Braj Bhasha
ब्रजभाषा- ब्रजभाषा का विकास शौरसेनी से हुआ है। ब्रजभाषा पश्चिमी
हिन्दी की अत्यन्त समृद्ध एवं सरस भाषा है। साहित्य-जगत् में आधुनिक काल से पूर्व
ब्रजभाषा का ही बोलबाला था।
ब्रजभाषा क्षेत्र- यह मथुरा, वृन्दावन, आगरा, भरतपुर, धौलपुर, करौली,
पश्चिमी ग्वालियर, अलीगढ़, मैनपुरी, बदायूँ, बरेली आदि प्रदेशों में बोली जाने वाली
भाषा
है। पश्चिमी हिन्दी का वास्तविक प्रतिनिधित्व ब्रजभाषा ही करती है। ब्रजभाषा की लम्बी
साहित्य परम्परा रही है।
ब्रजभाषा के कवि
सूर, नन्ददास, बिहारी, धनानन्द, सेनापति, देव, भारतेन्दु, रत्नाकर
आदि ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि हैं।
Braj Bhasha की विशेषताएँ
ब्रजभाषा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- ब्रजभाषा में ओकारान्त शब्दों की प्रधानता है। खड़ी बोली में पाये जाने वाले
ए तथा ओ ब्रजभाषा में क्रमश: ऐ तथा औ हो जाते हैं।
- इसी प्रकार खड़ी बोली
में प्रयुक्त आकारान्त शब्द ब्रज में ओकारान्त हो जाते हैं, जैसे-छोटा, आया,
कैसा, जाऊँगा, दूजा आदि के ब्रज में छोटो, आयो, कैसा, जाऊँगो, दूजो रूप
मिलते हैं।
- श, ष, स में से ब्रज में 'स' की प्रधानता है। मानक हिन्दी की 'ण' ध्वनि ब्रज
में 'न' रूप में मिलती है। जैसे-गणेश > गनेस।
- इसी प्रकार मानक हिन्दी की
'ड' तथा ल ध्वनियाँ ब्रज में 'र' ध्वनि के रूप में मिलती है, जैसे-थोड़ा ।
थोरो, बिजली > बिजुरी आदि।
- सर्वनामों की दृष्टि से ब्रजभाषा में उत्तम पुरुष में 'मैं' हौं, मो, मोहि, मेरो, हम,
हमन, हमें, हमहिं, हमारौ, मध्यम पुरुष में तू, तू, तै, तो, तोहि, तेरौ, तुमहि,
तुम्हारौ, तिहारौ तथा अन्य पुरुष में वौ, वह, वा, वाहि, वे, वै, उन, उन्हें, माहि,
ये, इन आदि का प्रयोग होता है।
- संबंधवाचक सर्वनाम में जो, जे, जौ, जौन,
जाहि, प्रश्नवाचक सर्वनामों में कौ, कौन, का, काहि तथा अनिश्चयवाचकसर्वनामों में कोई, कोऊ, काहू आदि के प्रयोग मिलते हैं।
- ब्रजभाषा में बहुवचन में ‘अन’, ‘अनि' प्रत्ययों का प्रयोग बहुतायत से होता
है, जैसे- छोरौ > छोरनि, लड़का > लरकानि आदि।
- क्रिया रूप अधिकांशत: मानक हिन्दी के समान होते हुए भी अपनी विशिष्टता
रखते हैं।
- मानक हिन्दी के नाकारान्त क्रिया रूप ब्रज में नोकारान्त रूप में प्रयुक्त
होते है। जैसे-चलना, दौड़ना आदि के ब्रज में चलनो, दौड़नो आदि रूप मिलते हैं।

- Home
-
Study
-
Hindi
-
Hindi Bhasha
-
ब्रजभाषा