हरिवंशराय बच्चन का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
'हरिवंशराय बच्चन' उत्तर छायावादी काल के आस्थावादी कवि थे। उनकी कविताओं में मानवीय भावनाओं की सामान्य एवं स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। सरलता, संगीतात्मकता, प्रवाह और मार्मिकता उनके काव्य की विशेषताएँ हैं और इन्हीं से उनको इतनी अधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई।
आरम्भ में 'हरिवंश राय बच्चन' उमर खैय्याम के जीवन-दर्शन से बहुत प्रभावित रहे। इसी ने उनके जीवन को मस्ती से भर दिया। मधुशाला, मधुबाला, हाला और प्याला को उन्होंने प्रतीकों के रूप में स्वीकार किया।
पहली पत्नी की मृत्यु के बाद घोर विषाद और निराशा ने उनके जीवन को घेर लिया। इसके स्वर हमको निशा-निमन्त्रण और एकान्त संगीत में सुनने को मिले। इसी समय से हृदय की गम्भीर वृत्तियों का विश्लेषण आरम्भ हुआ। किन्तु सतरंगिणी में फिर नीड़ का निर्माण किया गया और जीवन का प्याला एक बार फिर उल्लास और आनन्द के आसव से छलकने लगा।
'बच्चन' वास्तव में व्यक्तिवादी कवि रहे किन्तु 'बंगाल का काल' तथा इसी प्रकार की अन्य रचनाओं में उन्होंने अपने जीवन के बाहर विस्तृत जनजीवन पर भी दृष्टि डालने का प्रयत्न किया। इन परवर्ती रचनाओं में कुछ नवीन विषय भी उठाए गए और कुछ अनुवाद भी प्रस्तुत किए गए। इनमें कवि की विचारशीलता तथा चिन्तन की प्रधानता रही।
परवर्ती रचनाओं में कवि की वह भावावेशपूर्ण तन्मयता नहीं है, जो उनकी आरम्भिक रचनाओं में पाठकों और श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध करती रही। कवि बच्चन का निधन 18 जनवरी सन् 2003 को हुआ।
स्वप्न का प्रयोग कल्पना के लिए किया गया है।
रास्ते का एक काँटा पाँव का दिल चीर देता = जीवन की एक कठिनाई कभी-कभी मनुष्य को हताश कर देती है।
आँख में हो स्वर्ग लेकिन पाँव पृथ्वी पर टिके हों= मन में चाहे कितनी ऊँची कल्पना हो परन्तु कार्य व्यावहारिक होना चाहिए।
हरिवंशराय बच्चन का जीवन परिचय
हरिवंशराय बच्चन' का जन्म प्रयाग में सन् 1907 ई० में हुआ। उन्होंने काशी और प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। कुछ समय वे प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापक रहे और फिर दिल्ली में विदेश मन्त्रालय में सेवारत रहे। वहीं से उन्होंने अवकाश ग्रहण किया।'हरिवंशराय बच्चन' उत्तर छायावादी काल के आस्थावादी कवि थे। उनकी कविताओं में मानवीय भावनाओं की सामान्य एवं स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। सरलता, संगीतात्मकता, प्रवाह और मार्मिकता उनके काव्य की विशेषताएँ हैं और इन्हीं से उनको इतनी अधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई।
आरम्भ में 'हरिवंश राय बच्चन' उमर खैय्याम के जीवन-दर्शन से बहुत प्रभावित रहे। इसी ने उनके जीवन को मस्ती से भर दिया। मधुशाला, मधुबाला, हाला और प्याला को उन्होंने प्रतीकों के रूप में स्वीकार किया।
पहली पत्नी की मृत्यु के बाद घोर विषाद और निराशा ने उनके जीवन को घेर लिया। इसके स्वर हमको निशा-निमन्त्रण और एकान्त संगीत में सुनने को मिले। इसी समय से हृदय की गम्भीर वृत्तियों का विश्लेषण आरम्भ हुआ। किन्तु सतरंगिणी में फिर नीड़ का निर्माण किया गया और जीवन का प्याला एक बार फिर उल्लास और आनन्द के आसव से छलकने लगा।
'बच्चन' वास्तव में व्यक्तिवादी कवि रहे किन्तु 'बंगाल का काल' तथा इसी प्रकार की अन्य रचनाओं में उन्होंने अपने जीवन के बाहर विस्तृत जनजीवन पर भी दृष्टि डालने का प्रयत्न किया। इन परवर्ती रचनाओं में कुछ नवीन विषय भी उठाए गए और कुछ अनुवाद भी प्रस्तुत किए गए। इनमें कवि की विचारशीलता तथा चिन्तन की प्रधानता रही।
परवर्ती रचनाओं में कवि की वह भावावेशपूर्ण तन्मयता नहीं है, जो उनकी आरम्भिक रचनाओं में पाठकों और श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध करती रही। कवि बच्चन का निधन 18 जनवरी सन् 2003 को हुआ।
प्रमुख रचनाएँ
- काव्य: मधुशाला, मधुकलश, मधुबाला, निशा-निमन्त्रण, एकान्त संगीत, सतरंगिनी, मिलन-यामिनी, आकुल अन्तर, बुद्ध और नाचघर, प्रणय-पत्रिका, आरती और अंगार आदि।
- आत्मकथा: क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक, प्रवास की डायरी।
पथ की पहचान
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
(1)
पुस्तकों में है नहीं
छापी गयी इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता
है न औरों की जुबानी,
अनगिनत-राही गए इस
राह से, उनका पता क्या?
पर गए कुछ लोग इस पर
छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर
भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी,
पंथ का अनुमान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
(2)
यह बुरा है या कि अच्छा,
व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
अब असंभव, छोड़ यह पथ
दूसरे पर पग बढ़ाना,
तू इसे अच्छा समझ,
यात्रा सरल इससे बनेगी।
सोच मत केवल तुझे ही
यह पड़ा मन में बिठाना,
हर सफल पंथी यही
विश्वास ले इस पर बढ़ा है,
तू इसी पर आज अपने
चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
(3)
है अनिश्चित किस जगह पर
सरित, गिरि गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित, किस जगह पर
बाग वन सुन्दर मिलेंगे।
किस जगह यात्रा खतम हो
जायगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब
कंटकों के शर मिलेंगे,
कौन सहसा छूट जाएँगे,
मिलेंगे. कौन सहसा
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा
तू न ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
(4)
कौन कहता है कि स्वप्नों
को न आने दे हृदय में!
देखते सब हैं इन्हें
अपनी उमर, अपने समय में
और तू कर यत्न भी तो
मिल नहीं सकती सफलता,
ये उदय होते, लिए कुछ
ध्येय नयनों के निलय में,
किन्तु जग के पंथ पर यदि
स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,
स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो,
सत्य का भी ज्ञान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही!
बाट की पहचान कर ले।
(5)
स्वप्न आता स्वर्ग का, द्रग
कोरकों में दीप्ति आती,
पंख लग जाते पगों को,
ललकती उन्मुक्त-छाती,
रास्ते का एक काँटा
पाँव का दिल चीर देता,
रक्त की दो बूंद गिरती,
एक दुनिया डूब जाती,
आँख में हो स्वर्ग, लेकिन
पाँव पृथ्वी पर टिके हों,
कंटकों की इस अनोखी
सीख का सम्मान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
पथ की पहचान गीत का मूल भाव यह है कि सफल जीवन के लिए मनुष्य को साहस के साथ जीवन-मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए। जीवन की कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए तथा अन्य महापुरुषों के आदर्शों से प्रेरणा लेनी चाहिए।बाट की पहचान कर ले।
(1)
पुस्तकों में है नहीं
छापी गयी इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता
है न औरों की जुबानी,
अनगिनत-राही गए इस
राह से, उनका पता क्या?
पर गए कुछ लोग इस पर
छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर
भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी,
पंथ का अनुमान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
(2)
यह बुरा है या कि अच्छा,
व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
अब असंभव, छोड़ यह पथ
दूसरे पर पग बढ़ाना,
तू इसे अच्छा समझ,
यात्रा सरल इससे बनेगी।
सोच मत केवल तुझे ही
यह पड़ा मन में बिठाना,
हर सफल पंथी यही
विश्वास ले इस पर बढ़ा है,
तू इसी पर आज अपने
चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
(3)
है अनिश्चित किस जगह पर
सरित, गिरि गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित, किस जगह पर
बाग वन सुन्दर मिलेंगे।
किस जगह यात्रा खतम हो
जायगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब
कंटकों के शर मिलेंगे,
कौन सहसा छूट जाएँगे,
मिलेंगे. कौन सहसा
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा
तू न ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
(4)
कौन कहता है कि स्वप्नों
को न आने दे हृदय में!
देखते सब हैं इन्हें
अपनी उमर, अपने समय में
और तू कर यत्न भी तो
मिल नहीं सकती सफलता,
ये उदय होते, लिए कुछ
ध्येय नयनों के निलय में,
किन्तु जग के पंथ पर यदि
स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,
स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो,
सत्य का भी ज्ञान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही!
बाट की पहचान कर ले।
(5)
स्वप्न आता स्वर्ग का, द्रग
कोरकों में दीप्ति आती,
पंख लग जाते पगों को,
ललकती उन्मुक्त-छाती,
रास्ते का एक काँटा
पाँव का दिल चीर देता,
रक्त की दो बूंद गिरती,
एक दुनिया डूब जाती,
आँख में हो स्वर्ग, लेकिन
पाँव पृथ्वी पर टिके हों,
कंटकों की इस अनोखी
सीख का सम्मान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
- बच्चन : 'सतरंगिणी' से
पथ की पहचान में प्रयुक्त कठिन शब्द और अर्थ
क्रम | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | चित्त का अवधान | मनोयोग, निश्चय। |
2. | गह्वर | गड्ढे। |
3. | सरित, गिरि, गह्वर | बाधाओं एवं कठिनाइयों के प्रतीक हैं। |
4. | बाग, वन | सुख के प्रतीक हैं। |
5. | कंटकों के शर | बाण की तरह चुभने वाले काँटे, दुःख के प्रतीक । |
6. | कोरकों | कली। |
7. | आन | हठ। |
8. | निलय | कक्ष, |
रास्ते का एक काँटा पाँव का दिल चीर देता = जीवन की एक कठिनाई कभी-कभी मनुष्य को हताश कर देती है।
आँख में हो स्वर्ग लेकिन पाँव पृथ्वी पर टिके हों= मन में चाहे कितनी ऊँची कल्पना हो परन्तु कार्य व्यावहारिक होना चाहिए।