  9. सामाजिक सुधार
  10. उपसंहार

प्रधानमन्त्री पर निबंध

प्रस्तावना

किसी देश का प्रधानमन्त्री अपने आप में सर्वाधिक गौरवशाली पद है। प्रधानमंत्री के रूप में जहाँ सारा देश आपसे अनेक आशाएँ एवं अपेक्षाएँ करता है, वहीं यह भी चाहता है कि आप अपनी
व्यक्तित्व से भारत देश को सभी समस्याओं से छुटकारा दिलाकर विकास के पथ पर अग्रसर करें।

भारत विश्व का सबसे बढ़ा लोकतान्त्रिक देश है तथा लोकतन्त्र में प्रधानमन्त्री किसी की इच्छा से नहीं बनता अपितु उसकी नियुक्ति की एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है। संसदीय चुनाव में जो दल बहुमत प्राप्त करता है उसके संसदीय दल के नेता को राष्टपति महोदय सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित करते हैं और उसे प्रधानमन्त्री पद की शपथ दिलाकर प्रधानमन्त्री नियुक्त करते है।

अतः यह कल्पना अपने आप में हास्यास्पद ही है कि मैं प्रधानमंत्री बनकर देश के लिए क्या करना चाहूँगा। हाँ इसे एक काल्पनिक गाथा माना जा सकता है और इस बहाने से कम-से-कम
यह व्यक्त किया जा सकता है कि वर्तमान प्रधानमन्त्री से मैं क्या आशाए और अपेक्षा रखता हूँ। यहाँ इस पर इसी रूप में विचार व्यक्त कर रहा हूँ।

प्रधानमंत्री की शक्ति एवं सीमाएं

मैं जानता हूँ कि प्रधानमन्त्री संसद के प्रति जवाबदेह होता है। उसे अपने द्वारा किए गए कार्यों एवं लिए गए निर्णयों का औचित्य संसद में सिद्ध करना पढ़ता हैं। भारत का प्रधानमंत्री निरंकुश शासक नहीं है अपितु उसकी सीमाएँ हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) को अनेक दलों के समर्थन भी है एवं बहुमत भी। ऐसी स्थिति में यदि मैं प्रधानमन्त्री होता तो मुझे निर्णय लेने में कोई संकोच नही करना पड़ता, और मैं पूर्ण रूप से स्वतंत्र होकर निर्णय लेता।

इन हालात में मन्त्रिपरिषद का गठन भी मैं अपनी इच्छा से कर सकता था अतः सहयोगी दलों के प्रतिनिधियों को उनकी संख्या के अनुपात में मन्त्री बनाना मेरी विवशता नहीं होती। भले ही वे मन्त्री योग्य, सक्षम एवं भ्रष्टाचारी न हों, किन्तु मेरी विवशता उन्हें मन्त्री बनाए रखना नहीं है और न ही वे मेरी सरकार को गिरा सकते हैं।

प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद की अध्यक्षता करता है तथा मन्त्रिपरिषद की राय से ही सारे क्रियाकलाप सम्पन्न होते हैं। बहुदलीय सरकार में जहाँ सत्ता पाने के लिए गठबन्धन किए गए हों, लोग स्वार्थ की राजनीति करते हैं, सिद्धान्त की नहीं। इस सत्य से परिचित होने के कारण मुझे बहुत सी ऐसी बातों से भी समझौता करना पड़ता जो मेरी विचारधारा के प्रतिकूल होती। ऐसी स्थिति में मेरा सारा राजनीतिक कौशल इन उछल-कूद करने वाले मेढकों को तराजू के पलड़े पर रखकर तौलने में ही दिखाई पड़ता। कभी एक फुदकता, तो कभी दूसरा बाहर कूदने की धमकी देता।

मैं अच्छी तरह समझ जाता कि गठबन्धन की सरकार का प्रधानमन्त्री होना कितना कष्टकर है। इसीलिए इस बात को जनता ने भी समझा और बीजेपी दल को संसद में बहुमत दिलाकर एक दल की सरकार के प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी हैं, उन्होने देश को दिखा दिया कि राजनीतिक दृढ़ता, इच्छा शक्ति क्या होती है।

कोई भी प्रधानमंत्री बंधे हुए हाथों से मैं उतना ही कर सकता है, जितना कर पाना उसके वश में है। परंतु वर्तमान मोदी सरकार के पास पूर्ण वहुमत है अतः उन्होने कई कठोर निर्णय लेने में जरा भी संकोच नहीं किया, जैसे:- नोटबंधी- जिससे पूरे देश में कालाबाजारी लगभग समाप्त ही हो गई, जम्मू और कश्मीर से धारा 370 को हटाने से पाकिस्तानी आतंकवादियों और उग्रवादियों की तो जैसे कमर ही टूट गई हो।

प्रधानमन्त्री के रूप में मेरी प्राथमिकताएँ

प्रधानमन्त्री के रूप में मेरी कुछ प्राथमिकताएँ इस प्रकार होती है:-

देश को आतंकवाद से मुक्ति

आतंकवाद की समस्या: आतंकवाद इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या है। कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद ने हमारे धैर्य की परीक्षा ली है। यदि मैं प्रधानमन्त्री होता तो पाकिस्तान से सभी प्रकार
के राजनीतिक, कूटनीतिक सम्बन्ध समाप्त कर, विश्व के सभी देशों से उस पर आर्थिक दबाव डलवाता जिससे वह सीमा पार के आतंकवाद पर प्रभावी अंकुश लगाता। इसके लिए उसे एक निश्चित समयावधि प्रदान करता तथा इस अवधि के समाप्त होने पर भी यदि वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आता तो सीमा पार चल रहे आतंकी प्रशिक्षण केन्द्रों पर शक्तिशाली मिसाइल हमला करके तहस-नहस करवा देता। भले ही भारत को आक्रमणकारी माना जाता, किन्तु ऐसा करना देश हित में होगा, इस विचार से मैं वायुसेना को इन आतंकी कैंपो को नष्ट करने का आदेश अवश्य देता।

मुझे इस बात की तनिक भी चिन्ता न होती कि पाकिस्तान परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है और वह आत्मरक्षा के लिए परमाणु बम का प्रयोग भी भारत के खिलाफ कर सकता है। हमारा देश पाकिस्तान की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली परमाणु हथियारों से लैस है। यदि पाकिस्तान परमाणु हमला करेगा तो भारत उसका अस्तित्व मिटा देगा – इतनी क्षमता हमारे पास है— ऐसा कहकर मैं अपने देशवासियों को आश्वस्त कर देता। मैं कश्मीर समस्या को सदैव के लिए समाप्त कर देता, जिसने हमारे सुख-चैन में खलल डाला हुआ है।

आर्थिक सुधारों को जारी रखना

प्रधानमन्त्री के रूप में मैं आर्थिक सुधारों को निरन्तर जारी रखता। मैं देख रहा हूँ पिछले वर्षों में इस दिशा में जो प्रयास किए गए हैं उनके सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। देश में विदेशी
पूंजी का प्रवाह अनवरत रूप से हो रहा है। हमारी औद्योगिक विकास दर बढ़ रही है, विदेशी मद्रा का पर्याप्त भण्डार है। सरकारी विनिवेश की योजनाओं में सफलता मिल रही है और देश के अर्थशास्त्री हमारी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जो भी कारगर उपाय सुझाते उन्हें मैं स्वीकार कर लेता। मैं जानता हूँ कि काँग्रेस भले ही विपक्षी दल हो, पर देशहित में वह मेरी नीतियों का समर्थन करेगी।

मैं काले धन पर प्रभावी अंकुश लगाता, कीमतों में कमी लाकर आम जनता को राहत पहुँचाता और ऐसी योजनाएं बनाता जो आम आदमी-श्रमिक, किसान एवं गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए लाभकारी होतीं।

बेरोजगारी को दूर करने के लिए प्रयास

मेरी प्राथमिकताओं में बेरोजगारी की समस्या को भी हल करना होता। आज देश में लाखों नवयुवक उच्च शिक्षा प्राप्त करके भी रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। मैं जानता हूँ कि सरकार अपने सीमित संसाधनों के कारण प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार नहीं दे सकती, किन्तु इतना तो अवश्य कर सकती हूँ कि जो युवक किसी सरकारी नौकरी के लिए साक्षात्कार देने जा रहे हो, उनका साक्षात्कार पत्र ही उनकी ‘टिकट’ मान ली जाए। उन्हें यात्रा व्यय खर्च न करना पडे, इससे उनके आसू कुछ तो पूछ सकेंगे। मैं देश के वित्त मन्त्री को यह भी निर्देश देता कि वे इस सम्भावना को तलाशें कि क्या इन बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिया जा सकता है?

स्वरोजगार के लिए मैं नवयुवकों को ब्याज रहित ऋण दिलवाने का बैंकों के माध्यम से प्रयास करता जिसका एक भाग सरकारी अनुदान होता।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के प्रयास

भारत की समस्याओं में सर्वाधिक प्रमुख समस्या है— बेतहाशा बढ़ती हुई जनसंख्या, जो अब एक अरब का आंकड़ा पार कर चकी है। इस जनसंख्या वृद्धि ने हमारी सभी योजनाओं पर पानी फेर दिया है। जनसंख्या वृद्धि पर प्रभावी अंकुश समझाने-बुझाने से नहीं लगाया जा सकता किन्तु इसके अपेक्षित परिणाम सरकार द्वारा कडे कदम उठाने पर ही प्राप्त हो सकते हैं।

यदि दृढ़ राजनीतिक इच्छा-शक्ति के आधार पर सभी दल मिलकर यह निर्णय ले लें कि दो बच्चों से अधिक परिवार वाले माता-पिता को कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलेगी तथा वह राजनीति में भाग नहीं ले सकेगा, किसी पद हेतु खड़ा नहीं हो सकेगा और उसे मतदान का अधिकार नहीं होगा तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। यह कदम लोगों को अप्रिय लग सकता है पर देशहित में ऐसे कडे कदम उठाना मैं पसन्द करता।

ग्रामीण जनता का उत्थान

भारत गाँवों का देश है। आज भी हमारी 70.2 प्रतिशत जनता गांवों में रहती है तथा हमारी अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्रोत क्रषि उत्पाद ही हैं। ऐसी स्थिति में ग्रामीण जनता की भलाई से जुड़े कार्यक्रमो को मैं प्राथमिकता देता। सबसे पहले तो सभी गाँवों में पीने के स्वच्छ पानी की व्यवस्था करता, प्रत्येक ग्राम को सड़कों से जोड़ देता तथा क्रषि उत्पादों की सरकारी खरीद उचित मूल्य पर करवाने की व्यवस्था करता।

मेरी धारणा है कि किसान के सुखी होने पर अन्य लोग भी सुखी होंगे। ग्रामीण जनता को बिजली चौबीस घंटे मिलती रहे ऐसा प्रयास करता भले ही इन योजनाओं के लिए मझे विश्व बैंक से आर्थिक सहायता एवं ऋण लेना पड़ता पर जनता के कल्याण के लिए मैं इस ऋण को लेने में संकोच न करता। किसानों को मैं वे सभी सुविधाएँ प्रदान करता जो उनके आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने वाली हो।

सामाजिक सुधार

हमारे समाज में दहेज प्रथा, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, नशाखोरी जैसी समस्याएं अभिशाप के रूप में जुड़ी हुई हैं। मैं इन्हें आज के युग का राक्षस मानता हूँ और मेरा प्रयास इन सब पर विजय पाने का रहता। दहेज प्रथा को दूर करने के लिए मैं सामूहिक विवाहों के आयोजन पर बल देता, भ्रष्टाचारियों को कड़े दण्ड का प्रावधान करता।

सबके लिए शिक्षा सुलभ कराना मैं अपना उत्तरदायित्व समझता और मद्यपान को समाप्त करने का अध्यादेश जारी करवा देता। भले ही सरकार को इससे राजस्व की भारी हानि होती, किन्तु कल्याणकारी राज्य कभी भी नशाखोरी को बढ़ावा नहीं देता।

उपसंहार

मैं जानता हूँ कि अपने छोटे से कार्यकाल में इन सभी समस्याओं का निदान कर पाना शायद संभव नहीं किन्तु मैं अपनी प्राथमिकताओं से परिचित अवश्य हूँ और जो भी अवसर मुझे मिलता,
उसका लाभ उठाकर मैं इस दिशा में सक्रिय अवश्य होता।

काश कि यह दिवास्वप्न सच हो पाता। कम-से-कम इतना तो मैं कर ही सकता हूँ कि अपनी इस सोच को एक पत्र में लिखकर वर्तमान प्रधानमन्त्री के पास पहुंचा दूं। पर मैं जानता हूँ कि नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है?

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