माखनलाल चतुर्वेदी – जीवन परिचय, रचनाएं, कविताएँ और साहित्यिक परिचय

माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, भाषा शैली एवं प्रमुख रचनाएं नीचे दीं गईं है।

Makhanlal Chaturvedi

Makhanlal Chaturvedi

हिन्दी के “साहित्य अकादमी पुरस्कार” का आरंभ इन्हीं से हुआ था, अर्थात् Makhanlal Chaturvedi को सर्वप्रथम 1955 में (हिमतरंगिनी के लिए) इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। माखनलाल चतुर्वेदी को ‘एक भारतीय आत्मा‘ के उपनाम से ख्याति प्राप्त है। कुछ लोग इन्हें ‘पंडित‘ कहकर भी संबोधित करते थे। ‘पुष्प की अभिलाषा (हिमतरंगिनी से)’ नामक कविता से इन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली। माखनलाल चतुर्वेदी जी महात्मा गांधी से अत्यधिक प्रभावित थे। वे जीवन भर सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते रहे।

पूरा नाम माखनलाल चतुर्वेदी
जन्म 4 अप्रैल, 1889
जन्मस्थान बाबई गाँव, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
मृत्यु 30 जनवरी, 1968
पिता नन्दलाल  चतुर्वेदी
प्रमुख रचनाएँ हिमकिरीटीनी, हिम तरंगिणी, युगचरण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, रेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी काजल आँज रही, साहित्य के देवता, समय के पाँव, अमीर इरादे-गरीब इरादे, नागार्जुन युद्ध
भाषा खड़ी बोली, हिन्दी भाषा
शैली ओजपूर्ण भावात्मक
साहित्य काल आधुनिक काल
विधाएं काव्य, निबंध, नाटक, कहानी, संस्मरण
सम्पादन प्रभा, कर्मवीर
पुरस्कार एवं सम्मान साहित्य अकादमी पुरस्कार (1955 ई.), देव पुरस्कार (1943 ई.), पद्मभूषण (1963 ई.),

माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई. में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में ‘बावई‘ नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. नन्दलाल चतुर्वेदी था। प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बँगला, गुजराती, अंग्रेजी आदि का अध्ययन किया। इन्होंने कुछ दिन अध्यापन-कार्य भी किया।

सन् 1913 ई. में ये सुप्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘प्रभा‘ के सम्पादक नियुक्त हुए। श्री गणेशशंकर विद्यार्थी की प्रेरणा तथा साहचर्य के कारण ये राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेने लगे। इन्हें कई बार जेल-यात्रा करनी पड़ी।

ये सन् 1943 ई. में ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ के अध्यक्ष हुए। सागर विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट् की उपाधि तथा भारत सरकार ने ‘पदमभूषण‘ की उपाधि से अलंकृत किया। अपनी कविताओं द्वारा नवजागरण और क्रान्ति का शंख फूंकनेवाले कलम के इस सिपाही का 30 जनवरी, सन् 1968 ई. को स्वर्गवास (मृत्यु) हो गया।

साहित्यिक परिचय

माखनलाल चतुर्वेदी जी की प्रसिद्धि कवि के रूप में ही अधिक है, किन्तु ये एक पत्रकार, समर्थ निबन्धकार और सिद्धहस्त सम्पादक भी थे। इनकी गद्य-काव्य की अमर कृति ‘साहित्य देवता‘ है।

इनके काव्य का मूल स्वर राष्ट्रीयतावादी है, जिसमें त्याग, बलिदान, कर्त्तव्य-भावना और समर्पण का भाव है। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को स्वर देनेवालों में इनका प्रमुख स्थान रहा है। इनकी कविता में यदि कहीं ज्वालामुखी की तरह धधकता हुआ अन्तर्मन है तो कहीं पौरुष की हुंकार और कहीं करुणा से भरी मनुहार है।

इनकी रचनाओं की प्रवृत्तियाँ प्रायः स्पष्ट और निश्चित हैं। राष्ट्रीयता इनके काव्य का कलेवर है, तो भक्ति और रहस्यात्मक प्रेम इनकी रचनाओं की आत्मा। इनकी छन्द-योजना में भी नवीनता है। चतुर्वेदी जी की कविता में भाव-पक्ष की कमी को कला-पक्ष पूर्ण कर देता है।

रचनाएं एवं कृतियाँ

माखनलाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध रचनाओं में हिमकिरीटिनी, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूंजे धरा हैं। इनके अतिरिक्त चतुर्वेदीजी ने नाटक, कहानी, निबन्ध, संस्मरण भी लिखे हैं। इनके भाषणों के ‘चिन्तक की लाचारी‘ तथा ‘आत्म-दीक्षा‘ नामक संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं।

माखनलाल चतुर्वेदी जी की रचनाएं एवं कृतियाँ इस प्रकार हैं:

  • काव्य संग्रह– हिमकिरीटिनी, हिमतरंगिणी, वनवासी, कला का अनुवाद, नागार्जुन युद्ध, साहित्य देवता, वेणु लो गूंजे धरा, माता, युगचरण, मरणज्वार, बीजुरी काजल आँज रही, समर्पण, वलय धूम।
  • निबंध– अमीर इरादे गरीब इरादे, रंगों की होली, साहित्य देवता, अमीर इरादे गरीब इरादे (1960 ई.)।
  • संपादन– माखन लाल चतुर्वेदी ने ‘प्रभा (मासिकी)‘ नामक पत्रिका का सम्पादन कार्य भी किया।

माखनलाल जी ने खण्डवा (म0प्र0) से ‘कर्मवीर‘ साप्ताहिक पत्र भी निकाला था।

भाषा शैली

माखनलाल चतुर्वेदी की भाषा खड़ी बोली है। उसमें संस्कृत के सरल और तत्सम शब्दों के साथ फारसी के शब्दों का प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं भाषा भावों के साथ चलने में असमर्थ हो जाती है, जिससे भाव अस्पष्ट हो जाता है। इनकी शैली में ओज की मात्रा अधिक है। भावों की तीव्रता में कहीं-कहीं इनकी शैली दुरूह और अस्पष्ट हो गयी है।

पुरस्कार व सम्मान

  1. देव पुरस्कार (1943 ई.) : तत्कालीन हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा ‘देव पुरस्कार’ माखनलालजी को ‘हिमकिरीटिनी‘ पर दिया गया था।
  2. पद्मभूषण (1963 ई.) : भारत सरकार का सर्वोच्च पुरस्कार। (हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं बनने के चलते 10 सितंबर 1967 को लौटा दिया।)
  3. साहित्य अकादमी पुरस्कार (1955 ई.) : ‘हिमतरंगिनी’ के लिए प्रदान किया गया।
  4. डी.लिट्. की मानद उपाधि (1951 ई.) : सागर विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश द्वारा।

माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं (Poems by Makhanlal Chaturvedi)

हिन्दी के साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता Makhanlal Chaturvedi Ki Kavita निम्न हैं-

Pushpa Ki Abhilasha - Makhanlal Chaturvedi Ki Kavita
‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता -‘युगचरण’ से माखनलाल चतुर्वेदी की कविता

पुष्प की अभिलाषा (Pushpa Ki Abhilasha)

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ

चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ

मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक।

-‘युगचरण’ से

जवानी (Jawani)

प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी!
कौन कहता है कि तू
विधवा हुई, खो आज पानी?
चल रहीं घड़ियाँ,
चले नभ के सितारे,
चल रहीं नदियाँ,
चले हिम-खण्ड प्यारे;
चल रही है साँस,
फिर तू ठहर जाये?
दो सदी पीछे कि
तेरी लहर जाये?
पहन ले नर-मुंड-माला,
उठ, स्वमुंड सुमेरु कर ले;

भूमि-सा तू पहन बाना आज धानी
प्राण तेरे साथ हैं, उठ री जवानी!

द्वार बलि का खोल
चल, भूडोल कर दें,
एक हिमगिरि एक सिर
का मोल कर दें,
मसल कर, अपने
इरादों सी, उठा कर,
दो हथेली हैं कि
पृथ्वी गोल कर दें?

रक्त है? या है नसों में क्षुद्र पानी!
जाँच कर, तू सीस दे-देकर जवानी?

वह कली के गर्भ से फल
रूप में, अरमान आया!
देख तो मीठा इरादा, किस
तरह, सिर तान आया!
डालियों ने भूमि रुख लटका
‘दिये फल, देख आली!
मस्तकों को दे रही
संकेत कैसे, वृक्ष-डाली!

फल दिये? या सिर दिये? तरु की कहानी
गूँथकर युग में, बताती चल जवानी।

श्वान के सिर हो
चरण तो चाटता है!
भौंक ले-क्या सिंह
को वह डाँटता है?
रोटियाँ खायीं कि
साहस खो चुका है,
प्राणि हो, पर प्राण से
वह जा चुका है।

तुम न खेलो ग्राम-सिंहों में भवानी!
विश्व की अभिमान मस्तानी जवानी!

ये न मग हैं, तब
चरण की रेखियाँ हैं,
बलि दिशा की अमर
देखा-देखियाँ हैं।
विश्व पर, पद से लिखे
कृति लेख हैं ये,
धरा तीर्थों की दिशा
की मेख हैं ये।

प्राण रेखा खींच दे, उठ बोल रानी,
री मरण के मोल की चढ़ती जवानी।

टूटता-जुड़ता समय
‘भूगोल’ आया,
गोद में मणियाँ समेट
‘खगोल’ आया,
क्या जले बारूद?
हिम के प्राण पाये!
क्या मिला? जो प्रलय
के सपने न आये।
धरा? यह तरबूज
है, दो फाँक कर दे,

चढ़ा दे स्वातन्त्र्य-प्रभु पर अमर पानी!
विश्व माने-तू जवानी है, जवानी!

लाल चेहरा है नहीं
फिर लाल किसके?
लाल खून नहीं?
अरे, कंकाल किसके?
प्रेरणा सोयी कि
आटा-दाल किसके?
सिर न चढ़ पाया
कि छापा-माल किसके?

वेद की वाणी कि हो आकाशवाणी,
धूल है जो जग नहीं पायी जवानी।

विश्व है असि का?
नहीं संकल्प का है
हर प्रलय का कोण,
काया-कल्प का है,
फूल गिरते, शूल
शिर ऊँचा लिये हैं;
रसों के अभिमान
को नीरस किये हैं!

खून हो जाये न तेरा देख, पानी!
मरण का त्योहार, जीवन की जवानी।

-‘हिमकिरीटिनी’ से

अमर राष्ट्र (Amar Rastra in hindi) माखनलाल चतुर्वेदी की कविता

छोड़ चले, ले तेरी कुटिया,
यह लुटिया-डोरी ले अपनी,
फिर वह पापड़ नहीं बेलने;
फिर वह माल पडे न जपनी।

यह जागृति तेरी तू ले-ले,
मुझको मेरा दे-दे सपना,
तेरे शीतल सिंहासन से
सुखकर सौ युग ज्वाला तपना।

सूली का पथ ही सीखा हूँ,
सुविधा सदा बचाता आया,
मैं बलि-पथ का अंगारा हूँ,
जीवन-ज्वाल जलाता आया।

एक फूँक, मेरा अभिमत है,
फूँक चलूँ जिससे नभ जल थल,
मैं तो हूँ बलि-धारा-पन्थी,
फेंक चुका कब का गंगाजल।

इस चढ़ाव पर चढ़ न सकोगे,
इस उतार से जा न सकोगे,
तो तुम मरने का घर ढूँढ़ो,
जीवन-पथ अपना न सकोगे।

श्वेत केश?- भाई होने को-
हैं ये श्वेत पुतलियाँ बाकी,
आया था इस घर एकाकी,
जाने दो मुझको एकाकी।

अपना कृपा-दान एकत्रित
कर लो, उससे जी बहला लें,
युग की होली माँग रही है,
लाओ उसमें आग लगा दें।

मत बोलो वे रस की बातें,
रस उसका जिसकी तस्र्णाई,
रस उसका जिसने सिर सौंपा,
आगी लगा भभूत रमायी।

जिस रस में कीड़े पड़ते हों,
उस रस पर विष हँस-हँस डालो;
आओ गले लगो, ऐ साजन!
रेतो तीर, कमान सँभालो।

हाय, राष्ट्र-मन्दिर में जाकर,
तुमने पत्थर का प्रभू खोजा!
लगे माँगने जाकर रक्षा
और स्वर्ण-रूपे का बोझा?

मैं यह चला पत्थरों पर चढ़,
मेरा दिलबर वहीं मिलेगा,
फूँक जला दें सोना-चाँदी,
तभी क्रान्ति का समुन खिलेगा।

चट्टानें चिंघाड़े हँस-हँस,
सागर गरजे मस्ताना-सा,
प्रलय राग अपना भी उसमें,
गूँथ चलें ताना-बाना-सा,

बहुत हुई यह आँख-मिचौनी,
तुम्हें मुबारक यह वैतरनी,
मैं साँसों के डाँड उठाकर,
पार चला, लेकर युग-तरनी।

मेरी आँखे, मातृ-भूमि से
नक्षत्रों तक, खीचें रेखा,
मेरी पलक-पलक पर गिरता
जग के उथल-पुथल का लेखा !

मैं पहला पत्थर मन्दिर का,
अनजाना पथ जान रहा हूँ,
गूड़ँ नींव में, अपने कन्धों पर
मन्दिर अनुमान रहा हूँ।

मरण और सपनों में
होती है मेरे घर होड़ा-होड़ी,
किसकी यह मरजी-नामरजी,
किसकी यह कौड़ी-दो कौड़ी?

अमर राष्ट्र, उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र !
यह मेरी बोली
यह `सुधार’ `समझौतों’ बाली
मुझको भाती नहीं ठठोली।

मैं न सहूँगा-मुकुट और
सिंहासन ने वह मूछ मरोरी,
जाने दे, सिर, लेकर मुझको
ले सँभाल यह लोटा-डोरी !

अंजलि के फूल गिरे जाते हैं (Anjali Ke Phool Gire Jate Hain)

अंजलि के फूल गिरे जाते हैं
आये आवेश फिरे जाते हैं।

चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं
साधें आराधनीय रही नहीं
उठने,उठ पड़ने की बात रही
साँसों से गीत बे-अनुपात रही

बागों में पंखनियाँ झूल रहीं
कुछ अपना, कुछ सपना भूल रहीं
फूल-फूल धूल लिये मुँह बाँधे
किसको अनुहार रही चुप साधे

दौड़ के विहार उठो अमित रंग
तू ही `श्रीरंग’ कि मत कर विलम्ब
बँधी-सी पलकें मुँह खोल उठीं
कितना रोका कि मौन बोल उठीं
आहों का रथ माना भारी है
चाहों में क्षुद्रता कुँआरी है

आओ तुम अभिनव उल्लास भरे
नेह भरे, ज्वार भरे, प्यास भरे
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं
आये आवेश फिरे जाते हैं।।

उठ महान (Utha Mahaan)

उठ महान ! तूने अपना स्वर
यों क्यों बेंच दिया?
प्रज्ञा दिग्वसना, कि प्राण् का
पट क्यों खेंच दिया?

वे गाये, अनगाये स्वर सब
वे आये, बन आये वर सब
जीत-जीत कर, हार गये से
प्रलय बुद्धिबल के वे घर सब!

तुम बोले, युग बोला अहरह
गंगा थकी नहीं प्रिय बह-बह
इस घुमाव पर, उस बनाव पर
कैसे क्षण थक गये, असह-सह!

पानी बरसा
बाग ऊग आये अनमोले
रंग-रँगी पंखुड़ियों ने
अन्तर तर खोले;

पर बरसा पानी ही था
वह रक्त न निकला!
सिर दे पाता, क्या
कोई अनुरक्त न निकला?

प्रज्ञा दिग्वसना? कि प्राण का पट क्यों खेंच दिया।
उठ महान् तूने अपना स्वर यों क्यों बेंच दिया!

कैसी है पहिचान तुम्हारी (Kaisi Hain Pahichan Tumhari)

कैसी है पहिचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो !

पथरा चलीं पुतलियाँ, मैंने
विविध धुनों में कितना गाया
दायें-बायें, ऊपर-नीचे
दूर-पास तुमको कब पाया

धन्य-कुसुम ! पाषाणों पर ही
तुम खिलते हो तो खिलते हो।
कैसी है पहिचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो!!

किरणों प्रकट हुए, सूरज के
सौ रहस्य तुम खोल उठे से
किन्तु अँतड़ियों में गरीब की
कुम्हलाये स्वर बोल उठे से !

काँच-कलेजे में भी कस्र्णा-
के डोरे ही से खिलते हो।
कैसी है पहिचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो।।

प्रणय और पुस्र्षार्थ तुम्हारा
मनमोहिनी धरा के बल हैं
दिवस-रात्रि, बीहड़-बस्ती सब
तेरी ही छाया के छल हैं।

प्राण, कौन से स्वप्न दिख गये
जो बलि के फूलों खिलते हो।
कैसी है पहिचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो।।

“बदरिया थम-थमकर झर री” माखन लाल चतुर्वेदी की कविता

बदरिया थम-थनकर झर री !
सागर पर मत भरे अभागन
गागर को भर री !
बदरिया थम-थमकर झर री !
एक-एक, दो-दो बूँदों में
बंधा सिन्धु का मेला,
सहस-सहस बन विहंस उठा है
यह बूँदों का रेला।
तू खोने से नहीं बावरी,
पाने से डर री !
बदरिया थम-थमकर झर री!
जग आये घनश्याम देख तो,
देख गगन पर आगी,
तूने बूंद, नींद खितिहर ने
साथ-साथ ही त्यागी।
रही कजलियों की कोमलता
झंझा को बर री !
बदरिया थम-थमकर झर री !

“जीवन, यह मौलिक महमानी” माखन लाल चतुर्वेदी की कविता

जीवन, यह मौलिक महमानी!
खट्टा, मीठा, कटुक, केसला
कितने रस, कैसी गुण-खानी
हर अनुभूति अतृप्ति-दान में
बन जाती है आँधी-पानी

कितना दे देते हो दानी
जीवन की बैठक में, कितने
भरे इरादे दायें-बायें
तानें रुकती नहीं भले ही
मिन्नत करें कि सौहे खायें!

रागों पर चढ़ता है पानी।।
जीवन, यह मौलिक महमानी।।

ऊब उठें श्रम करते-करते
ऐसे प्रज्ञाहीन मिलेंगे
साँसों के लेते ऊबेंगे
ऐसे साहस-क्षीण मिलेगे

कैसी है यह पतित कहानी?
जीवन, यह मौलिक महमानी।।

ऐसे भी हैं, श्रम के राही
जिन पर जग-छवि मँडराती है
ऊबें यहाँ मिटा करती हैं
बलियाँ हैं, आती-जाती हैं।

अगम अछूती श्रम की रानी!
जीवन, यह मौलिक महमानी।।

Makhanlal Chaturvedi

Frequently Asked Questions (FAQ)

1. चतुर्वेदी जी का जन्म कब हुआ था?

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई. में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में ‘बावई‘ नामक ग्राम में हुआ था।

2. माखनलाल चतुर्वेदी जी की मृत्यु कब हुई थी?

अपनी कविताओं द्वारा नवजागरण और क्रान्ति का शंख फूंकनेवाले कलम के इस सिपाही ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ का 30 जनवरी, सन् 1968 ई. को स्वर्गवास हो गया।

3. माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म कहाँ हुआ था?

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई. में बाबई गाँव, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था।

4. माखनलाल चतुर्वेदी का उपनाम क्या है?

माखनलाल चतुर्वेदी का उपनाम “एक भारतीय आत्मा” है, कुछ लोग इन्हें पंडित कहकर भी संबोधित करते थे।

5. माखनलाल चतुर्वेदी का साहित्य में क्या स्थान है?

माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएं हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है इन्होंने अपने ओजपूर्ण भावात्मक शैली में वीर रस से परिपूर्ण कई सारी रचनाएं करके युवकों में जो ओज और प्रेरणा का भाव भरा है उसका राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान है। राष्ट्रीय चेतना जगाने वाले कवियों में माखनलाल चतुर्वेदी जी का मुर्धन्य स्थान है। हिंदी साहित्य जगत में अपनी साहित्य सेवा के लिए इनको सदैव याद किया जाएगा।

6. माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता कौन सी है?

माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता-  हिमकिरीटिनी, हिमतरंगिणी, वनवासी, कला का अनुवाद, नागार्जुन युद्ध, साहित्य देवता, वेणु लो गूंजे धरा, माता, युगचरण, मरणज्वार, बीजुरी काजल आँज रही, समर्पण, वलय धूम आदि प्रमुख कविताएं है।

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