संधि विच्छेद – Sandhi Viched, Sandhi in Sanskrit: संस्कृत में संधि

Sandhi in Sanskrit - Sandhi Viched (Sandhi Vichchhed)

Sandhi Vichchhed (Sandhi in Sanskrit)

संधि-युक्त शब्दों को अलग-अलग सार्थक शब्दों में लिखने को संधि विच्छेद कहते हैं। संस्कृत में संधि के इतने व्यापक नियम हैं कि सारा का सारा वाक्य संधि करके एक शब्द स्वरुप में लिखा जा सकता है। उदाहरण “ततस्तमुपकारकमाचार्यमालोक्येश्वरभावनायाह” अर्थात् – ततः तम् उपकारकम् आचार्यम् आलोक्य ईश्वर-भावनया आह।

Sanskrit Sandhi- संस्कृत में संधि विच्छेद

दो वर्णों के निकट आने से उनमें जो विकार होता है उसे ‘सन्धि’ कहते है। इस प्रकार की सन्धि के लिए दोनों वर्णो का निकट होना आवश्यक है, क्योकि दूरवर्ती शब्दो या वर्णो में सन्धि नहीं होती है। वर्णो की इस निकट स्थिति को ही सन्धि कहते है।

अतः संक्षेप में यह समझना चाहिए कि दो वर्णो के पास-पास आने से उनमें जो परिवर्तन या विकार होता है उसे संस्कृत व्याकरण में सन्धि कहते है। उदाहरण –

  • हिम + आलयः = हिमालयः
  • रमा + ईशः = रमेंशः
  • सूर्य + उदयः = सूर्योदयः

Sandhi Viched किसे कहते हैं?

संधि विच्छेद: संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग, पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है। जैसे हिमालयः को ‘हिम + आलयः’, रमेंशः को “रमा + ईशः” आदि रूपों में लिखना Sandhi Viched कहलाता है।

इसे भी पढ़ें: वर्ण विच्छेद

संस्कृत में संधि विच्छेद के भेद/प्रकार

संस्कृत भाषा में संधियां तीन प्रकार की होती है-

  1. स्वर संधि
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

1. स्वर संधि – अच् संधि

दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं। इस Sandhi Viched उदाहरण-

  • हिम+आलय= हिमालय।
  • रवि + इंद्र = रवींद्र
  • मुनि + इंद्र = मुनींद्र
  • नारी + इंदु = नारींदुई
  • मही + ईश = महीश
  • भानु + उदय = भानूदय
  • लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
  • वधू + उत्सव = वधूत्सव
  • भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व

संस्कृत में स्वर संधि के भेद

संस्कृत में स्वर-संधि आठ प्रकार की होती हैं-

  1. दीर्घ संधि (अक: सवर्णे दीर्घ:)
  2. गुण संधि (आद्गुण:)
  3. वृद्धि संधि (ब्रध्दिरेचि)
  4. यण् संधि (इकोऽयणचि)
  5. अयादि संधि (एचोऽयवायाव:)
  6. पूर्वरूप संधि (एडः पदान्तादति)
  7. पररूप संधि (एडि पररूपम्)
  8. प्रकृति भाव संधि (ईदूद्विवचनम् प्रग्रह्यम्)

दीर्घ संधि

दो सजातीय स्वर पास-पास आये, तो दोनों के मेल से सजातीय स्वर वर्ण दीर्घ स्वर हो जाता है, जिसे दीर्घ संधि कहते हैं।

सूत्र– ‘अक: सवर्णे दीर्घः’ अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका सवर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं।

ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ हो जाते हैं। जैसे Sandhi Viched के उदाहरण –

  • धर्म + अर्थ = धर्मार्थ (अ + आ = आ)
  • हिम + आलय = हिमालय (अ + आ = आ)
  • पुस्तक + आलय = पुस्तकालय (अ + आ = आ)
  • विद्या + अर्थी = विद्यार्थी (आ + अ = आ)
  • विद्या + आलय = विद्यालय (आ + आ = आ)
  • रवि + इंद्र = रवींद्र (इ + इ = ई)
  • मुनि + इंद्र = मुनींद्र (इ + इ = ई)
  • गिरि + ईश = गिरीश (इ + ई = ई)
  • मुनि + ईश = मुनीश (इ + ई = ई)
  • मही + इंद्र = महींद्र (ई + इ = ई)
  • नारी + इंदु = नारींदु (ई + इ = ई)
  • नदी + ईश = नदीश (ई + ई = ई)
  • मही + ईश = महीश (ई + ई = ई)
  • भानु + उदय = भानूदय (उ + उ = ऊ)
  • विधु + उदय = विधूदय (उ + उ = ऊ)
  • लघु + ऊर्मि = लघूर्मि (उ + ऊ = ऊ)
  • सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि (उ + ऊ = ऊ)
  • वधू + उत्सव = वधूत्सव (ऊ + उ = ऊ)
  • वधू + उल्लेख = वधूल्लेख (ऊ + उ = ऊ)
  • भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व (ऊ + ऊ = ऊ)
  • वधू + ऊर्जा = वधूर्जा (ऊ + ऊ = ऊ)

गुण संधि

इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए ; उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण संधि कहते हैं। जैसे इस Sandhi Viched के उदाहरण –

  • नर + इंद्र = नरेंद्र (अ + इ = ए)
  • नर + ईश= नरेश (अ + ई = ए)
  • महा + इंद्र = महेंद्र (आ + इ = ए)
  • महा + ईश = महेश (आ + ई = ए)
  • ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश (अ + उ = ओ)
  • महा + उत्सव = महोत्सव (आ + उ = ओ)
  • जल + ऊर्मि = जलोर्मि (अ + ऊ = ओ)
  • महा + ऊर्मि = महोर्मि (आ + ऊ = ओ)
  • देव + ऋषि = देवर्षि (अ + ऋ = अर्)
  • महा + ऋषि = महर्षि (आ + ऋ = अर्)

वृद्धि संधि

अ, आ का ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। जैसे इस Sandhi Viched के उदाहरण-

  • एक + एक = एकैक (अ + ए = ऐ)
  • मत + ऐक्य = मतैक्य (अ + ऐ = ऐ)
  • सदा + एव = सदैव (आ + ए = ऐ)
  • महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य (आ + ऐ = ऐ)
  • वन + औषधि = वनौषधि (अ + ओ = औ)
  • महा + औषधि = महौषधि (आ + ओ = औ)
  • परम + औषध = परमौषध (अ + औ = औ)
  • महा + औषध = महौषध (आ + औ = औ)

यण संधि

‘इ’, ‘ई’,’उ’, ‘ऊ’ या ‘ऋ’ के बाद यदि कोई विजातीय स्वर आये, तो ‘इ’-‘ई’ की जगह ‘य’, ‘उ’-‘ऊ’ की जगह ‘व्’ तथा ‘ऋ’ की जगह ‘र’ होता है। स्वर वर्ण के इस विकार को यण संधि कहते हैं। इस Sandhi Viched के उदाहरण-

  • यदि + अपि = यद्यपि (इ + अ = य्)
  • इति + आदि = इत्यादि (ई + आ = य्)
  • नदी + अर्पण = नद्यर्पण (ई + अ = य्)
  • देवी + आगमन = देव्यागमन (ई + आ = य्)
  • अनु + अय = अन्वय (उ + अ = व्)
  • सु + आगत = स्वागत (उ + आ = व्)
  • अनु + एषण = अन्वेषण (उ + ए = व्)
  • पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा (ऋ + अ = र्)

अयादि संधि

ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं। इस Sandhi Viched के उदाहरण-

  • ने + अन = नयन (ए + अ = अय्)
  • गै + अक = गायक (ऐ + अ = आय्)
  • पो + अन = पवन (ओ + अ = अव्)
  • पौ + अक = पावक (औ + अ = आव्)
  • नौ + इक = नाविक (औ + इ = आव्)

2. व्यंजन संधि – हल् संधि

व्यंजन का स्वर या व्यंजन के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते है। इस Sandhi Viched के उदाहरण-

  • उत + उल्लास = उल्लास
  • अप + ज = अब्ज

व्यंजन संधि (हल् संधि) के प्रकार –

  1. श्चुत्व संधि – स्तो श्चुनाश्चु
  2. ष्टुत्व संधि – स्तो ष्टुनाष्टु
  3. जश्त्व संधि – झालम् जशोऽन्ते

श्चुत संधि (श्चुत्व संधि)

जब ‘‘ अथवा त-वर्ग के बाद च-वर्ग आये तो संधि करते समय ‘स’ को “” में, तथा त-वर्ग को च-वर्ग मे बदल देते हैं। इस Sandhi Viched के उदाहरण-

  • सत् + चरित्र = सच्चरित्र
  • जगत् + जननी = जगज्जननी
  • कस् + चित्  = कश्चित्
  • निस् + छल: = निश्छल:
  • उत् + चारणम् = उच्चारणम्
  • सद् + जन: = सज्जन:
  • दुस् + चरित्र = दुश्चरित्र:
  • तद् + जय: = तज्जय:
  • हरिस् + शेते = हरिशेते

ष्टुत्व संधि

जब ‘स’ के बाद ‘ष’ आए अथवा ‘स’ के बाद ट-वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण ) आए तो संधि करते समय ‘स’ को ‘ष’ मे बदल देते हैं। इस Sandhi Viched के उदाहरण-

  • धनुष् + टकार: = धनुष्टन्कार:
  • रमस्  + षष्ठ: = रामष्षष्टः
  • रामस्  + टीकते = रामष्टीकते
  • बालास् + टीकते = बालष्टीकते

जश्त्व संधि

इस संधि मे प्रथम पद के अंत मे वर्गो के प्रथम वर्ण आते है । तथा अंत पद के शुरू मे कोई स्वर अथवा अन्य व्यंजन आता है । तो संधि करते समय प्रथम वर्ण को उसी वर्ग के तृतीय वर्ण में बदल देते है। इस Sandhi Viched के उदाहरण-

  • दिक् + अम्बर = दिगंबर
  • वाक् + ईश : = वागीश :
  • अच् + अंत : = अजन्त :
  • षट् + आनन : = षडानन :
  • जगत् + ईश : = जगदीश :
  • जयत् + रथ : = जयद्रव :

3. विसर्ग संधि

विसर्ग का स्वर या व्यंजन के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन होता है ,उसे विसर्ग संधि कहते है। उदाहरण–

  • निः + चय = निश्चय
  • दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
  • ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
  • निः + छल = निश्छल

विसर्ग संधि के प्रकार –

  1. सत्व संधि
  2. उत्व् संधि
  3. रुत्व् संधि
  4. विसर्ग लोप संधि

सत्व संधि

सत्व विसर्ग संधि के प्रमुख उदाहरण व नियम इस प्रकार है –

यदि विसर्ग (:) के बाद “च / छ / श” हो तो उसे “श” में बदल देते हैं-

  • नि: + चल : = निश्चल :
  • क: + छल : = कश्चौर:
  • राम : + चलति = रामश्चलति
  • दु : + शासति = दुश्शासन :

यदि विसर्ग (:) के बाद “क, ख, ट , ठ, प , फ” हो तो उसे “ष्” में बदल देते हैं-

  • धनु : + तङ्कार : = धनुष्टन्कार:
  • नि : + कंटक : = निष्कन्टक:
  • राम : + टीकते = रामष्टीकते

यदि विसर्ग (:) के बाद “क / त” हो तो उसे “स्” में बदल देते हैं-

  • नम : + कार : = नमस्कार :
  • नम : + ते = नमस्ते
  • नम : + तरति = नमस्तरति

उत्व् संधि

उत्व् विसर्ग संधि के प्रमुख उदाहरण व नियम इस प्रकार है –

यदि विसर्ग से पहले “अ” हो एवं विसर्ग का मेल किसी भी “वर्ग के – त्रतीय, चतुर्थ, या पंचम वर्ण” से या “य, र, ल, व” से हो तो संधि करते समय विसर्ग (:) को “ओ” मे बदल देते है-

  • रज: + गुण : = रजोगुण :
  • तम : + बल : = तपोबल :
  • यश : + गानम् = यशोगानम्
  • मन : + रव : = मनोरव:
  • सर : + वर : = सरोवर:
  • मन : + हर : = मनोहर:

यदि विसर्ग से पहले “अ” हो एवं अन्त: पद के शुरु मे भी “अ “ हो तो संधि करते समय विसर्ग (:) को “ओ” मे तथा अन्त: पद के “अ” को पूर्वरूप (ऽ) मे बदल देते है-

  • देव : + अयम् = देवोऽयम
  • राम : + अवदत् = रामोऽवदत्
  • त्रप : + आगच्छत् = त्रपोऽगच्छत्
  • क : + अत्र = कोऽत्र

रुत्व् संधि

रुत्व् विसर्ग संधि के प्रमुख उदाहरण व नियम इस प्रकार है –

यदि संधि के प्रथम पद के अन्त मे विसर्ग (:) से पहले अ / आ को छोडकर कोई अन्य स्वर आये, तथा अन्त पद के शुरु मे कोई स्वर / या वर्गो के त्रतीय, चतुर्थ, या पंचम वर्ण / या य, र, ल, व हो तो विसर्ग को “र् “ मे बदल देते हैं-

  • नि : + बल = निर्बल
  • नि : + गुण = निर्गुण
  • नि : + जन = निर्जन
  • नि : + उत्तर = निरुत्तर
  • नि : + आशा = निराशा
  • दु : + बल = दुर्बल

इस नियम मे रुत्व संधि के कुछ विशेष उदाहरण सम्मिलित किये गये जो इस प्रकार है-

  • पितु : + इच्छा = पितुरिच्छा
  • गौ : + अयम् = गौरयम्
  • मुनि : + अयम् = मुनिरयम्
  • देवी : + उवाच् = देविरुवाच्

विसर्ग लोप संधि

विसर्ग लोप संधि के प्रमुख उदाहरण व नियम इस प्रकार है –

यदि संधि के प्रथम पद मे स : / एष : हो और अंत पद के शुरु मे को छोड़कर कोई अन्य स्वर अथवा व्यंजन हो तो (:) का लोप हो जात्रा है-

  • स : + एति = सएति
  • स : + पठति = सपठति
  • एष : + जयति = एषजयति
  • एष : + विष्णु = एषविष्णु
  • एष : + चलति = एषचलति

यदि विसर्ग से पहले अ हो तथा विसर्ग का मेल अ से भिन्न किसी अन्य स्वर से हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है-

  • अत : + एव = अतएव
  • अर्जुन : + उवाच: = अर्जुनउवाच:
  • बाल : + इच्छति = बालइच्छति
  • सूर्य : + उदेति = सूर्यउदेति

यदि विसर्ग से पहले हो और विसर्ग का मेल किसी अन्य स्वर अथवा वर्गों के तृतीय, चतुर्थ, पंचम अथवा य , र , ल , व वर्णो से हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है-

  • छात्रा: + नमन्ति = छात्रानमन्ति
  • देवा: + गच्छन्ति = देवागच्छति
  • पुरुषा: + हसन्ति = पुरुषाहसन्ति
  • अश्वा: + धावन्ति = अश्वाधावन्ति

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संस्कृत संधि के प्रश्न-उत्तर

संस्कृत में संधि किसे कहते हैं?

दो वर्णो के पास-पास आने से उनमें जो परिवर्तन या विकार होता है उसे संस्कृत में सन्धि कहते है। उदाहरण के लिए-

1. हिम + आलयः = हिमालयः,
2. रमा + ईशः = रमेंशः,
3. सूर्य + उदयः = सूर्योदयः।

संधि विच्छेद किसे कहते हैं?

संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग, पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है। जैसे हिमालयः को ‘हिम’ और ‘आलयः’ अलग-अलग लिखना।

संस्कृत में संधि कितने प्रकार की होती है?

संस्कृत में संधि के तीन प्रकार होते हैं-

1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि

संस्कृत में स्वर संधि के कुल कितने भेद होते है?

संस्कृत में स्वर संधि के आठ प्रकार होते हैं-

1. दीर्घ संधि
2. गुण संधि
3. वृद्धि संधि
4. गुण संधि
5. अयादि संधि
6. पूर्वरूप संधि
7. पररूप संधि
8. प्रकृति भाव संधि

व्यंजन संधि किसे कहते हैं?

संधि के समय जब पहले वर्ण या शब्द के अंत में किसी व्यंजन का प्रयोग हो तो, वह ‘व्यंजन संधि’ कहलाती है। उदाहरण के लिए-

वाक् + जाल = वाग्जाल,
दिक् + विजय = दिग्विजय,
जगत् + गुरू = जगद्गुरू,
वाक् + ईश = वागीश,
जगत् + आधार = जगदाधार।

विसर्ग संधि किसे कहते हैं?

दो वर्णों या शब्दों की संधि के समय जब पहले वर्ण या शब्द के अंत में विसर्ग का प्रयोग हो तो, वह ‘विसर्ग संधि’ कहलाती है। उदाहरण के लिए-

नि: + चय = निश्चय,
नि: + चल = निश्चल,
नि: + ठुर = निष्ठुर,
दु: + तर = दुस्तर।

1 Comment

  1. बहुत उपयोगी अभ्यास है.मुझे संस्कृत पढने एवं पढाने के लिये बहुत उपयोगी है

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