Adbhut Ras - Adbhut Ras Ki Paribhasha
अद्भुत रस: इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं उसे ही अदभुत रस कहा जाता है इसके अन्दर रोमांच, औंसू आना, काँपना, गद्गद होना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होते हैं।
विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर हृदय में जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं। इन्ही भावों के विकसित रूप को 'अद्भुत रस' कहा जाता है।
इहाँ उहाँ दुह बालक देखा। मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।
देखि राम जननी अकलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी॥
देखरावा मातहि निज, अद्भुत रूप अखण्ड।
'रोम-रोम प्रति लागे, कोटि-कोटि ब्रह्मण्ड। -तुलसीदास
देखि राम जननी अकलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी॥
देखरावा मातहि निज, अद्भुत रूप अखण्ड।
'रोम-रोम प्रति लागे, कोटि-कोटि ब्रह्मण्ड। -तुलसीदास
अद्भुत रस के अवयव:
- स्थाई भाव : आश्चर्य।
- आलंबन (विभाव) : आश्चर्य उत्पन्न करने वाला पदार्थ या व्यक्ति।
- उद्दीपन (विभाव) : अलौकिक वस्तुओ का दर्शन, श्रवण, कीर्तन आदि ।
- अनुभाव : दाँतो तले उंगली दवाना, आंखे फाड़कर देखना, रोमांच, आँसू आना, काँपना, गदगद होना आदि।
- संचारी भाव : उत्सुकता, आवेग, भ्रान्ति, धृति, हर्ष, मोह आदि ।
Adbhut Ras Ka Sthayi Bhav - स्थाई भाव
अद्भुत रस का स्थायी भाव 'आश्चर्य' होता है जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं उसे ही अदभुत रस कहा जाता है।
साहित्यकारों द्वारा अद्भुत रस की परिभाषा
- हिन्दी के आचार्य देव ने अद्भुत रस का यह लक्षण दिया है -
‘आहचरज देखे सुने बिस्मै बाढ़त।
चित्त अद्भुत रस बिस्मय बढ़ै अचल सचकित निमित्त’।
- भरतमुनि ने वीर रस से अद्भुत की उत्पत्ति बताई है तथा इसका वर्ण पीला एवं देवता ब्रह्मा कहा है।
- विश्वनाथ के अनुसार इसके देवता गन्धर्व हैं।
- ‘विस्मय’ की परिभाषा ‘सरस्वतीकण्ठाभरण’ में दी गई है - ‘विस्मयश्चित्तविस्तार: पदार्थातिशयादिभि:’ किसी अलौकिक पदार्थ के गोचरीकरण से उत्पन्न चित्त का विस्तार विस्मय है।
- विश्वनाथ ने ‘साहित्यदर्पण’ में इस परिभाषा को दुहराते हुए विस्मय को चमत्कार का पर्याय बताया है - ‘चमत्कारश्चित्तविस्तार रूपो विस्मयापरपर्याय:’। अतएव चित्त की वह चमत्कृत अवस्था, जिसमें वह सामान्य की परिधि से बाहर उठकर विस्तार लाभ करता है, ‘विस्मय’ कहलायेगी। वास्तव में यह विस्मय या चमत्कार प्रत्येक गहरी अनुभूति का आवश्यक अंग है और इसीलिए यह प्रत्येक रस की प्रतीति में वर्तमान रहता है।
- भानुदत्त ने कहा है कि विस्मय सभी रसों में संचार करता है।
- विश्वनाथ रसास्वाद के प्रकार को समझाते हुए कहते हैं कि रस का प्राण ‘लोकोत्तर चमत्कार’ है और इस प्रकार सर्वत्र, सम्पूर्ण रसगर्भित स्थानों में अद्भुत रस माना जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में उन्होंने निम्नलिखित पंक्तियाँ उद्धृत की हैं -
‘रसे सारश्चमत्कार: सर्वत्राप्यनुभुयते। तच्चमत्कारसारत्वे सर्वत्राप्यद्भुतो रस:।अर्थात् सब रसों में चमत्कार साररूप से (स्थायी) होने से सर्वत्र अद्भुत रस ही प्रतीत होता है। अतएव, नारायण पण्डित केवल एक अद्भुत रस ही मानते हैं।
तस्मादद्भुतमेवाह कृती नारायणो रसम्।’
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार विस्मय
- मनोविज्ञानियों ने भी विस्मय को प्रधान भावों में गृहीत किया है तथा उसकी प्रवृत्ति ‘जिज्ञासा’ से बताई है। वास्तव में आदिम मानव को प्रकृति की क्रीड़ास्थली के संसर्ग में भय एवं आश्चर्य अथवा विस्मय, इन दो भावों की ही मुख्यतया प्रतीति हुई होगी।
- कला एवं काव्य के आकर्षण में विस्मय की भावना सर्वाधिक महत्त्व रखती है।
- कवि एवं कलाकार जिस वस्तु का सौन्दर्य चित्रित करना चाहते हैं, उसमें कोई लोक को अतिक्रान्त करने वाला तत्व वर्तमान रहता है, जो अपनी असाधारणता से भाव को अभिभूत कर लेता है।
- अंग्रेज़ी साहित्य के रोमांटिक कवियों ने काव्य की आत्मा विस्मय को ही स्वीकार किया था।
"अतएव, अद्भुत रस का महत्त्व स्वयं सिद्ध है। साहित्य शास्त्रियों ने रस के विरोध एवं अविरोध का व्याख्यान किया है।"
रस के विरोध एवं अविरोध
- पण्डितराज ने अद्भुत रस को श्रृंगार एवं वीर का अविरोधी बताया है, अर्थात् उनके मतानुसार श्रृंगार तथा वीर के साथ अद्भुत की अवस्थिति हो सकती है।
- विश्वनाथ ने सम्बद्ध प्रसंग में अद्भुत के विरोध या अविरोध के विषय में कोई उल्लेख नहीं किया है। वास्तव में उन्होंने रसास्वाद के निरूपण के प्रकरण में अपने प्रपितामह की सम्मति उद्धृत करते हुए अपना मत भी व्यक्त कर दिया है कि अद्भुत रस की पहुँच सर्वत्र सम्पूर्ण रसों में हो सकती है।
- भानुदत्त ने अत्युक्ति, भ्रमोक्ति, चित्रोक्ति, विरोधाभास इत्यादि को अद्भुत रस में ही अन्तर्भूत कर दिया है। सामान्यतया अद्भुत एवं हास्य रस में आपातत: साम्य लक्षित होता है, क्योंकि दोनों में लोक से वैपरीत्य भाव वर्तमान रहता है। लेकिन, अन्तर यह है कि हास्य में यह वैपरीत्य साधारण होता है और उसका कारण भी यत्किंचित ज्ञात रहता है, जबकि अद्भुत में वैपरीत्य का परिमाण अपेक्षाकृत अधिक होता है और उसका कारण भी अज्ञात रहता है। वस्तुत: दो विपरीत वस्तुओं के संयोग पर विचार करना ही विस्मय का मूल है। सूरदास का ‘अद्भुत एक अनुपम बाग़’ वाला प्रसिद्ध पद अद्भुत रस का सुन्दर उदाहरण है।
अद्भुत रस का आलम्बन विभाव
आलौकिकता से युक्त वाक्य, शील, कर्म एवं रूप अद्भुत रस के आलम्बन विभाव हैं,अद्भुत रस का उद्दीनपन विभाव
आलौकिकता के गुणों का वर्णन उद्दीनपन विभाव है,अद्भुत रस का अनुभाव
आँखें फाड़ना, टकटकी लगाकर देखना, रोमांच, आँसू, स्वेद, हर्ष, साधुवाद देना, उपहार-दान, हा-हा करना, अंगों का घुमाना, कम्पित होना, गदगद वचन बोलना, उत्कण्ठित होना, इत्यादि इसके अनुभाव हैं,अद्भुत रस का व्यभिचारी भाव
वितर्क, आवेग, हर्ष, भ्रान्ति, चिन्ता, चपलता, जड़ता, औत्सुक्य प्रभृति व्यभिचारी भाव हैं।अद्भुत रस का वर्णन
हिन्दी के आचार्य कुलपति ने ‘रस-रहस्य’ नामक ग्रन्थ में अद्भुत रस का वर्णन किया है -
जहँ अनहोने देखिए, बचन रचन अनुरूप।
अद्भुत रस के जानिये, ये विभाव स्रु अनूप।।
बचन कम्प अरु रोम तनु, यह कहिये अनुभाव।
हर्श शक चित मोह पुनि, यह संचारी भाव।।
जेहि ठाँ नृत्य कवित्त में, व्यंग्य आचरज होय।
ताँऊ रस में जानियो, अद्भुत रस है सोय।
अद्भुत रस के जानिये, ये विभाव स्रु अनूप।।
बचन कम्प अरु रोम तनु, यह कहिये अनुभाव।
हर्श शक चित मोह पुनि, यह संचारी भाव।।
जेहि ठाँ नृत्य कवित्त में, व्यंग्य आचरज होय।
ताँऊ रस में जानियो, अद्भुत रस है सोय।
Adbhut Ras ke Bhed
- दृष्ट,
- श्रुत,
- अनुमति एवं
- संकीर्तित
अद्भुत रस के उदाहरण - Adbhut Ras ke Udaharan
‘ब्रज बछरा निज धाम करि फिरि ब्रज लखि फिरि धाम।
फिरि इत र्लाख फिर उत लखे ठगि बिरंचि तिहि ठाम’।। (पोद्दार : ‘रसमंजरी’)
स्पष्टीकरण:- वत्सहरण के समय ब्रह्मा द्वारा गोप बालकों तथा बछड़ों को ब्रह्मधाम में छोड़ आने पर भी वे ही गोप और बछड़े देखकर ब्रह्मा को विस्मय हुआ। अतएव यहाँ दृष्ट अद्भुत रस की प्रतीति हो रही है।फिरि इत र्लाख फिर उत लखे ठगि बिरंचि तिहि ठाम’।। (पोद्दार : ‘रसमंजरी’)
Example 2.
चित अलि कत भरमत रहत कहाँ नहीं बास।
विकसित कुसुमन मैं अहै काको सरस विकास।
स्पष्टीकरण:- यहाँ अनुमिति अद्भुत की प्रतीति हो रही है। विकच कुसुमों में ईश्वर की प्रभा के अनुमानज ज्ञान से उत्पन्न ‘विस्मय’ पुष्ट होकर अद्भुत रस में व्यक्त हो गया है।विकसित कुसुमन मैं अहै काको सरस विकास।
Adbhut Ras ke Easy Example
Example 3.
देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया,
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया।
Example 4.क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया।
देखरावा मातहि निज अदभुत रूप अखण्ड,
रोम रोम प्रति लगे कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड।
रोम रोम प्रति लगे कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड।
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Adbhut Ras |
रस के भेद
- श्रृंगार रस - Shringar Ras,
- हास्य रस - Hasya Ras,
- रौद्र रस - Raudra Ras,
- करुण रस - Karun Ras,
- वीर रस - Veer Ras,
- अद्भुत रस - Adbhut Ras,
- वीभत्स रस - Veebhats Ras,
- भयानक रस - Bhayanak Ras,
- शांत रस - Shant Ras,
- वात्सल्य रस - Vatsalya Ras,
- भक्ति रस - Bhakti Ras
हिन्दी व्याकरण
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