रहीम दास (रहीमदास: Rahim Das) का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। "रहीम दास (रहीमदास)" का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
रहीम अकबर के दरबार के नवरत्नों में से थे। वे अकबर के प्रधान सेनापति और मंत्री भी थे। वे वीर योद्धा थे और बड़े कौशल से सेना का संचालन करते थे। उनकी दानशीलता की अनेक कहानियाँ प्रचलित हैं। सन् 1627 ई० में उनकी मृत्यु हो गयी।
उन कवि रहीम कई भाषाओं के ज्ञाता थे-विशेष रूप से अरबी, तुर्की, फारसी तथा संस्कृत के तो वे पंडित थे। ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं पर रहीम का समान अधिकार था। हिन्दी-काव्य के वे मर्मज्ञ थे और हिन्दी-कवियों का बड़ा सम्मान करते थे। गोस्वामी तुलसीदास से भी इनका परिचय तथा स्नेह-सम्बन्ध था।
रहीम जन-साधारण में अपने दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं, पर उन्होंने कवित्त, सवैया, सोरठा, छप्पय तथा बरवै छंदों में भी सफल काव्य-रचना की है। उनकी भाषा सरल, स्पष्ट तथा प्रभावपूर्ण है। उनकी समस्त रचनाएँ मुक्तक शैली में हैं। उनकी शैली में सरसता, मधुरता, सरलता तथा बोधगम्यता है। रहीम की रचनाओं में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास तथा दृष्टान्त आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है तथा उनमें शृंगार, शान्त तथा हास्य रस भी उपलब्ध हैं। उनमें शृंगार के संयोग एवं वियोग दोनों ही रूपों का सम्यक् चित्रण हुआ है। हिन्दी के मुसलमान कवियों में रहीम का विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण स्थान है।
जीवन परिचय
रहीम का पूरा नाम अब्दुलरहीम खानखाना था। उनका जन्म सन् 1556 ई. के लगभग लाहौर नगर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। ये अकबर के संरक्षक बैरमखाँ के पुत्र थे। अकबर ने बैरमखाँ को हज पर भेज दिया। मार्ग में उनके शत्रु ने उनका वध कर दिया। अकबर ने रहीम एवं उनकी माँ को अपने पास बुला लिया तथा दोनों की स्वयं देखभाल की तथा उनके भरण-पोषण का प्रबन्ध भी किया। अकबर ने ही रहीम की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की।रहीम अकबर के दरबार के नवरत्नों में से थे। वे अकबर के प्रधान सेनापति और मंत्री भी थे। वे वीर योद्धा थे और बड़े कौशल से सेना का संचालन करते थे। उनकी दानशीलता की अनेक कहानियाँ प्रचलित हैं। सन् 1627 ई० में उनकी मृत्यु हो गयी।
उन कवि रहीम कई भाषाओं के ज्ञाता थे-विशेष रूप से अरबी, तुर्की, फारसी तथा संस्कृत के तो वे पंडित थे। ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं पर रहीम का समान अधिकार था। हिन्दी-काव्य के वे मर्मज्ञ थे और हिन्दी-कवियों का बड़ा सम्मान करते थे। गोस्वामी तुलसीदास से भी इनका परिचय तथा स्नेह-सम्बन्ध था।
रचनाएँ एवं कृतियाँ
'रहीम-सतसई', 'शृंगार-सतसई', 'मदनाष्टक', 'रासपंचाध्यायी', 'रहीम-रत्नावली' तथा 'बरवै नायिका-भेद' आदि उनकी रचनाएँ हैं। उन्होंने फारसी भाषा में भी ग्रंथों की रचना की है। उनकी रचनाओं का पूर्ण संग्रह 'रहीम-रत्नावली' के नाम से प्रकाशित हुआ है।भाषा और शैली
रहीम बड़े लोकप्रिय कवि थे। उनके नीति के दोहे तो सर्वसाधारण की जिह्वा पर रहते हैं। इनके दोहों में कोरी नीति की नीरसता नहीं है। उनमें मार्मिकता तथा कवि-हृदय की सच्ची संवेदना भी मिलती है। दैनिक जीवन की अनुभूतियों पर आधारित दृष्टान्तों के माध्यम से उनका कथन सीधे हृदय पर चोट करता है। उनकी रचनाओं में नीति के अतिरिक्त भक्ति तथा शृंगार की भी सुन्दर व्यंजना हुई है।रहीम जन-साधारण में अपने दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं, पर उन्होंने कवित्त, सवैया, सोरठा, छप्पय तथा बरवै छंदों में भी सफल काव्य-रचना की है। उनकी भाषा सरल, स्पष्ट तथा प्रभावपूर्ण है। उनकी समस्त रचनाएँ मुक्तक शैली में हैं। उनकी शैली में सरसता, मधुरता, सरलता तथा बोधगम्यता है। रहीम की रचनाओं में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास तथा दृष्टान्त आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है तथा उनमें शृंगार, शान्त तथा हास्य रस भी उपलब्ध हैं। उनमें शृंगार के संयोग एवं वियोग दोनों ही रूपों का सम्यक् चित्रण हुआ है। हिन्दी के मुसलमान कवियों में रहीम का विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण स्थान है।
दोहा
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥1॥
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥1॥
रहिमन प्रीति सराहिए, मिले होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥2॥
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥2॥
टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार ॥ 3 ॥
रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार ॥ 3 ॥
रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ।
जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ॥4॥
जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ॥4॥
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
बिपति-कसौटी जे कसे, तेही साँचे मीत ॥ 5 ॥
बिपति-कसौटी जे कसे, तेही साँचे मीत ॥ 5 ॥
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर कौ, तऊँ न छाँड़त छोह ॥6॥
रहिमन मछरी नीर कौ, तऊँ न छाँड़त छोह ॥6॥
दीन सबन को लखत हैं, दीनहि लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबन्धु सम होय ॥ 7 ॥
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबन्धु सम होय ॥ 7 ॥
प्रीतम छबि नैननि बसी, पर छबि कहाँ समाय।
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आपु फिरि जाय॥ 8॥
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आपु फिरि जाय॥ 8॥
रहिमन धागा प्रेम कौ, मत तोरेउ चटकाय।
टूटे ते फिरि ना जुरै, जुरै गाँठ परि जाय॥ 9 ॥
टूटे ते फिरि ना जुरै, जुरै गाँठ परि जाय॥ 9 ॥
कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन॥10॥
स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूंदें जब केले
पर पड़ती हैं तो कपूर, सीप में पड़ती हैं तो मोती तथा साँप के मुख में पड़ती हैं तो विष बन जाती हैं, ऐसी
कवि की मान्यता है।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन॥10॥
तरुवर फल नहीं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।।
कहि रहीम परकाज हित, संपति सँचहिं सुजान ॥ 11 ॥
कहि रहीम परकाज हित, संपति सँचहिं सुजान ॥ 11 ॥
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि ॥ 12 ॥
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि ॥ 12 ॥
यों रहीम सुख होत है, बढ़त देख निज गोत।
ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि, ऑखिन को सुख होत॥ 13 ।।
ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि, ऑखिन को सुख होत॥ 13 ।।
रहिमन ओछे नरन ते, तजौ बैर अरु प्रीत।।
काटे-चाटे स्वान के, दुहूँ भाँति विपरीत। 14॥
काटे-चाटे स्वान के, दुहूँ भाँति विपरीत। 14॥
रहीम दास के दोहा में प्रयुक्त कठिन शब्द अर्थ (शब्दार्थ)
क्रम | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | प्रकृति | स्वभाव। |
2. | व्यापत | प्रभावित। |
3. | भुजंग | साँप। |
4. | सराहिए | प्रशंसा। |
5. | दून | दो गुना। |
6. | जरदी | पीलापन। |
7. | हरदी | हल्दी। |
8. | चून | चूना। |
9. | टूटे सुजन | सज्जन व्यक्ति के नाराज होने पर। |
10. | पोइए | पिरोइए, पिरोना चाहिए। |
11. | मुक्ताहार | (मुक्ता + हार) मोतियों का हार। |
12. | असुआ | आँसू । |
13. | ढरि | ढुलक कर। |
14. | गेह | घर। |
15. | भेद | रहस्य। |
16. | सगे | सम्बन्धी। |
17. | बिपति-कसौटी | विपत्ति रूपी कसौटी। |
18. | कसौटी | स्वर्ण को परखने का काला पत्थर। |
19. | मीत | मित्र। |
20. | मीनन को | मछलियों का। |
21. | मछरी | मछली। |
22. | छोह | प्रेम। |
23. | दीनहि | दरिद्र को। |
24. | लखै | देखे। |
25. | कोय | कोई। |
26. | दीनबन्धु | भगवान्।। |
27. | पर छबि | पराया सौन्दर्य, किसी अन्य की सुन्दरता। |
28. | पथिक | राही। |
29. | आपु | स्वयं (ही)। |
30. | फिरि जाय | लौट जाता है। |
31. | धागा | डोर। |
32. | मत तोरेउ चटकाय | तोड़कर मत चटकाओ, तोड़ना-चटकाना नहीं चाहिए। |
33. | ना जुरै | जुड़ता नहीं है। |
34. | जुरै | जुड़ने पर। |
35. | सरवर | श्रेष्ठ, तालाब, सरोवर। |
36. | पान | जल। |
37. | सँचहिं | संचय करता है। |
38. | लघु | छोटा। |
39. | डारि | डालना, फेंकना। |
40. | तरवारि | तलवार। |
41. | गोत | (गोत्र) कुल। |
42. | बड़री | बड़ी। |
43. | निरखि | देखकर। |
44. | ओछे | नीच, बुरी आदत वाले। |
45. | स्वान | (श्वान) कुत्ता। |
46. | विपरीत | विरुद्ध, हानिकारक। |