आलोचना – आलोचना क्या है? कैसे लिखे? आलोचना विधा की सम्पूर्ण जानकारी

ALOCHANA - LEKHAK, PRAMUKH ALOCHANAYE

आलोचना

आलोचना शब्द लुच् धातु से बना है और इस दृष्टि से इसका अर्थ है देखना। किसी रचना को भली प्रकार देखकर उसके गुण-दोषों का विवेचन करना आलोचना का कार्य है।

आलोचना के लिए अंग्रेजी में जिस ‘क्रिटिसिज्म‘ शब्द का प्रयोग होता है, उसका अर्थ है जिसकी सहायता से किसी रचना का आकलन किया जाता है। वह इन विशेषताओं का लेखा प्रस्तुत कराती है जो साधारणतया किसी भी सधान्त पाठक को आनन्द प्रदान कर सके।

आलोचक के कार्यों का वर्णन करते हुए स्काट जेम्स कहते है, कभी वह प्रकृति का भावन मात्र करता है, कभी उसकी व्याख्या करता है, कभी कलाकार बन वह अपने या अपने वर्ग के संबंध में नई बातें बताता है, कभी प्रचारक का लबादा ओढ़ साहित्य या समाज के लिए जो कल्याणप्रद समझता है, उसका प्रचार करता है तो कभी रचनात्मक इतिहासकार के रूप में यह बताता है कि समाज ने किस प्रकार कला को प्रभावित किया है और कलाओं ने समाज को किस प्रकार प्रभावित किया है। वह समाज में नई विचारधारा प्रवाहित करता है और चिरन्तन सत्य की प्रतिष्ठा के होता है।

आलोचना के प्रकार

आलोचक के दृष्टिकोण और मापदण्ड की भिन्नता के आधार पर आलोचना के भी अनेक प्रकार होते हैं जैसे – शास्त्रीय आलोचना, सैद्धान्तिक आलोचना, निर्णयात्मक आलोचना, व्याख्यात्मक आलोचना, ऐतिहासिक आलोचना, मनोवैज्ञानिक आलोचना और मार्क्सवादी आलोचना आदि।

शास्त्रीय आलोचना

इस आलोचना के अन्तर्गत आलोचक प्राचीन अथवा अर्वाचीन आचार्यों द्वारा दिए गए शास्त्रीय लक्षणों के आधार पर, आलोचक किसी हिन्दी साहित्य या अन्य रचना की आलोचना करता है।

सैद्धान्तिक आलोचना

सैद्धान्तिक आलोचना में साहित्य रचना से संबंधित आधारभूत सिद्धान्तों तथा नियमों का निर्माण किया जाता है। काव्यशास्त्र, साहित्य दर्पण, काव्य प्रकाश, रसगंगाधर आदि इसी प्रकार के ग्रंथ हैं।

निर्णयात्मक आलोचना

निर्णयात्मक आलोचना में आलोचक शास्त्रीय लक्षणो अथवा अपनी रुचि को आधार बनाकर कृति के संबंध में अपना निर्णय देता है। इसके अंतर्गत वह कृति का महान्, लघु और सामान्य आदि श्रेणी में विभाजन भी करता है।

व्याख्यात्मक आलोचना

व्याख्यात्मक आलोचना प्रणाली प्रारम्भ करने का श्रेय डॉ. मोल्टन को है। इसमें वैज्ञानिक अन्वेषण तथा व्याख्या विश्लेषण को ही आलोचना का आदर्श माना जाता है। यहाँ आलोचक का कार्य कृति के सौन्दर्य का उद्घाटन करना होता है, मूल्य निर्धारण नहीं।

ऐतिहासिक आलोचना

ऐतिहासिक आलोचना के अंतर्गत आलोचक लेखक की युगीन परिस्थितियों, आंदोलनों और प्रवृत्तियों को विश्लेषित कर उनके आलोक में कृति का आकलन करता है।

मनोवैज्ञानिक आलोचना

मनोवैज्ञानिक आलोचना साहित्य को सामाजिक कार्य के स्थान पर वैयक्तिक कर्म मानती है और कर्ता के मन में, संदर्भ में ही कृति का विश्लेषण और भावन करती है।

मार्क्सवादी आलोचना

मार्क्सवादी आलोचना में यह स्वीकार किया जाता है कि जो कृति मार्क्सवाद के सिद्धान्तों के प्रचार तथा श्रमजीवियों और सर्वहारा के कल्याण के लिए जितना कार्य करेगी वह उतनी ही श्रेष्ठ होगी। इस आलोचना पद्धति का प्रारम्भ मैक्सिम गोर्की से स्वीकार किया जाता है।

प्रभाववादी आलोचकों का मत

प्रभाववादी आलोचक यह मानते हैं कि आलोचना को विज्ञान मात्र नहीं मान सकते।…. वस्तुओं को उनके यथार्थ रूप में देखना असम्भव है, क्योंकि हम उन्हें मन में ही देख सकते हैं। साहित्य का व्यक्तित्व से विकास होता है और वह व्यक्तित्व को ही अपील करता है। उसका प्रधान लक्ष्य है हममें सहानुभूति जगाना, भावनाओं का संचार करना और रागों को दीप्त करना।

अत: आलोचना में व्यक्तिगत (प्रभावाभिव्यंजक) तत्त्व तो हम निकाल नहीं सकते। नई समीक्षा काव्यकृति को ही सब कुछ मानकर अपना ध्यान उसी पर केन्द्रित रखती है। काव्य को प्रभावित करने वाले बाहरी तत्त्वों-इतिहास, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिस्थितियों को वह महत्वपूर्ण नहीं मानती।

आलोचना का प्रारम्भ काल

हिन्दी में उपर्युक्त प्रकार की आलोचना का प्रारम्भ भारतेन्दु काल के पत्र हिन्दी प्रदीप से स्वीकार किया जाता है। लेकिन इसके अतिरिक्त कोई अन्य पत्र इस कार्य को गंभीरता से नहीं लेता था।

द्विवेदी युग में भी आलोचना का कोई गम्भीर एवं तात्त्विक स्वरूप तो निखर कर सामने नहीं आया परंतु कई महत्त्वपूर्ण पद्धतियाँ अवश्य विकसित हो गई। इस काल में प्राय: शास्त्रीय आलोचना, अनुसंधान परक आलोचना, परिचयात्मक आलोचना तथा व्याख्यात्मक आलोचना पर अधिक बल दिया गया।

छायावादी युग में आलोचना कर्म को सम्भाला रामचन्द्र शुक्ल ने इन्होंने हिन्दी में आलोचना के नये मानदण्ड स्थापित किए हैं। छायावादोत्तर काल में आलोचना का सर्वतोन्मुखी विकास हुआ है।

प्रमुख आलोचक

इन विभिन्न युगों में जो आलोचक उभरकर सामने आये उनमें प्रमुख हैं- महावीर प्रसाद द्विवेदी, रामचंद्र शुक्ल, मिश्र बंधु, बाबू गुलाब राय, श्याम सुन्दर दास, नंददुलारे वाजपेयी, हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डॉ. राम विलास शर्मा, डॉ. देवराज तथा नामवर सिंह आदि।

उदाहरण

क्रमआलोचनाआलोचक
1.नाटकभारतेन्दु
2.शिवसिंह सरोजशिवसिंह सेंगर
3.बिहारी सतसई की भूमिकापद्मसिंह शर्मा
4.देव और बिहारीकृष्ण बिहारी मिश्र
5.सिद्धांत और अध्ययन, काव्य के रूप, नवरसबाबू गुलाबराय
6.साहित्यालोचन, रूपक रहस्य, भाषा रहस्यश्यामसुंदर दास
7.काव्य में रहस्यवाद, रस मीमांसा, गोस्वामी तुलसीदास, भ्रमरगीत-सार, जायसी ग्रंथावली की भूमिकारामचंद्र शुक्ल
8.रवींद्र कविता कानन, पंत और पल्लवनिराला
9.गद्यपथ, शिल्प और दर्शन, छायावादः पुनर्मूल्यांकनपंत
10.साहित्य समालोचनारामकुमार वर्मा

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