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जापान में ही उनकी भेंट भारतीय सन्त स्वामी रामतीर्थ से हुई और उनसे प्रभावित होकर अपने संन्यास ले लिया तथा उन्हीं के साथ भारत लौट आए। स्वामी जी की मृत्यु के उपरान्त इनके विचारों में पुनः परिवर्तन आया और इन्होंने संन्यास त्यागकर विवाह कर लिया। और गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे।
इसके बाद देहरादून के फारेस्ट कॉलेज में अध्यापक हो गए। यहीं से उनके नाम के साथ 'अध्यापक' शब्द जुड़ गया। यहां से त्याग-पत्र देने के बाद वे ग्वालियर महाराज की सेवा में चले गए किन्तु दरबारियों के षड्यन्त्र से महाराज से इनका मनमुटाव हो गया और ये नौकरी छोड़कर पंजाब के जडांवाला गांव में आकर खेती करने लगे। जीवन के अन्तिम दिनों में इन्हें आर्थिक अभाव झेलना पड़ा। अध्यापक पूर्णसिंह की मृत्यु सन् 1931 ई. में हुई।
सरदार पूर्णसिंह का जीवन-परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
अथवासरदार पूर्णसिंह की साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख करते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताएं बताइए।
अध्यापक पूर्णसिंह द्विवेदी युगीन निबन्धकारों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। भावात्मक निबन्धों के रचनाकार के रूप में पूर्णसिंह जी हिन्दी में अद्वितीय माने जा सकते हैं। आपकी भाषा में लाक्षणिकता का जैसा प्रयोग है, वैसा बहुत कम निबन्धकारों में दिखाई पड़ता है। पूर्णसिंह जी ने हिन्दी के अतिरिक्त पंजाबी एवं अंग्रेजी भाषा में भी लिखा है। हिन्दी में आपके लिखे हुए छ: निबन्ध उपलब्ध है, इन्हीं निबन्धों के कारण सरदार पूर्णसिंह हिन्दी लेखकों में अमर हो गए।सरदार पूर्णसिंह का 'जीवन-परिचय'
सरदार पूर्णसिंह का जन्म सन् 1881 ई. में 'एबटाबाद जिले में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। मैट्रिक तक की शिक्षा रावलपिण्डी में पाने के बाद आपने इण्टर की परीक्षा लाहौर से उत्तीर्ण की और रसायन शास्त्र की शिक्षा पाने के लिए 1900 ई. में एक विशेष छात्रवृत्ति पाकर जापान चले गए। वहां तीन वर्ष तक 'इम्पीरियल यूनीवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त की।जापान में ही उनकी भेंट भारतीय सन्त स्वामी रामतीर्थ से हुई और उनसे प्रभावित होकर अपने संन्यास ले लिया तथा उन्हीं के साथ भारत लौट आए। स्वामी जी की मृत्यु के उपरान्त इनके विचारों में पुनः परिवर्तन आया और इन्होंने संन्यास त्यागकर विवाह कर लिया। और गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे।
इसके बाद देहरादून के फारेस्ट कॉलेज में अध्यापक हो गए। यहीं से उनके नाम के साथ 'अध्यापक' शब्द जुड़ गया। यहां से त्याग-पत्र देने के बाद वे ग्वालियर महाराज की सेवा में चले गए किन्तु दरबारियों के षड्यन्त्र से महाराज से इनका मनमुटाव हो गया और ये नौकरी छोड़कर पंजाब के जडांवाला गांव में आकर खेती करने लगे। जीवन के अन्तिम दिनों में इन्हें आर्थिक अभाव झेलना पड़ा। अध्यापक पूर्णसिंह की मृत्यु सन् 1931 ई. में हुई।
सरदार पूर्णसिंह की 'कृतियां'
सरदार पूर्णसिंह के कुल छ: निबन्ध हिन्दी में उपलब्ध होते हैं:- सच्ची वीरता
- आचरण की सभ्यता
- मजदूरी और प्रेम
- अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट हिटमैन
- कन्यादान
- पवित्रता