केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
केदारनाथ अग्रवाल अपने इण्टरमीडिएट के शिक्षक एमकृष्ण शिलीमुख से अति प्रभावित हुए उन्होंने ही अग्रवाल जी की कुछ कविताएँ लखनऊ से प्रकाशित होने वाली माधुरी पत्रिका को भेजीं, कविताएँ छपी। इससे प्रभावित होकर अग्रवाल जी विभिन्न कवि सम्मेलनों में भाग लेने लगे।
प्रगतिशील आन्दोलन को बल प्रदान करने वाले सक्रिय कवयिों में से केदानाथ अग्रवाल प्रमुख हैं। उन्होंने मुक्त छंदों एवं गीति छन्दों का सफल प्रयोग किया है। इनका शब्द चयन कलात्मक होता है तथा भावानुभूति यथा सन् 2000 ई० में आपका असमायक निधन हो गया।
केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय
प्रगतिवादी कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म सन् 1911 ई० में ग्राम कमासिन बाँदा उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनको प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हई। उच्च शिक्षा प्राप्ती हेतु ये इलाहाबाद गये जहाँ से इन्होंने बी०ए० का उपाधि प्राप्त की। इसके बाद आगरा विश्वविद्यालय आगरा से एल-एल०बी० की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा बाँदा में वकालत करने लगे। बाँदा के राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में गहन रूचि के साथ उन्होंने हिन्दी के प्रगतिशील आन्दोलन में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया।केदारनाथ अग्रवाल अपने इण्टरमीडिएट के शिक्षक एमकृष्ण शिलीमुख से अति प्रभावित हुए उन्होंने ही अग्रवाल जी की कुछ कविताएँ लखनऊ से प्रकाशित होने वाली माधुरी पत्रिका को भेजीं, कविताएँ छपी। इससे प्रभावित होकर अग्रवाल जी विभिन्न कवि सम्मेलनों में भाग लेने लगे।
रचनाएँ
विश्वविद्यालय में पहुँचने पर उनका परिचय हरिऔध एवं रसाल जैसे उच्च कोटी के कवियों से हआ नगर के अन्य कवियों के साथ वे उठने-बैठने लगे। 'नींद के बादल' उनका प्रथम काव्यसंग्रह प्रकाशित हुआ। इसके बाद 'युग की गंगा' का प्रकाशन हुआ। लोक तथा आलोक में इनकी प्रगतिशील रचनाएँ हैं। इनकी कविताओं में शोषकों के प्रति तीव्र आक्रोश है। 'फुल नहीं रंग बोलते हैं, में इनकी मर्म-स्पर्शी रचनाएँ हैं।प्रगतिशील आन्दोलन को बल प्रदान करने वाले सक्रिय कवयिों में से केदानाथ अग्रवाल प्रमुख हैं। उन्होंने मुक्त छंदों एवं गीति छन्दों का सफल प्रयोग किया है। इनका शब्द चयन कलात्मक होता है तथा भावानुभूति यथा सन् 2000 ई० में आपका असमायक निधन हो गया।
अच्छा होता
अच्छा होता
अगर आदमी
आदमी के लिए
परार्थी-
पक्का-
और नियत का सच्चा होता
न स्वार्थ का चहबच्चा-
न दगैल-दागी-
न चरित्र का कच्चा होता।
अच्छा होता
अगर आदमी
आदमी के लिए
दिलदार-
और हृदय की थाती होता,
न ईमान का घाती-
ठगैत ठाकुर
न मौत का बराती होता
अगर आदमी
आदमी के लिए
परार्थी-
पक्का-
और नियत का सच्चा होता
न स्वार्थ का चहबच्चा-
न दगैल-दागी-
न चरित्र का कच्चा होता।
अच्छा होता
अगर आदमी
आदमी के लिए
दिलदार-
और हृदय की थाती होता,
न ईमान का घाती-
ठगैत ठाकुर
न मौत का बराती होता
-'अपूर्वा से'
सितार-संगीत की रात
आग से ओठ बोलते हैं
सितार के बोल,
खुलती चली जाती हैं
शहद की पुंखरियाँ
चूमती अंगुलियों के नृत्यु पर,
राग-पर-राग करते हैं किलोल,
रात के खुले वक्ष पर,
चन्द्रमा के साथ,
शताब्दियाँ झाँकती हैं
अनन्त की खिड़कियों से,
संगीत के समारोह में कौमार्य बरसता है,
हर्ष का हंस दूध पर तैरता है,
जिस पर सवार भूमि की सरस्वति
काव्य-लोक में विचरण करती है।
सितार के बोल,
खुलती चली जाती हैं
शहद की पुंखरियाँ
चूमती अंगुलियों के नृत्यु पर,
राग-पर-राग करते हैं किलोल,
रात के खुले वक्ष पर,
चन्द्रमा के साथ,
शताब्दियाँ झाँकती हैं
अनन्त की खिड़कियों से,
संगीत के समारोह में कौमार्य बरसता है,
हर्ष का हंस दूध पर तैरता है,
जिस पर सवार भूमि की सरस्वति
काव्य-लोक में विचरण करती है।