डॉ. सम्पूर्णानन्द – जीवन परिचय, कृतियां और भाषा शैली Dr Sampurnanand

डॉ. सम्पूर्णानन्द (Sampurnanand) का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। सम्पूर्णानन्द का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।

Sampurnanand - Dr Sampurnanand

Sampurnanand Biography / Sampurnanand Jeevan Parichay / Sampurnanand Jivan Parichay / डॉ. सम्पूर्णानन्द :

नाम सम्पूर्णानन्द
जन्म 1890 ई.
जन्मस्थान बनारस, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 10 जनवरी, 1969 ई.
पिता विजयानन्द
उपाधि साहित्य वाचस्पति
प्रमुख रचनाएँ चिद्विलास, पृथ्वी से सप्तर्षि मण्डल, ज्योतिर्विनोद, गणेश, ब्राह्मण सावधान,  पुरुषसूक्त, चीन की राज्य क्रान्ति, मिस्र की राज्य क्रान्ति आदि।
भाषा संस्कृत की तत्सम शब्दावली से युक्त हिन्दी भाषा
शैली विविध शैली का प्रयोग (विवेचनात्मक एवं गवेषणात्मक की प्रमुखता)
साहित्य में स्थान एक प्रबुद्ध विचारक, शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ एवं साहित्यकार
सम्पादन मर्यादा मासिक पत्र, टुडे अंग्रेजी दैनिक
पुरुस्कार मंगलाप्रसाद पारितोषिक

डॉ. सम्पूर्णानन्द का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए। अथवा डॉ. सम्पूर्णानन्द का जीवन-परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताएं लिखिए।

डॉ. सम्पूर्णानन्द एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रखर विचारक, महान शिक्षाविद् एवं एक समर्थ साहित्यकार थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. सम्पूर्णानन्द ने विविध विषयों पर विवेचनात्मक निबन्ध लिखकर अपने मौलिक विचारों से जनता एवं साहित्य प्रेमियों को नये ढंग से सोचने-विचारने का अवसर प्रदान किया। वे जितने बड़े दार्शनिक थे उतने ही महान चिन्तक थे तथा जितने प्रकाण्ड विद्वान थे उतने ही सरल हदय वाले राजनेता थे।

सम्पूर्णानन्द जी का ‘जीवन-परिचय’

सम्पूर्णानन्द जी का जन्म 1890 ई. में बनारस में एक संभ्रान्त कायस्थ परिवार में हुआ। आपके पिता श्री विजयानन्द धार्मिक प्रवृति के थे जिसका प्रभाव सम्पूर्णानन्द जी के जीवन पर भी पड़ा।

सम्पूर्णानन्द जी ने क्वीन्स कॉलेज बनारस से बी एस सी की परीक्षा उत्तीर्ण की और इलाहाबाद से एल.टी. करने के उपरान्त अध्यापक के रूप में सर्वप्रथम प्रेम विद्यालय व्रन्दावन में सेवा प्रारम्भ की।

कुछ दिनों के उपरान्त डूंगरमल कॉलेज बीकानेर में आप प्रिन्सिपल नियुक्त होकर 1921 ई. में गांधी जी के साथ आन्दोलन में कूद पड़े और नौकरी छोड़कर काशी में ‘ज्ञान मण्डल’ में काम करने लगे। आपको स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी।

इन्हीं दिनों आपने मर्यादा और टुडे नामक पत्रों का सम्पादन कार्य भी किया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद आप उत्तर प्रदेश के गृह मन्त्री, शिक्षा मन्त्री और मुख्यमन्त्री रहे तथा 1962 में राजस्थान के राज्यपाल नियुक्त हुए।

वहां से कार्यमुक्त होकर काशी लौट आए और मृत्यु-पर्यन्त काशी विद्यापीठ के कुलपति बने रहे। 10 जनवरी, 1969 ई. को आपका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया।

डॉ. सम्पूर्णानन्द की कृतियां

  1. निबन्ध संग्रह – (१) चिद्विलास, (२) पृथ्वी से सप्तर्षि मण्डल, (३) ज्योतिर्विनोद, (४) अन्तरिक्ष यात्रा, (५) भाषा की शक्ति, (६) जीवन और दर्शन।
  2. धर्म सम्बन्धी रचनाएं – (१) गणेश, (२) ब्राह्मण सावधान, (३) पुरुषसूक्त, (४) हिन्दू देव परिवार का विकास।
  3. राजनीति और इतिहास (१) चीन की राज्य क्रान्ति, (२) मिस्र की राज्य क्रान्ति, (३) समाजवाद, (४) आर्यों का आदि देश, (५) सम्राट हर्षवर्धन, (६) भारत के देशी राज्य, (७) अधूरी क्रान्ति।
  4. सम्पादन – मर्यादा मासिक पत्र, टुडे अंग्रेजी दैनिक।
  5. जीवनी – (१) देशबन्धु चितरंजनदास, (२) महात्मा गांधी।

हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने इनकी कृति ‘समाजवाद‘ पर इन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्रदान किया तथा साहित्य वाचस्पति की उपाधि देकर सम्मानित किया।

भाषागत विशेषताएं

सम्पूर्णानन्द की भाषा में विषय के अनुकूल भाषा का प्रयोग हुआ है। दार्शनिक एवं विवेचनात्मक निबन्धों में संस्कृत की तत्सम शब्दावली से युक्त भाषा का प्रयोग वे करते हैं। इसमें गम्भीरता है किन्तु दुरूहता नहीं है।

सामान्यतः उनके निबन्धों में सरल सहज भाषा का प्रयोग हुआ है जिसमें अंग्रेजी एवं उर्दू के चलते हुए शब्द भी उपलब्ध हो जाते हैं। सम्पूर्णानन्द जी भाषा मर्मज्ञ थे उन्हें शब्द के अर्थ की सही जानकारी थी। यही कारण है कि उनकी भाषा में सटीक शब्द चयन हुआ है।

सम्पूर्णानन्द जी की भाषा में प्रायः मुहावरे नहीं मिलते। एक-दो स्थानों पर ही सामान्य मुहावरे यथा : “धर्म संकट में पड़ना, गम गलत करना” आदि उपलब्ध होते हैं। सम्पूर्णानन्द जी की भाषा में स्पष्टता एवं सुबोधता का गुण व्याप्त है दार्शनिक विषयों पर लिखे गए निबन्धों में भी विलष्टता नहीं आई है।

सम्पूर्णानन्द की ‘शैली के विविध रूप’

सम्पूर्णानन्द जी के निबन्धों में शैली का स्वरूप विषय के अनरूप बदलता है। उन्होंने निम्न शैलियों का प्रयोग प्रमुख रूप से किया हैं :

विवेचनात्मक शैली

इस शैली का प्रयोग उन्होंने मौलिक निबन्धों में किया है। वाक्य लम्बे-लम्बे किन्तु वारों से यक्त हैं। इसमें गम्भीरता के साथ-साथ मौलिक चिन्तन को भी अभिव्यक्ति मिली है। यथा – “जब तक आत्म-साक्षात्कार न होगा, तब तक अपूर्णता की अनुभूति बनी रहेगी और आनन्द की खोज जारी रहेगी।”

गवेषणात्मक शैली

यह शैली शोधपरक निबन्धों में तथा दार्शनिक विषयों पर लिखे गए निबन्धों में दिवाई पड़ती है। धर्म, दर्शन तथा आलोचना सम्बन्धी अधिकांश निबन्धों में इस शैली का प्रयोग हुआ है। एक का पतन है: “आत्मा अजर-अमर है। उसमें अनन्त ज्ञान, शक्ति और आनन्द का भण्डार है। अकेले ज्ञान करना भी पर्याप्त हो सकता है क्योंकि जहां ज्ञान होता है, वहां शक्ति होती है और जहां ज्ञान और शक्ति होते हैं, वहां आनन्द भी होता है।”

सूत्र शैली

सम्पूर्णानन्द जी ने अपने निवन्धों में कहीं-कहीं सूत्र शैली का प्रयोग भी किया है। उनके निबन्धों में पाई जाने वाली सूक्तियां इसी शैली का परिचय देती है, यया :

  • आत्मा अजर अमर है।
  • आत्म-साक्षात्कार का मुख्य साधन योगाभ्यास है।
  • एकाग्रता ही आत्म-साक्षात्कार की कुंजी है।

व्याख्यात्मक शैली

जहां लेखक को किसी विषय का विस्तृत विवेचन या व्याख्या करना आवश्यक लगती है, वहां इस शैली का प्रयोग किया गया है। सम्पूर्णानन्द जी एक अध्यापक थे, अतः अध्यापक की भांति व्याख्या करने में वे कुशल थे। इसी कुशलता का उपयोग उन्होंने अपनी व्याख्यात्मक शैली में किया है। एक उदाहरण प्रस्तुत है : “अध्यापक का कर्तव्य है कि छात्र में सौन्दर्य के प्रति प्रेम उत्पन्न करे। यह स्मरण रखना चाहिए कि सौन्दर्य प्रेम भी निष्काम होता हैं।”

डॉ. सम्पूर्णानन्द का “हिन्दी साहित्य में स्थान”

डॉ. सम्पूर्णानन्द की ख्याति एक प्रबुद्ध विचारक, शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ एवं साहित्यकार के रूप में रही है। उनकी विविध कृतियां उनकी विचार शक्ति, पाण्डित्य का उद्घोष करती हैं।

कुछ कृतियां तो ऐसी हैं, जो अपने विषय की अन्यतम कृतियों में गिनी जाती हैं। ‘चिविलास’ एवं ‘समाजवाद’ का नाम इस दृष्टि से उल्लेखनीय है। हिन्दी साहित्य में एक प्रबुद्ध मनीषी साहित्यकार के रूप में उनकी सेवाएं चिरस्मरणीय रहेंगी।

हिन्दी साहित्य के अन्य जीवन परिचय

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