श्लेष अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है। अर्थात श्लेष का अर्थ होता है चिपका हुआ या मिला हुआ, जब एक शब्द से हमें विभिन्न अर्थ मिलते हों तो उस समय श्लेष अलंकार होता है। अर्थात जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है लेकिन उससे अर्थ कई निकलते हैं तो वह श्लेष अलंकार कहलाता है।यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के शब्दालंकार के भेदों में से एक हैं।
श्लेष अलंकार का उदाहरण
1.
जे रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय ।
बारे उजियारो करै, बढ़े अंघेरो होय।
रहीम जी ने दोहे के द्वारा दीये एवं कुपुत्र के चरित्र को एक जैसा दर्शाने की कोशिश की है। रहीम जी कहते हैं कि शुरू में दोनों ही उजाला करते हैं लेकिन बढ़ने पर अन्धेरा हो जाता है। इस उदाहरण में बढे शब्द से दो विभिन्न अर्थ निकल रहे हैं। दीपक के सन्दर्भ में बढ़ने का मतलब है बुझ जाना जिससे अन्धेरा हो जाता है। कुपुत्र के सन्दर्भ में बढ़ने से मतलब है बड़ा हो जाना।बारे उजियारो करै, बढ़े अंघेरो होय।
2.
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है- पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है. तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है।पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
3.
सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक
जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक
4.
जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक
जो चाहो चटक न घटे,
मैलो होय न मित्त राज राजस
न छुवाइये नेह चीकने चित्त।।
5.
मैलो होय न मित्त राज राजस
न छुवाइये नेह चीकने चित्त।।
पी तुम्हारी मुख बास तरंग आज बौरे भौरे सहकार।
Examples of Shlesh Alankar
6.
रावण सर सरोज बनचारी।
चलि रघुवीर सिलीमुख।
7.
चलि रघुवीर सिलीमुख।
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
8.
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक
जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक।
9.
जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक।
पी तुम्हारी मुख बास तरंग आज बौरे भौरे सहकार।
10.
अलङ्कारः शङ्का करनकपालं परिजनो
विशीर्णाङ्गो भृङ्गो वसु च वृष एकोबहुवयाः ।
अवस्थेयं स्थाणोरपि भवति सर्वामिरगुरोः
विधौ वक्रे मूर्ध्नि स्थितवति वयं के पुनरमी ।।
विशीर्णाङ्गो भृङ्गो वसु च वृष एकोबहुवयाः ।
अवस्थेयं स्थाणोरपि भवति सर्वामिरगुरोः
विधौ वक्रे मूर्ध्नि स्थितवति वयं के पुनरमी ।।
श्लेषालंकारः - संस्कृत
‘वाच्यभेदेन भिन्ना यद् युगपदभाषणस्पृशः ।श्लिष्यन्ति शब्दाः श्लेषोऽसावक्षरादिभिरष्टधा ।।''
‘श्लेषः स वाक्ये एकस्मिन् यत्रानेकार्थता भवेत्'
'श्लेष का अर्थ होता है—चिपकना । अर्थात् एकाधिक अर्थवाले शब्द को श्लिष्ट शब्द कहा जाता है। जब किसी वाक्य में ऐसे श्लिष्ट शब्दों का प्रयोग हो और या तो वह शब्द कई अर्थ लाए या फिर उसके कारण अर्थ में एकाधिकता आ जाए, तब श्लेषालंकार अपनी छटा बिखेरने लगता है।
उदाहरणस्वरूपः
1.
अलङ्कारः शङ्का करनकपालं परिजनो
विशीर्णाङ्गो भृङ्गो वसु च वृष एकोबहुवयाः ।
अवस्थेयं स्थाणोरपि भवति सर्वामिरगुरोः
विधौ वक्रे मूर्ध्नि स्थितवति वयं के पुनरमी ।।
इसमें ‘विधौ' पद में वर्णश्लेष है । 'विधि’ और ‘विधु' दो अलग-अलग शब्द हैं।
विधि का अर्थ 'भाग्य' और विधु का ‘चन्द्रमा' होता है। इन दोनों का सप्तमी एकवचन में ‘विधौ' रूप ही बनता है।विशीर्णाङ्गो भृङ्गो वसु च वृष एकोबहुवयाः ।
अवस्थेयं स्थाणोरपि भवति सर्वामिरगुरोः
विधौ वक्रे मूर्ध्नि स्थितवति वयं के पुनरमी ।।
2.
पृथुकार्तस्वर पात्रं भूषितनिःशेषपरिजनं देव!
विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम् ।।
इसमें ‘पृथुकार्तस्वरपात्रं', भूषितनिःशेषपरिजनं' तथा 'विलसत्करेणुगहनं' में श्लेष
है। इस बात को समझें—विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम् ।।
(क) पृथुकार्तस्वरपात्र
- याचक का घर बालकों का भूख से रोने का स्थान है।
- राजा का घर (महल) सोने के बड़े-बड़े बरतनों से युक्त है।
(ख) भूषितनिःशेषपरिजनं
- सारे जन अलंकृत हैं (राजा के पक्ष में)
- सारे परिजन भूमि पर पड़े हैं।
(ग) विलसत्करेणुगहनं
- झूमती हुई हथिनियों से युक्त महल (राजा के पक्ष में)
- चूहों के खोदे हुए बिलों की धूल से भरा घर (याचक के पक्ष में)
कुछ अन्य उदाहरण :
1.
अहो केनेदृशी बुद्धिदारुणा तव निर्मिता।
त्रिगुणा श्रूयते बुद्धिर्न तु दारुमयी क्वचित् ।।
2.त्रिगुणा श्रूयते बुद्धिर्न तु दारुमयी क्वचित् ।।
स्वयं च पल्लवाताम्रभा स्वकर विराजिता।
प्रभातसन्ध्ये वा स्वापफललुब्धे हितप्रदा ।।
प्रभातसन्ध्ये वा स्वापफललुब्धे हितप्रदा ।।
सम्पूर्ण हिन्दी और संस्कृत व्याकरण
- संस्कृत व्याकरण पढ़ने के लिए Sanskrit Vyakaran पर क्लिक करें।
- हिन्दी व्याकरण पढ़ने के लिए Hindi Grammar पर क्लिक करें।